Friday, 26 November 2021

जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में ’आचार्य महाप्रज्ञ का प्राकृत साहित्यः समाज को एक अनूठी देन’ पर व्याख्यान का आयोजन

 


आचार्य महाप्रज्ञ ने आर्ष प्राकृत व आर्ष व्याकरण को उजागर किया- प्रो. कल्पना जैन

लाडनूँ, 27 नवम्बर 2021। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के प्राकृत एवं संस्कृत विभाग के तत्वावधान में ‘भारत का गौरवः प्राकृत भाषा एवं साहित्य‘ विषयक मासिक व्याख्यानमाला के अन्तर्गत आयोजित पंचम व्याख्यान के रूप में श्री लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय नई दिल्ली के प्राकृत भाषा विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो. कल्पना जैन ने शनिवार को ’आचार्य महाप्रज्ञ का प्राकृत साहित्यः समाज को एक अनूठी देन’ विषय पर अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया। मुख्य वक्ता प्रो. कल्पना जैन ने आचार्य महाप्रज्ञ को शब्दों का जादूगर बताया तथा कहा कि उन्होंने आगम साहित्य का भाषा और शब्दावली पर बहुत काम किया हुआ है। उन्होंने आगमों के सम्पादन का चुनौतीपूर्ण कार्य करके दिखाया। सम्पादन कार्य में आई विभिन्न समस्याओं, अक्षरों व शब्दों का समाधान भी उन्होंने प्रस्तुत किया। प्राकृत भाषा को लोकभाषा माना जाता है, क्योंकि लोकभाषा के बहुत से शब्द प्राकृत में समाहित हो गए, जिन्हें सूक्ष्म और पारखी सम्पादकीय दृष्टि से सामने लाए गए। उन्होंने वेदों की छंदस् भाषा का उल्लेख करते हुए प्राकृत को वैदिक भाषा के समकक्ष बताया तथा कहा कि जब श्रुति को लिखित वेदों का रूप दिया गया तो उनमें बोलचाल की भाषा के शब्दों का समावेश भी हो गया। आचार्यश्री महाप्रज्ञ ने अनुपलबध प्राकृत व्याकरण के नियमों की जानकारी दी। आगमों का व्याकरण प्राचीन नियमों में सम्बद्ध है। प्रो. जैन ने बताया कि आचार्य तुलसी, आचार्य महाप्रज्ञ व सहयोगियों ने आगम के सम्पादन के महत्ती कार्य को पूर्ण किया। इसमें उन्होंने आर्ष व्याकरण और आर्ष प्राकृत के बारे में बताया।

प्राकृत व संस्कृत परस्पर सहयोगी भाषाएं

डॉ. समणी संगीत प्रज्ञा ने इस अवसर पर बताया कि आचार्य महाप्रज्ञ ने पहली बार प्राकृत भाषा में धाराप्रवाह व्याख्यान देकर सबको अचम्भित कर दिया था। व्याख्यान कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए विभागाध्यक्ष प्रो. दामोदर शास्त्री ने कहा कि प्राकृत एक सहज भाषा है, प्रकृतिदत्त है और संस्कृत को बनाया गया है। संस्कृत में व्याकरण नियमों की बहुतायत कर दी गई है। आधुनिक संस्कृत पाणिनी के व्याकरण पर आधारित है। जिसे व्याकरण का पूरा ज्ञान है, वहीं संस्कृत बोल व लिख सकता है, जबकि प्राकृत को सहज ही बोला जा सकता है। यह सीधी व सरल भाषा है। उन्होंने कहा कि प्राकृत वाले के लिए संस्कृत का ज्ञान आवश्यक है। दोनों भाषाओं का साथ जरूरी है। संस्कृत वालों को प्राकृत पढनी चाहिए और प्राकृत वालों का संस्कृत का अध्ययन अवश्य करना चाहिए। कार्यक्रम का संचालन डा. सत्यनारायण भारद्वाज ने किया। कार्यक्रम में अरिहंत कुमार जैन, प्रो. जयपाल भिवानी, मनोज रॉय, प्रियंका गुप्ता, पीके शीशधरण, जयकुमार उपाध्याय, शिल्पा घोष, राजू दूगड़, सुमत कुमार जैन, मीनू स्वामी, सुलेख जैन, नीरज कुमार, जयंत शाह, ममता शर्मा, आयुषी शर्मा, पवित्रा जैन, प्रेमकुमार सुमन, रजनीश गोस्वामी आदि उपस्थित रहे।

