Wednesday, 19 February 2020

जैन विश्वभारती संस्थान के अहिंसा एवं शांति विभाग तथा समाज कार्य विभाग के संयुक्त तत्वावधान में दो विवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन

अहिंसा के माध्यम से समाज की समस्याओं को किया जा सकता है ठीक- प्रो. व्यास

लाडनूँ, 18 फरवरी 2020। आचार्य महाप्रज्ञ जन्मशताब्दी के अवसर पर जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के अहिंसा एवं शांति विभाग तथा समाज कार्य विभाग के संयुक्त तत्वावधान में ’आचार्य महाप्रज्ञ का शांति की संस्कृति तथा ग्रामीण चुनौतियों का समाधान’ विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र के कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर के समाजशास्त्र विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. के.एन. व्यास ने कहा कि गुरूदेव तुलसी व आचार्यश्री महाप्रज्ञ आध्यात्म के नक्षत्र हैं, मुनि नथमल से लेकर आचार्य महाप्रज्ञ की जीवनयात्रा को दो दिवसीय संगोष्ठी में बांधा नही जा सकता। समाज की समस्याओं - क्रोध, हिंसा, घृणा को अहिंसा के माध्यम से ठीक किया जा सकता है। उन्होंने प्रेक्षाध्यान, जीवन विज्ञान सापेक्ष अर्थव्यवस्था तथा अहिंसा चार मुख्य बिन्दुओं पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. नरेश दाधीच ने अपने वक्तव्य में कहा कि आचार्य महाप्रज्ञ जैसे संत विलक्षण होते हैं, जो व्यक्ति समाज से अलग सोचते हैं वे सन्त बनते हैं। उन्होंने आचार्य महाप्रज्ञ को सामुदायिक सन्त के रूप में प्रस्तुत किया। आचार्य महाप्रज्ञ सारी मानवता को पथ-प्रदर्शन करने वाले सन्त थे। व्यक्ति को भीड़-तंत्र से अलग सोचना चाहिए। एक व्यक्ति अच्छा वक्ता तभी हो सकता है जब वह अच्छा श्रोता हो। कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र का प्रारंभ डाॅ. समणी प्रणव प्रज्ञा ने मंगालचरण से किया। तत्पश्चात अतिथियों का स्वागत व अभिनन्दन शाॅल व मोमेन्टो के साथ किया गया। संगोष्ठी निदेशक प्रो. अनिल धर ने अपने स्वागत वक्तव्य में कहा कि आचार्य महाप्रज्ञ ने अपने जीवन में निरन्तर पद-यात्राएं की तथा शांति की संस्कृति के बीज रोपते हुए समाज को लाभान्वित किया। आचार्य महाप्रज्ञ जी ने महिला शिक्षा के प्रेरणाश्रोत के रूप में कार्य किया। उन्होंने अहिंसा का जीवन की कला बताया। कार्यक्रम के अन्त में समाज कार्य विभाग के विभागाध्यक्ष ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. पुष्पा मिश्रा ने किया। उद्घाटन सत्र में प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी, प्रो. रोखा तिवारी, प्रो. बी.एल. जैन, डाॅ. प्रद्युम्न सिंह शेखावत, डाॅ. रविन्द्र सिंह राठौड़, डाॅ. योगेश जैन, डाॅ. विकास शर्मा, डाॅ. सोमवीर सांगवान, रंजीत मंडल, डाॅ. बलबीर सिंह आदि संकाय सदस्य तथा विभिन्न प्रतिभागी, शोधार्थी तथा विद्यार्थी उपस्थित थे।

