Wednesday, 19 June 2019

जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के प्रो. दामोदर शास्त्री केन्द्र सरकार के प्राकृत भाषा बोर्ड में शामिल


प्रो. दामोदर शास्त्री केन्द्र सरकार के प्राकृत भाषा बोर्ड में शामिल

लाडनूँ, 19 जून 2019। केन्द्रीय सरकार के मानव संसाधन मंत्रालय के अन्तर्गत पालि व प्राकृत भाषाओं के विकास की योजना के तहत गठित किये गये 19 सदस्यीय प्राकृत भाषा विकास बोर्ड में लाडनूँ के जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के प्रोफेसर दामोदर शास्त्री को विशेषज्ञ सदस्य के रूप में शामिल किया गया है। प्रो. शास्त्री के अलावा जैन विश्वभारती संस्थान के प्राकृत व संस्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष रह चुके प्रो. जगतराम भट्टाचार्य को भी इस बोर्ड में विशेषज्ञ सदस्य के रूप में शामिल किया गया है। प्रो. भट्टाचार्य वर्तमान में पं. बंगाल के शांति निकेतन विश्व भारती विश्वविद्यालय के संस्कृत, पालि व प्राकृत भाष विभाग के प्रोफेसर हैं। यह समिति भारत सरकार को प्राकृत भाषा व साहित्य के प्रचार-प्रसार, संरक्षण व विकास के सम्बंध में परामर्श प्रदान करेगी।

Monday, 17 June 2019


जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के पाण्डुलिपि संरक्षण केन्द्र द्वारा किया जा रहा है यत्र-तत्र फैली पांडुलिपियों का सूचीकरण व ट्रीटमेंट


लाडनूँ, 17 जून 2019। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में स्थापित पाण्डुलिपि संरक्षण केन्द्र में भारतीय संस्कृति की धरोहर कहे जाने वाले पुरालिपियों में निबद्ध प्राचीन भारतीय साहित्य को संरक्षित करने एवं पाण्डुलिपियों को सुरक्षित करने का कार्य किया जा रहा है। संस्थान में लगभग छह हजार बहुमूल्य पाण्डुलिपियां हैं, जिनमें से अधिकतर अप्रकाशित हैं। इन सबका संरक्षण कार्य इस केन्द्र द्वारा किया जा रहा है। इसके साथ ही लाडनूँ क्षेत्र के आसपास मंदिरों, सामुदायिक वाचनालयों, व्यक्तिगत पुस्तकालयों एवं घरों में संपर्क करके जहां-जहां भी पाण्डुलिपियां सुरक्षित हैं, वहां पहुंचकर उन पाण्डुलिपियों को आवश्यकतानुसार सुरक्षित करना अथवा उन्हें संरक्षण केन्द्र लाकर उचित ट्रीटमेंट देकर ठीक करना एवं पुनः उन्हें वापिस लौटाना आदि कार्य भी इस केन्द्र द्वारा किये जायेंगे।

इस प्रकार की जाती है पांडुलिपियां सुरक्षित

केन्द्र में नियुक्त किये गये विशेषज्ञ कार्यकर्ताओं द्वारा पाण्डुलिपियों के संरक्षण का कार्य किया जा रहा है, जिनमें मुख्य रूप से प्रत्येक पाण्डुलिपि के पन्नों में नमी होने पर उन्हें प्राकृतिक तरीके से अथवा आवश्यक केमीकल के द्वारा दूर किया जाता है और यदि यदि पन्ने फट गये हों अथवा कीड़े लग गये हों तो उनमें आवश्यकतानुसार हस्त निर्मित कागज को जोड़कर सम आकार का किया जाता है। साथ ही केन्द्र में प्राप्त की गई प्रत्येक पाण्डुलिपि का विस्तृत रिकार्ड रखा जाता है। इन संरक्षित की गई सभी पांडुलिपियों को अंत में विशेष गत्ते को लगाकर उसे लाल रंग के सूती कपड़े में बांधा जाता है, जिससे पुनः उसमें नमी एवं कीडे़ आदि ना लगे। ये सभी कार्य संस्थान के पाण्डुलिपि संरक्षण केन्द्र में केन्द्र के समन्वयक एवं जैनविद्या विभाग के सहायक आचार्य डाॅ. योगेश कुमार जैन के निर्देशन में किये जा रहे हैं।

राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन से मिली सहायता

इस पांडुलिपि संरक्षण केन्द्र की स्थापना राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन नई दिल्ली के सौजन्य से की गई है। राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन नई दिल्ली के प्रयासों से देश में पाण्डुलिपियों के संरक्षण, संवर्द्धन एवं रखरखाव के साथ उनके सूचीकरण का महनीय कार्य मिशन के द्वारा निरन्तर किया जा रहा है। लेकिन अब तक केवल 30 प्रतिशत पाण्डुलिपियों का ही संरक्षण संभव हो पाया है। संरक्षण एवं सूचीकरण की श्रृंखला को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से मिशन के सौजन्य से जैन विश्वभारती संस्थान में इस केन्द्र की स्थापना की गई है। राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन द्वारा इस कार्य के लिये जैविभा संस्थान को सहयोग प्रदान किया गया है। पूर्व में संस्थान ने पाण्डुलिपि के पठन-पाठन को सरल बनाने के लिये इक्कीस दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया गया था तथा इस कार्यशाला की सफलता के परिणाम स्वरूप मिशन ने संस्थान में पांडुलिपि संरक्षण केन्द्र खोले जाने की स्वीकृति प्रदान की थी।