Thursday, 25 November 2021

जैन विश्वभारती संस्थान में संविधान दिवस पर सामुहिक उद्देशिका पठन किया और संकल्प लिया

 


संविधान की रक्षा के लिए समता, एकता और अखंडता जरूरी है- कुलपति

लाडनूँ 26 नवम्बर 2021। जैन विश्वभारती संस्थान विश्वविद्यालय में संविधान दिवस पर शुक्रवार को संविधान की उद्देशिका का सामुहिक पठन किया गया तथा कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ की अगुवाई में सामुहिक रूप से शपथ ग्रहण की गई, जिसमें देश के सम्पूर्ण प्रभुत्व, लोकतंत्रात्मक गणराज्य की अवधारणा की मजबूती और समस्त नागरिक अधिकारों की रक्षा के साथ कर्तव्य पालन करते हुए समस्त प्रकार की समता रखने और राष्ट्र की एकता और अखण्डता को बनाए रखने के लिए दृढ़संकल्प अभिव्यक्त किया गया। इस अवसर पर कुलपति ने संविधान दिवस की बधाई देते हुए कहा कि देश में विभिन्न समुदायों के जाति, धर्म, वर्ग, प्रांत, भाषा के अनुसार निवास करने वाले लोगों के बीच जरूरी भरोसा और सहयोग विकसित करने का काम संविधान करता है। देश को लोकतांत्रिक पद्धति से संचालित करने की व्यवस्था और सरकारों के अधिकारों की सीमा के साथ नागरिकों के अधिकारों और कर्त्तव्यों का निर्धारण भी संविधान करता है। संविधान ही देश को विकसित और सुदृढ बनाने तथा दिशा निर्धारण करने का काम करता है। कार्यक्रम में प्रो. नलिन शास्त्री ने संविधान की भावनाओं को विस्तार से बताया तथा कहा कि देश के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि संविधान का सम्मान करे। प्रो. रेखा तिवाड़ी और डॉ. युवराज सिंह खांगारोत ने भी अपनी भावनाएं व्यक्त की और संविधान के प्रति सम्मान को जरूरी बताया। कार्यक्रम में रजिस्ट्रार रमेश कुमार मेहता, विताधिकारी राकेश कुमार जैन, डॉ. बलवीर सिंह चारण, पंकज भटनागर, प्रगति चौरड़िया, डॉ. जेपी मिश्रा, दीपाराम खोजा, रमेशदान चारण आदि सहित सभी स्टाफ सदस्य उपस्थित रहे।

दिलों को जोड़ता है भारत का संविधान

विश्वविद्यालय के शिक्षा विभाग में संविधान दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में प्रो. बी.एल. जैन ने कहा कि 26 नवम्बर को संविधान सभा द्वारा संविधान को स्वीकार करने से महत्वपूर्ण दिन बन गया है। भारतीय संविधान के कारण शैक्षिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक आदि विकास संभव हो पाए हैं। संविधान ने सबको एकता के सूत्र में बांधा तथा जाति, रंग, क्षेत्र के भेद को मिटाया है। हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, जैन आदि सभी धर्मावलम्बियों को दिल से जोड़ने एवं अखंडता को मजबूत बनाने का सुअवसर प्रदान किया है। डॉ. बी.प्रधान ने संविधान संरक्षण की शपथ भी दिलायी। कार्यक्रम में शिक्षा संकाय के डॉ.मनीष भटनागर, डॉ. विष्णु कुमार, डॉ. अमिता जैन, डॉ. सरोज राय, डॉ. आभासिंह, डॉ. गिरिराज भोजक, प्रमोद ओला आदि उपस्थित रहे। कार्यक्रम में शिक्षा विभाग की एमएड, बीएड एवं बीए-बीएड, बीएससी-बीएड की लगभग 94 छात्राओं ने भाग लिया।