महाप्रज्ञ ने अहिंसा के व्यावहारिक पक्ष को प्रस्तुत किया- प्रो. द्विवेदी

19 फरवरी 2020। आचार्य महाप्रज्ञ जन्मशताब्दी के अवसर पर जैन विश्वभारती संस्थान के अहिंसा एवं शांति विभाग तथा समाज कार्य विभाग के संयुक्त तत्वाधान में राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के समापन सत्र के मुख्य वक्ता महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी के गांधी अध्ययन केन्द्र के निदेशक प्रो. आरपी द्विवेदी ने कहा कि आचार्य महाप्रज्ञ इस बात पर बल देते थे कि जड़ की तुलना में सचेतन को आगे बढ़ाया जाये। उन्होंने कहा कि आचार्य तुलसी की सबसे महान देन के रूप में आचार्य महाप्रज्ञ को रेखांकित किया और कहा कि इन संतों के समय में देश की जो आध्यातिक उन्नति हुई, वह अप्रतिम है। आचार्य महाप्रज्ञ ज्ञान, भक्ति और वैराग्य की त्रिवेणी थे। आचार्य महाप्रज्ञ ने अहिंसा के व्यवहारिक पक्ष पर बल दिया तथा लौकिक, इहलौकिक और पारलौकिक सन्तुलन पर बल दिया। प्रो. द्विवेदी ने गीता के समकक्ष सम्बोधि ग्रन्थ को बताया। उन्होंने सफलता की कुजी के रूप में सहन करो, श्रम करो, संयम करो, सेवा करो का सूत्र दिया था। उन्होंने जैन विश्वभारती संस्थान को अद्भूत प्रयोगशाला बताया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आरएल. गोदारा ने बहुत ही सहज, सरल शब्दो में आचार्य महाप्रज्ञ के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का गुणगान किया तथा कहा कि उन्होंने ज्ञान के साथ चरित्र निर्माण पर बल दिया। उन्होंने उपवास को बहुत महत्वपूर्ण बताया। प्रो. गोदारा ने बताया कि आचार्य महाप्रज्ञ ने गांवों की वेदना समझी और जैन विश्वभारती संस्थान को शिक्षा के लिए उनका आर्शीवाद बताया।

महाप्रज्ञ चाहते थे कि सामाजिक कुरीतियां हटें

कार्यक्रम के अध्यक्ष जैन विश्वभारती संस्थान के कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुये कहा कि इस संस्थान के अनुशास्ता के रूप में आचार्य महाप्रज्ञ का सान्निध्य एवं अनुशासन-मार्गदर्शन मिला था, उन्होंने संस्थान को नई दिशा प्रदान की, यह संस्थान का परम सौभाग्य रहा। आचार्य महाप्रज्ञ ने जैन विश्वभारती संस्थान को विजडम सिटी की संज्ञा दी। आचार्य महाप्रज्ञ की सोच थी कि जहां समस्या है, उससे उपर उठकर उसके समाधान के बारे में सोचें। उनके अनुसार पक्ष के साथ प्रतिपक्ष इस जगत का सौन्दर्य है। प्रो. दूगड़ ने कहा कि आचार्य महाप्रज्ञ ने गांवो के विकास के लिए बहुत कार्य किया वे अहिंसा यात्रा के माध्यम से जिस गांव में भी पदयात्रा करते थे, उससे पूर्व उस गांव की समस्यायें जान लेते थे, फिर उन समस्याओं का समाधान करने का प्रयास करते थे। आचार्य महाप्रज्ञ ने सामाजिक कुरीतियों को दूर करने का प्रयास किया। आचार्य महाप्रज्ञ अपरिग्रह को परम धर्म मानते थे। आचार्य महाप्रज्ञ ने प्रो. ग्लेन डी. पंज, जाॅन गाल्टुंग, पूर्व राष्ट्रपति डाॅ. अब्दुल कलाम आदि विद्वानों के साथ समाज कल्याण की चर्चा की। उन्होंने कहा कि यदि अभय होगा, विश्वास होगा तो शस्त्रीकरण नही होगा। आचार्य महाप्र्रज्ञ ऐसे दुर्लभ सन्त थे जिन्होंने चेतना के जागरण की बात कही। उनकी जन्मशताब्दी के सुअवसर पर यह संस्थान कितने ही आयोजन करे कम हीं होंगे। समापन सत्र के प्रारम्भ में अहिंसा एवं शांति विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. अनिल धर ने सभी अतिथियों का स्वागत एवं अभिनंदन किया। सर्वप्रथम दो दिवसीय संगोष्ठी का प्रतिवेदन समाज कार्य विभाग के सहायक आचार्य डाॅ. विकास शर्मा ने किया। अन्त में अहिंसा एवं शांति विभाग के सहायक आचार्य डाॅ. रवीन्द्र सिंह राठौड़ ने धन्यवाद ज्ञापित किया। समापन सत्र में प्रो. रेखा तिवारी, डाॅ. निशा गोस्वामी, विभा मिश्रा, प्रद्युम्नसिंह शेखावत, डाॅ. युवराजसिंह खांगारोत, डाॅ. योगेश जैन, रंजीत मंडल, विजय कुमार शर्मा, दीपाराम खोजा, पंकज भटनागर, डाॅ. वीरेन्द्र भाटी मंगल आदि उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. समणी रोहिणी प्रज्ञा ने किया।

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