Monday, 25 December 2017
Sunday, 17 December 2017
Friday, 15 December 2017
21 दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का समापन
नवाचार के साथ पाण्डुलिपि संरक्षण वर्तमान की आवश्यकता-प्रो दूगड़
लाडनूं 15 दिसम्बर
जैन
विश्वभारती संस्थान के जैनविद्या एवं तुलनात्मक धर्म दर्शन विभाग व
प्राच्य विद्या एवं भाषा विभाग के तत्वावधान में 21 दिवसीय पाण्डुलिपि
विज्ञान एवं लिपिविज्ञान विषयक कार्यशाला का समापन संस्थान के सेमिनार हाॅल
में समारोह पूर्वक हुआ। समारोह की अध्यक्षता करते हुए जैन विश्वभारती
संस्थान के कुलपति प्रो बच्छराज दूगड ने कहा कि आज शिक्षा में हर जगह
नवाचार का उपयोग हो रहा है ऐसे में पाण्डुलिपि जैसे परम्परागत ज्ञान के लिए
भी नवाचार की आवश्यकता है। उन्होनें कहा कि एक रिसर्च के मुताबिक आने वाले
समय में 70 प्रतिशत नौकरियों का स्वरूप एवं पदनाम बदल जायेगें। जिसके कारण
पाण्डुलिपि संरक्षण में भी नवीन तकनीक का उपयोग जरूरी है।
प्रो
दूगड ने देश में लाखों पाण्डुलिपिया विद्यमान है जिनमे से मात्र दस
प्रतिशत पाण्डुलिपियों पर ही काम हो पाया है, प्रकाशन तो इससे भी कम हुआ
है। जरूरत है कि पाण्डुलिपि संरक्षण एवं संपादन के प्रति विद्वतजन नये
तकनीकों का प्रयोग करते हुए अपना योगदान दें। प्रो दूगड ने पाण्डुलिपि के
विकास के लिए तीन बातों को महत्वपूर्ण बताया जिनमें पाण्डुलिपियों संग्रह,
प्रकाशन एवं नये शोधार्थी तैयार हो। उन्होनें देश भर से आये विद्वतजनों के
समक्ष सीखने की अभीप्सा को ही ज्ञान विकास का माध्यम बताया। प्रो दूगड ने
बताया कि आने वाले समय में इस विश्वविद्यालय में प्राकृतिक चिकित्सा काॅलेज
एवं प्राच्य विद्याओं की दृष्टि से महत्वपूर्ण कार्य होगा।
कार्यक्रम
के मुख्य अतिथि लखनऊ के प्रो के के थापलिपाल ने पाण्डुलिपि ज्ञान एवं
गुप्तकालिन लिपियांे को समझाते हुए पाण्डुलिपि मिशन को रेखाकिंत किया।
उन्होनें पाण्डुलियों में समाहित अंक गणित, ज्योतिष विज्ञान,चिकित्सा
विज्ञान आदि को संस्कृति की अमूल्य धरोहर बताते हुए गहनता के साथ करने का
आह्वान किया।
इस
अवसर पर कार्यशाला की निदेशका प्रो समणी ऋजुप्रज्ञा ने अतिथियों का स्वागत
करते हुए परिचय दिया। उन्होंने कहा कि इस कार्यशाला से पाण्डुलिपि एवं
लिपियों के संरक्षण एवं ज्ञान के प्रति एक ठोस नींव का निर्माण हुआ है, जो
भविष्य में और अधिक प्रवद्र्वमान होगा। उन्होनें कहा विद्वानों ने जो कुछ
भी इस कार्यशाला में सीखा है उसका अभ्यास बहुत जरूरी है। प्राकृत एवं
संस्कृत भाषा विभाग की अध्यक्ष डाॅ समणी संगीत प्रज्ञा ने 21 दिवसीय
कार्यशाला का प्रगति प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। कार्यक्रम में समणी
सुयशनिधि, कुलदीप शर्मा, समणी स्वर्णप्रज्ञा आदि ने अपने अनुभव सुनायें।
शुभारम्भ समणी वृन्द द्वारा प्रस्तुत मंगलसंगान से हुआ। इस अवसर पर देश भर
से आये विद्वानों को प्रमाण पत्र, प्रतीक चिन्ह एवं साहित्य भेंट कर
अतिथियों द्वारा स्वागत किया गया। कार्यक्रम का संयोजन डाॅ सत्यनारायण
भारद्वाज एवं आभार ज्ञापन डाॅ योगेश कुमार जैन ने किया।
राष्ट्रीय कार्यशाला का समापन समारोह 15 दिसम्बर को
राष्ट्रीय कार्यशाला का समापन समारोह 15 दिसम्बर को
दिनांक: 14.12.2017
लाडनूं।
जैन विश्वभारती संस्थान में भारत सरकार के सांस्कृति मंत्रालय के मिशन के
तहत 25 नवम्बर से चल रही 21 दिवसीय ‘‘पाण्डुलिपि विज्ञान एवं लिपि विज्ञान
विषयक’’ राष्ट्रीय कार्यशाला का समापन समारोह शुक्रवार प्रातः 11 बजे
आयोजित किया जायेगा। जिसके तहत सभी प्रतिभागियों को प्रमाण-पत्र वितरित
किये जायेंगे।
इससे पहले गुरूवार को जहां लखनऊ विश्वविद्यालय के
प्रोफेसर एवं कार्यशाला के प्रमुख वक्ता के.के. थापलियाल ने अशोक के
अभिलेखों के संदर्भ में ब्राह्मी लिपि का अध्ययन करवाया। वहीं जैन
विश्वभारती संस्थान के जैनविद्या एवं तुलनात्मक धर्म एवं दर्शन विभाग के
सहआचार्य डाॅ. शशि प्रज्ञा ने जैन धर्म के वर्तमान संदर्भ की प्रासंगिकता
एवं जैन धर्म के आदर्शों को विस्तार से व्याख्यायित किया। इसी क्रम में
अगले वक्ता के रूप में प्राच्यविद्या एवं भाषा विभाग के सहायक आचार्य डाॅ.