Friday, 12 November 2021

जैन विश्वभारती संस्थान में राष्ट्रीय सेवा योजना (एनएसएस) की दोनों इकाइयों के संयुक्त तत्वावधान में ‘बाल दिवस कार्यक्रम’ आयोजित

 


सफलता के लिए जरूरी है समयबद्धता- प्रो. त्रिपाठी

लाडनूँ, 13 नवम्बर 2021। जैन विश्वभारती संस्थान विश्वविद्यालय में भारत सरकार तथा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के निर्देशानुसार कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ के निर्देशन में आयोजित किए जा रहे ‘आजादी के अमृत महोत्सव’ के कार्यक्रमों की श्रृंखला के तहत राष्ट्रीय सेवा योजना (एनएसएस) की दोनों इकाइयों के संयुक्त तत्वावधान में ‘बाल दिवस कार्यक्रम’ आयोजित किया गया। दूरस्थ शिक्षा निदेशालय के निदेशक तथा आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. आनंद प्रकाश त्रिपाठी ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए पं. जवाहरलाल नेहरू के व्यक्तित्व एवं योगदान पर विचार प्रस्तुत किए और कहा कि प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में बाल्यकाल में तनावमुक्त जीवन जीता है तथा यह उसके विकास की अवस्था होती है। हमारा राष्ट्रीय कर्तव्य है कि बाल्यावस्था में ही बच्चों को उसके अनुरूप अवसर मिले। इसके साथ ही उन्होंने छात्राओं को प्रेरित करते हुए कहा कि किसी भी काम को निर्धारित समय पर पूरा करने की प्रतिबद्धता रखने से ही सफलता के मार्ग पर आसानी से अग्रसर हो सकते हैं। प्रारम्भ में राष्ट्रीय सेवा योजना इकाई प्रथम प्रभारी डॉ. प्रगति भटनागर ने संविधान निर्माण, राष्ट्रीय आंदोलन तथा राष्ट्र विकास में पंडित जवाहरलाल नेहरू के योगदान तथा बाल दिवस के आयोजन के महत्व पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम में संस्थान की छात्राओं में हेमपुष्पा चौधरी, पूनम राय, इशिता राजपुरोहित, पूजा इनाणिया, विशाखा, योगिता, नंदिनी जांगिड़ तथा अभिलाषा ने भी अपने विचार रखे। कार्यक्रम में अच्छी प्रस्तुति देने पर प्राचार्य प्रो. आनंद प्रकाश त्रिपाठी ने हेमपुष्पा चौधरी तथा पूनम राय को संस्थान का प्रतीक चिन्ह भेंट कर पुरस्कृत भी किया। कार्यक्रम में सहायक आचार्य अभिषेक चारण ने भी कविता के माध्यम से अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। अंत में राष्ट्रीय सेवा योजना इकाई द्वितीय प्रभारी डॉ. बलबीर सिंह ने सभी का आभार ज्ञापित किया। कार्यक्रम में श्वेता खटेड़, अभिषेक शर्मा, डॉ विनोद कुमार सैनी, देशना चारण आदि के साथ संस्थान के अनेक विद्यार्थी भी उपस्थित रहे।

Thursday, 11 November 2021

जैन विश्वभारती संस्थान विश्वविद्यालय के कुलपति सहित सभी अधिकारी-कर्मचारियों ने की आचार्यश्री महाश्रमण से विशेष भेंट

 


