इस प्रकार की जाती है पांडुलिपियां सुरक्षित
केन्द्र में नियुक्त किये गये विशेषज्ञ कार्यकर्ताओं द्वारा पाण्डुलिपियों के संरक्षण का कार्य किया जा रहा है, जिनमें मुख्य रूप से प्रत्येक पाण्डुलिपि के पन्नों में नमी होने पर उन्हें प्राकृतिक तरीके से अथवा आवश्यक केमीकल के द्वारा दूर किया जाता है और यदि यदि पन्ने फट गये हों अथवा कीड़े लग गये हों तो उनमें आवश्यकतानुसार हस्त निर्मित कागज को जोड़कर सम आकार का किया जाता है। साथ ही केन्द्र में प्राप्त की गई प्रत्येक पाण्डुलिपि का विस्तृत रिकार्ड रखा जाता है। इन संरक्षित की गई सभी पांडुलिपियों को अंत में विशेष गत्ते को लगाकर उसे लाल रंग के सूती कपड़े में बांधा जाता है, जिससे पुनः उसमें नमी एवं कीडे़ आदि ना लगे। ये सभी कार्य संस्थान के पाण्डुलिपि संरक्षण केन्द्र में केन्द्र के समन्वयक एवं जैनविद्या विभाग के सहायक आचार्य डाॅ. योगेश कुमार जैन के निर्देशन में किये जा रहे हैं।
राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन से मिली सहायता
इस पांडुलिपि संरक्षण केन्द्र की स्थापना राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन नई दिल्ली के सौजन्य से की गई है। राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन नई दिल्ली के प्रयासों से देश में पाण्डुलिपियों के संरक्षण, संवर्द्धन एवं रखरखाव के साथ उनके सूचीकरण का महनीय कार्य मिशन के द्वारा निरन्तर किया जा रहा है। लेकिन अब तक केवल 30 प्रतिशत पाण्डुलिपियों का ही संरक्षण संभव हो पाया है। संरक्षण एवं सूचीकरण की श्रृंखला को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से मिशन के सौजन्य से जैन विश्वभारती संस्थान में इस केन्द्र की स्थापना की गई है। राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन द्वारा इस कार्य के लिये जैविभा संस्थान को सहयोग प्रदान किया गया है। पूर्व में संस्थान ने पाण्डुलिपि के पठन-पाठन को सरल बनाने के लिये इक्कीस दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया गया था तथा इस कार्यशाला की सफलता के परिणाम स्वरूप मिशन ने संस्थान में पांडुलिपि संरक्षण केन्द्र खोले जाने की स्वीकृति प्रदान की थी।