सत्यनारायण भारद्वाज ने पाण्डुलिपियों के संदर्भ में साहित्य के प्रमुख
तत्त्वों एवं साहित्य की विद्याओं से श्रोताओं को अवगत करवाया एवं इनके
महत्व पर प्रकाश डाला।
गुरूवार के द्वितीय सत्र में डाॅ.
सत्यनारायण भारद्वाज की अगुवाई में कार्यशाला के सभी प्रतिभागियों को
शैक्षणिक भ्रमण के तौर पर काले हरिणों के लिये विश्वप्रसिद्ध तालछापर
अभ्यारण्य का भ्रमण करवाया एवं इसके उपरान्त सभी प्रतिभागियों को सालासर
बालाजी दर्शनार्थ ले जाया गया। डाॅ. योगेश जैन सभी व्यवस्थाओं को सुचारू
ढंग से क्रियान्वित कर कार्यशाला की इन समस्त गतिविधियों के आधार स्तम्भ
रहे।
Wednesday, 13 December 2017
राष्ट्रीय कार्यशाला में दिया ‘‘अपरिग्रह परमोधर्म’’ का संदेश
राष्ट्रीय कार्यशाला में दिया ‘‘अपरिग्रह परमोधर्म’’ का संदेश
दिनांक: 12.12.2017
लाडनूं
जैन विश्वभारती संस्थान में भारत सरकार के सांस्कृतिक मंत्रालय के तहत 25
नवम्बर से चल रही 21 दिवसीय ‘‘पाण्डुलिपि विज्ञान एवं लिपि विज्ञान विषयक’’
राष्ट्रीय कार्यशाला में मंगलवार को प्रमुख वक्ता के रूप में लखनऊ
विश्वविद्यालय से पधारे प्रो. के.के. थापलियाल ने ब्राह्मी लिपि के
प्रागेतिहासिक काल, एतिहासिक काल, मध्यकाल, आधुनिक काल में ब्राह्मी लिपि
के स्वरूप व लेखन कला के परिवर्तन पर प्रकाश डाला तथा ब्राह्मी की वर्णमाला
के प्रत्येक अक्षर की बनावट का वैज्ञानिक आधार भी बताया।
दिन
के दूसरे सत्र में जैनोलाॅजी विभाग की डाॅ. समणी शशिप्रज्ञा ने अपने
व्यक्तव्य में बताया कि इस संसार में प्रत्येक जीव की उपस्थिति का विशेष
महत्व है, जिसको मैत्री के माध्यम से बताते हुए उन्होंने कहा कि जब तक बदले
की भावना रहती है तब तक मैत्री भाव हो ही नहीं सकता और ना ही ऐसा व्यक्ति
अहिंसक हो सकता है। अतः जीवों के प्रति उदार भाव एवं सजगता ही अहिंसा का
पर्याय है। अपने व्यक्तव्य में समाहित सत्य को उजागर करते हुए उन्होंने जैन
होने का महत्व भी बताया एवं महाभारतकाल के विचार ‘‘अहिंसा परमोधर्म’’ की
तुलना में आचार्य तुलसी के चिन्तन ‘‘परिग्रह परमोधर्म’’ को अधिक श्रेयष्कर
बताते हुए उसकी परिभाषा दी इच्छाओं का सीमांकन करना ही अपरिग्रह है।
डाॅ.
योगेश जैन एवं डाॅ. सत्यनारायण भारद्वाज द्वारा कार्यशाला के प्रत्येक
सत्र की भूमिका को व्यवस्थित रूप से संचालित किया जा रहा है।
Saturday, 2 December 2017
Wednesday, 29 November 2017
Tuesday, 28 November 2017
Subscribe to:
Posts (Atom)