तेरापंथ समाज का मानो भाग्य है जैन विश्वभारती संस्थान- आचार्यश्री महाप्रज्ञ

जैन विश्वभारती संस्थान विश्वविद्यालय के अनुशास्ता एवं तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य श्री महाश्रमण ने कहा है कि लाडनूं का जैन विश्वभारती संस्थान एक अलग तरह का अनूठा विश्वविद्यालय है। यह तेरापंथ समाज के लिए तो मानो भाग्य ही बन चुका है। इस संस्थान के सभी शिक्षकों, अधिकारियों एवं विद्यार्थियों के भीतर संस्कार नजर आने चाहिए। आचरण का प्रभाव विद्यार्थी और समाज पर पड़ता है। विश्वविद्यालय के अधिकारियों व कार्मिकों से विशेष भेंट में उन्होंने विश्वविद्यालय को ‘ए’ श्रेणी दिए जाने को शुभ बताया तथा शास्त्रों में कहा गया है- अहंसविद्या चरणं पमोख्खए। यानि मोक्ष के लिए विद्या और आचरण का अनुशीलन करें। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र मेंज्ञान और आचरण दोनों का महत्व रहता है। ज्ञान के बिना आचरण अधूरा रहता है और आचरण के बिना ज्ञान भी अधूरा होता है। ज्ञान के साथ-साथ आचरण की साधना बहुत जरूरी है। कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने अपने सम्बोधन में बताया कि जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय अब आत्मनिर्भर बनगया है। इसके स्वरूप और विकास के लिए गुरू के इंगित का पूरी तरह से ध्यान में रखा जाएगा। दूरस्थ शिक्षा निदेशक प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने नैक टीम के सदस्यों द्वारा की गई टिप्पणियों का उल्लेख किया तथा कहा कि टीम ने इस विश्वविद्यालय की स्वच्छता को पूरा ध्यान में रखा और इसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के स्वचछता अभियान का साकार स्वरूप बताया। साथ ही इसकी अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की विशेषताओं, जैन विद्या, प्राकृत, जीवन विज्ञान आदि विशेष विषयों का विशिष्ट केन्द्र होने की बात कही। प्रो. त्रिपाठी ने इस अवसर पर ‘जिन्दगी की असली उड़ान अभी बाकी है’ कविता भी पढी, जिसमें उन्होंने ए-ग्रेड मिलने में ही संतोष करने के बजाए और आगे बढने के संकल्प को दर्शाया। प्रो. नलिन के. शास्त्री ने नैक के मूल्यांकन में मिली सफलता के लिए सभी के संगठित प्रयास को श्रेय प्रदान किया और कहा कि यहां ज्ञानयज्ञ में सबकी आहुतियां होने से ही सब अनुकूल होता जाता है। बैठक में प्रो. रेखा तिवाड़ी, विताधिकारी आरके जैन, डा. जुगल किशोर दाधीच आदि ने भी अपना मंतव्य व्यक्त किया। विशेष दर्शनलाभ और विमर्श के लिए आयोजित इस बैठक में सभी अधिकारीगण एवं कार्मिकगण उपस्थित थे।

जैन विश्वभारती संस्थान विश्वविद्यालय में एनसीसी की गर्ल्स बटालियन की भर्ती में छात्राएं दौड़ी



 लाडनूँ, 12 नवम्बर 2021। जैन विश्वभारती संस्थान विश्वविद्यालय में संचालित एनसीसी की 3राज गर्ल्स बटालियन में शुक्रवार को नई भर्ती के लिए छात्राओं से दस्तावेज संकलन के साथ दौड़ करवाई गई और मौखिक परीक्षा ली गई। जाएगी। लेफ्टिनेंट आयुषी शर्मा ने बताया कि शिक्षा विभाग एवं आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय की समस्त संकाय की छात्राओं के एनसीसी चयन के सम्बंध में भर्ती की इच्छुक छात्राओं से उनकी अंकतालिका, आधार कार्ड, जन आधार कार्ड, फीस चालान एवं बैंक पासबुक की दो-दो फोटोप्रतियां, खेल या सांस्कृतिक प्रतियेागिताओं सम्बंधी प्रमाण पत्र एवं परिवार से आर्मी में होने या सेवानिवृत होने के प्रमाण आदि के संकलन सहित उनकी दौड़ करवाई गई तथा साक्षात्कार लिया गया। इसके बाद चयनित छात्राओं की सूची जोधपुर में इस बटालियन के उच्चधिकारियों को भेजी जाकर उससे अंतिम चयन किया जाएगा। इस अवसर पर आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी, लेफ्टीनेंट आयुषी शर्मा एवं कोच अजयपालसिंह उपस्थित रहे।

