Friday, 14 February 2020

जैन विश्वभारती संस्थान एवं जैन विश्व भारती के संयुक्त तत्वावधान में अभिनन्दन एवं मंगलभावना समारोह का आयोजन

संतों के आगमन से होती है विवेक की जागृति- मुनिश्री सुमति कुमार

लाडनूँ, 14 फरवरी 2020। जैन विश्व भारती स्थित भिक्षु विहार में जैन विश्व भारती एवं जैविभा विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में अभिनन्दन एवं मंगलभावना समारोह का आयोजन किया गया, जिसमें मुनिश्री सुमति कुमार का यहां स्वागत किया गया और मुनिश्री देवेन्द्र कुमार के प्रति मंगलभावनायें व्यक्त की गई। मुनिश्री सुमति कुमार यहां वृद्ध साधु-साध्वी सेवाकेन्द्र व्यवस्थापक के रूप में एक साल के लिये यहां आये हैं तथा मुनिश्री देवेन्द्र कुमार यहां व्यवस्थापक पद से एक साल कार्यरत रह कर सेवानिवृत होकर यहां से प्रस्थान करने जा रहे हैं। कार्यक्रम में मुनिश्री सुमति कुमार ने इस अवसर पर कहा कि संतों का आना व्यक्ति के भीतर की आंखों खोल कर उसके विवेक के जागरण का माध्यम बनता है। संतों की संगति के कारण व्यक्ति को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। जो शांत होता है, वहीं संत होता है। जिसकी शांति नहीं रही, गुस्सा हो गया हो तो उसकी संतता चली जाती है। उन्होंने कहा कि सेवा का लक्ष्य लेकर वे अपने सहवर्ती संतों के साथ लाडनूँ आये हैं। सेवा को परम धर्म की उपमा देते हुये उन्होंने कहा कि जैन धर्म अहिंसा परमोधर्मः पर आधारित है, वैसे ही सेवा परमोधर्म भी महत्वपूर्ण होता है। सच्चे मन से सेवा करने पर व्यक्ति के कर्मों की निर्जरा होती है। उन्होंने जैन विश्व भारती को पवित्र भूमि बताते हुये कहा कि यह आचार्य तुलसी की महान देन है और यहां शांत व सुरम्य वातावरण मन को प्रसन्नता देता है। मुनिश्री देवेन्द्र कुमार ने कहा कि संतों की संगति प्राप्त होना सौभाग्य की बात होती है। उन्होंने बताया कि यहां एक साल वे रहे, उन्हें सहवर्ती संतों, अन्य संतों एवं श्रावक-श्राविकाओं का सहयोग मिला। संतों का आगमन मंगल माना जाता है, तो उनका प्रस्थान भी मंगल ही माना जाता है।

सेवा से होती है ब्रह्म की प्राप्ति

संस्थान के कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने कहा कि केवल सेवा से ब्रह्म की प्राप्ति की बात प्राचीन ग्रंथों और वैदिक साहित्य में मिलती है। मुनिश्री देवेन्द्र कुमार के प्रति मंगलभावना व्यक्त करते हुये उन्होंने कहा कि वे सरल, सहज, निर्लेप व शांत थे और उनमें ऋजुता थी। वे नियमित रूप से यहां आचार्य तुलसी समाधिस्थल जाते और वहां ध्यान-साधना आदि करते थे। उन्होंने मुनिश्री सुमति कुमार को भी धीर, गंभीर व शांत बताते हुये कहा कि उनका यहां पधारना जैन विश्व भारती, जैविभा विश्वविद्यालय और सम्पूर्ण लाडनूँ के लिये लाभप्रद रहेगा। यहां उनसे ज्ञान-ध्यान सीखने को मिलेगा। कार्यक्रम में मुनिश्री तन्मय कुमार, मुनिश्री देवार्य, आदित्य मुनि, अणुव्रत जीवन विज्ञान अकादमी के असिस्टेंट डायरेक्टर हनुमान मल शर्मा, प्रेक्षा फांउडेशन के चैयरमेन अरविन्द गोठी, राजेन्द्र मोदी इंदौर, दूरस्थ शिक्षा निदेशक प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी आदि ने भी इस अवसर पर स्वागत एवं मंगलभावना व्यक्त की। इस अवसर पर जैन विश्व भारती के सहमंत्री अशोक चिंडालिया, रजिस्ट्रार रमेश कुमार मेहता, प्रो. अनिल धर, डाॅ. अमिता जैन, डाॅ. युवाराज सिंह खांगारोत, डाॅ. प्रद्युम्नसिंह शेखावत, प्रगति चैरड़िया, आयुषी शर्मा, पंकज भटनागर, डाॅ. जेपी सिंह, कमल कुमार मोदी, डाॅ. विनोद सियाग, डाॅ. सरोज राय, डाॅ. सुनिता इंदौरिया, विजय कुमार शर्मा, डाॅ. मनीष भटनागर, डाॅ. गिरीराज भोजक, डाॅ. सत्यनारायण भारद्वाज, डाॅ. रविन्द्र सिंह राठौड़, डाॅ. योगेश जैन, सोमवीर सांगवान, अजयपाल सिंह भाटी आदि उपस्थित थे। इससे पूर्व प्रातः मुनिश्री सुमति कुमार व अन्य सहवर्ती संतों को बड़ी संख्या में श्रावकगण यहां ऋषभद्वार से लाकर जैन विश्व भारती में मंगल प्रवेश करवाया गया।

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