जैन विश्वभारती संस्थान विश्वविद्यालय के दूरस्थ शिक्षा निदेशक प्रो. त्रिपाठी को मिला साहित्य का शिखर सम्मान

 


लाडनूँ, 12 नवम्बर 2021। जैन विश्वभारती संस्थान विश्वविद्यालय के दूरस्थ शिक्षा निदेशक प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी को प्रयागराज की भारतीय संस्कृति एवं साहित्य संस्थान द्वारा आयोजित विमर्श, सम्मान एवं कविकुम्भ के आयोजन के अवसर पर इस वर्ष का ‘राष्ट्रकवि सोहनलाल द्विवेदी शिखर सम्मान’ से नवाजा गया है। उन्हें यह सम्मान समाजसेवी विद्याशंकर तिवाड़ी और संस्थाध्यक्ष साहितयकार डा. विजयानन्द द्वारा प्रदान किया गया। प्रो. त्रिपाठी लम्बे समय से बाल साहित्य की रचना करते रहे हैं तथा इनकी 50 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित होने के साथ अनेक प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं भी छपती रहती है। प्रो. त्रिपाठी को पूर्व में प्रशासनिक एवं सांस्थनिक आदि विभिन्न क्षेत्रों से भी अनेक बार पुरस्कृत एवं सम्मानित किया जा चुका है। इस सम्मान के मिलने पर उन्हें यहां जैन धर्म एवं संस्कृति संरक्षण संस्थान की डा. मनीषा जैन, शरद जैन साहित्य संगम के अध्यक्ष जगदीश यायावर, अणुव्रत समिति के मंत्री डॉ. वीरेन्द्र भाटी मंगल, आलोक खटेड़ एवं अन्य सभी साहित्यकारों एवं साहितय प्रेमियों ने बधाइयां प्रदान की है।

Wednesday, 10 November 2021

कुलपति सहित जैन विश्वभारती संस्थान के कार्मिक-दल ने किए भीलवाड़ा में आचार्य महाश्रमण के दर्शन

 


शिक्षा के साथ संस्कारों का स्तर भी उच्चतर बने- आचार्यश्री महाश्रमण

लाडनूँ, 11 नवम्बर 2021। तेरापंथ धर्मसंघ के ग्याहरवें आचार्य एवं जैन विश्वभारती संस्थान विश्वविद्यालय के अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण ने कहा है कि यह विश्वविद्यालय उपकार के लिए बनाया हुआ गुरूदेव आचार्यश्री तुलसीपरिकल्पना की पूर्ति है। जैन शासन के विभिन्न संतों से मिलना होता है, तो स्वयं बताते हैं कि उन्होंने एम.ए. या पीएच.डी. जैन विश्वभारती संस्थान से किया है। इस संस्थान द्वारा हमें जैनत्व का प्रभाव भी देखने को मिलता है, जो सदैव बना रहना चाहिए। उन्होंने भीलवाड़ा में आए विश्वविद्यालय के कुलपति, कुलसचिव एवं स्टाफ से भेंट एवं कुलपति से संस्थान की पूर्ण जानकारी लेने के बाद अपने सम्बोधन में संस्थान द्वारा नैक से ‘ए’ ग्रेड मिलने को विशेष बात बताते हुए कहा कि शिक्षा की व्यवस्था और सुन्दर होनी चाहिए तथा शिक्षा के साथ संस्कार का स्तर भी उच्चतर रहना चाहिए। साथ ही अणुव्रतों का प्रभाव भी बना रहे। उन्होंने जैविभा विश्वविद्यालय में आध्यात्मिक, धार्मिक व शैक्षिक संदर्भों में अच्छा काम और विकास बना रहने की शुभाशंषा व्यक्त की।

नैक की टीम ने माना आदर्श संस्थान

कार्यक्रम में कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने अपने सम्बोधन में कहा कि जिस स्थान पर कभी जंगल था और पशु-पक्षी, सर्पादि विचरण करते थे, उस स्थान पर यह विश्वविद्यालय विकास के स्वरूप में स्थित है, जिसने पर्यावरण एवं पशु-पक्षियों के अस्तित्व के साथ उच्च शिक्षा के कार्य को संभाल रखा है। उन्होंने आचार्यश्री को बताया कि राष्ट्रीय प्रत्मयायन एवं मूल्यांकन परिषद नैक ने संस्थान को ‘ए’ श्रेणी प्रदान की है, जो उपलब्धि है और समाज को गौरवान्वित करने वाली है। यह संस्थान देश के उन विश्वविद्यालयों में खड़ा हो गया है, जिन्हें ‘ए’ ग्रेड प्राप्त है। उन्होंने इसे गुरूओं-अनुशास्ताओं की अनुकम्पा के रूप में लेते हुए कहा कि वे अपने ऑफिस में लगे आचार्य तुलसी, महाप्रज्ञ एवं आचार्य महाश्रमण की संयुक्त तस्वीर को नमन करके प्रतिदिन प्रवेश के साथ ही उनसे संस्थान को आगे बढाने की अर्चना करते हैं। कुलपति ने नैक टीम की रिपोर्ट के कतिपय अंशों को प्रस्तुत करते हुए बताया कि उन्होंने अपने लिए भी इस संस्थान को आदर्श बताते हुए वे यहां के डॉक्युमेंटेशन की प्रतियां लेकर गए हैं, ताकि अपने संस्थान में भी उन्हें लागू किया जा सके और उनके अनुरूप परिवर्तन लाया जा सके। उन्होंने इसे प्राचीन व आधुनिक शिक्षा के अद्भुत समन्वय का संस्थान माना और नैतिक शिक्षा के प्रसार के लिए देश के अग्रणी संस्थान के रूप में स्वीकार किया। इस संस्थान को उन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय मापदंडों में जैनविद्याओं के प्रसार, प्राकृत भाषा, योग व जीवन विज्ञज्ञन, अहिंसा एवं शांति के प्रसार एवं भारतीय मूल्यों के प्रसार के लिए उत्कृष्ट माना है।

महिला शिक्षा को दिया भरपूर बढावा

इस अवसर पर प्रो. समणी कुसुमप्रज्ञा ने आचार्य तुलसी के स्वप्न की साकार अभिव्यक्ति के रूप में जैविभा संस्थान को बताते हुए कहा कि वे बहुत सारी ऐसी बहिनों को जानती हैं, जिन्होंने मामूली पढी हुई होने और यहां तक कि दसवीं उतीर्ण भी नहीं होने के बावजूद इस संस्थान से शिक्षा ग्रहण की और एम.ए. तथा पीएच.डी. तक कर ली। यह संस्थान समाज के लिए गौरव की बात है। आचार्य तुलसी ने 1992 में यहां आने पर कहा था कि यहां के शिक्षक वेतन के लिए नहीं चेतन के लिए काम करें और आज हम देख रहे हैं कि यहां कुलपति से लेकर चतुर्थ श्रेणी तक के कर्मचारी भी समर्पित भाव से नैतिक मूल्यों के लिए काम कर रहे हैं। इस कार्यक्रम में उन्होंने आचार्यश्री महाश्रमण से छापर के पश्चात् अपना आगामी चातुर्मास लाडनूं फरमाने का निवेदन भी किया, ताकि तेरापंथ की राजधानी लाडनूं और जैन विश्वभारती संस्थान का और विकास हो सके। इस अवसर पर जैन विश्व भारती के पूर्व अध्यक्ष डॉ. धर्मचंद लूंकड़, रमेश सी. बोहरा, कुलसचिव रमेश कुमार मेहता, डॉ. जुगल दाधीच, दूरस्थ शिक्षा निदेशक प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी, उपनिदेशक पंकज भटनागर, विताधिकारी राकेश कुमार जैन, प्रो. रेखा तिवाड़ी, डॉ. युवराज सिंह खांगारोत, छा. भाबाग्रही प्रधान, डॉ. प्रद्युम्नसिंह शेखावत, डॉ. अशोक भास्कर, मोहन सियोल, दीपाराम खोजा, डॉ. प्रगति भटनागर, डॉ. रविन्द्रसंिह राठौड़, डॉ. सतयनारायण भारद्वाज, डॉ. विनोद कुमार सैनी, आयुषी शर्मा, अभिषेक चारण, प्रकाश गिड़िया, अजयपाल सिंह भाटी, डॉ. वीरेन्द्र भाटी मंगल, राजेन्द्र बागड़ी, शरद जैन आदि उपस्थित रहे।

जैन विश्वभारती संस्थान में ‘साईबर अपराधों के प्रति जागरूकता’ विषय पर वीडियो एवं पीपीटी निर्माण प्रतियोगिता का आयोजन

पीपीटी निर्माण प्रतियोगिता में नीतू और वीडियो निर्माण में प्रियंका प्रथम रही

लाडनूँ, 11 नवम्बर 2021। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा निर्देशित ‘साईबर सुरक्षा कार्यक्रम’ के अन्तर्गत जैन विश्वभारती संस्थान विश्वविद्यालय में ‘साईबर अपराधों के प्रति जागरूकता’ विषय पर वीडियो एवं पीपीटी निर्माण प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के प्रभारी प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी व प्रो. बीएल जैन ने बताया कि कार्यक्रम का उद्देश्य वर्तमान में बढते जा रहे साईबर अपराधों के प्रति विद्यार्थियों में जागृति पैदा करना है। उन्होंने प्रतियोगिता के परिणामों के बारे में बताया कि प्रतियोगिता में संस्थान के विद्यार्थियों ने बढ-चढ कर हिस्सा लिया। प्रतियोगिता में पीपीटी निर्माण में नीतू जोशी प्रथम रही और निरंजन कंवर द्वितीय व भूमिका सोनी तृतीय रही। वीडियो निर्माण में प्रथम स्थान पर प्रियंका सोनी रही और द्वितीय आयशा परवीन च तृतीय अमीषा पूनिया रही। प्रतियोगिताओं की निर्णायक डा. सरोज राय और प्रमोद ओला थी। कार्यक्रम के संयोजक डा. गिरधारीलाल शर्मा व डा. बलवीर सिंह चारण थे।

Tuesday, 9 November 2021

संस्थान को "A" ग्रेड मिलने पर कार्यक्रम का आयोजन

 


मूल्य-आधारित शिक्षा की नीतिगत विशेषता रखता है जैविभा विश्वविद्यालय- कुलपति

जैन विश्वभारती संस्थान विश्वविद्यालय को ‘राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद (नैक) द्वारा ‘ए’ ग्रेड प्रदान किए जाने पर यहां सेमिनार हॉल में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने सभी शैक्षणिक एवं गैर शैक्षणिक कार्मिकों को बधाई देते हुए बताया कि यह सबकी मेहनत और सामूहिक प्रयासों से हुआ है। उन्होंने इस संस्थान को ‘ए-प्लस’ ग्रेड मिलने की उम्मीद जताते हुए बताया कि हमें ‘ए’ ग्रेड मिलने पर ही संतोष नहीं करना है और लगातार प्रयासों और सुधारों पर ध्यान देकर अगली बार ‘ए-प्लस’ ग्रेड प्राप्त करनी है। सभी संस्थान सदस्यों में परस्पर जुड़ाव बना रहने पर ही परिणाम की उत्कृष्टता बनती है। उन्होंने कहा कि ‘ए’ ग्रेड मिलने पर भी सबको हर्ष हुआ है और जश्न का माहौल बना है, लेकिन इससे भी आगे निकलने की उम्मीद हमें निरन्तर रखनी होगी। संस्थान के इन्फ्रास्ट्रक्चर और स्वच्छता ने यहां आई नैक की टीम को सबसे अधिक आकर्षित किया। हमारे सभी प्रस्तुतिकरण भी श्रेष्ठ थे और लाईब्रेरी और पांडुलिपि संरक्षण कार्य की टीम द्वारा अत्यधिक प्रशंसा की गई। टीम के सदस्यों ने उनके रिकॉर्डिंग तक अपने विश्वविद्यालयों के लिए साथ ले गए और अपने व्यक्तियों को प्रशिक्षण के लिए भी यहां भिजवाने की बात कही है।

ए-ग्रेड प्राप्त ड्यूल मोड वाला देश का पहला विश्वविद्यालय

दूरस्थ शिक्षा निदेशक प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने नैक टीम के सदस्यों की भावनाओं के बारे में बताया तथा कहा कि जैन विश्वभारती संस्थान ड्युअल मोड में मूल्यांकित होने वाला देश का प्रथम विश्वविद्यालय है, जिसे ‘ए’ ग्रेड प्राप्त हुआ है। यह संस्थान देश के श्रेष्ठ ‘ए’ ग्रेड स्तर के चुनिन्दा विश्वविद्यालयों में सम्मिलित हो चुका है। उन्होंने बताया कि नैक टीम भी यह मानती है कि इस संस्थान को जैन विद्या एवं योग के क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तरीय ‘सेंटर ऑफ एक्सीलेंस’ केन्द्र के रूप में मान्यता दिए जाने की आवश्यकता है। इस संस्थान को उन्होंने प्राचीन भारतीय पाण्डुलिपियों का अन्तर्राष्ट्रीय सन्दर्भ केन्द्र बनने की पूर्ण अर्हता सम्पन्न माना है और कहा है कि संस्थान जैन आगमों पर आधारित पांडुलिपियों में निहित प्रमुख ज्ञान-भंडार का पता लगाकर वैश्विक जगत् को समृद्ध कर सकता है।

गुणवतापरक शोध पर ध्यान दें

प्रो. नलिन के. शास्त्री ने विश्वविद्यालय की इस उपलब्धि के बाद हमें अगले पांच साल के लिए निश्चिंत होकर बैठ नहीं जाना है, बल्कि यूजीसी के मानक पर अपने-अपने विभागों को सतत गति देते रहना है। हमें पांचवर्षीय परियोजना पर अपना ध्यान केन्द्रित करके अनवरत क्रियाशील व गतिशील रहना है। हमें गुणवतापरक शोध पर विशेष ध्यान देना होगा तथा पांच साल बाद ‘ए-प्लस’ ग्रेड हासिल करनी है। कार्यक्रम को प्रो. दामोदर शास्त्री, प्रो. अनिल धर, प्रो. रेखा तिवाड़ी, डॉ. प्रद्युम्नसिंह शेखावत, डॉ. पुष्पा मिश्रा, श्वेता खटेड़, प्रमोद ओला, दीपाराम खोजा आदि ने भी सम्बोधित किया। कार्यक्रम में संस्थान के शैक्षणिक च गैर शैक्षणिक सभी कर्मचारीगण उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन डॉ. युवराजसिंह खांगारोत ने किया।

संस्थान को NAAC से मिला "A" ग्रेड

 


ड्यूल मोड में मूल्यांकित होने वाला देश का प्रथम विश्वविद्यालय

भारत सरकार द्वारा देश के उच्च शिक्षण संस्थानों के मूल्यांकन के लिए गठित ‘राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायान परिषद (नैक)’ की पांच सदस्यीय टीम ने यहां जैन विश्वभारती संस्थान विश्वविद्यालय का दौरा करके निरीक्षण किया। इस निरीक्षण के बाद नैक ने जैन विश्वभारती संस्थान को ‘ए’ ग्रेड प्रदान किया है। इस ‘ए-ग्रेड’ प्राप्त होने के बाद यह संस्थान देश के श्रेष्ठ ‘ए’ ग्रेड स्तर के चुनिन्दा विश्वविद्यालयों में सम्मिलित हो गया है। जैन विश्वभारती संस्थान ड्यूल मोड में मूल्यांकित होने वाला देश का प्रथम विश्वविद्यालय है। संस्थान के नैक एक्रीडिशन में ए-ग्रेड प्राप्त होने पर यहां संस्थान में खुशियां मनाई गई।

राष्ट्रीय केन्द्र ‘सेंटर ऑफ एक्सीलेंस’ बने

कुलसचिव रमेश कुमार मेहता ने बताया कि नैक टीम ने अपनी मूल्यांकन रिपोर्ट में संस्थान के बारे में अपनी राय देते हुए लिखा है- जैन विद्या एवं योग के क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तरीय ‘सेंटर ऑफ एक्सीलेंस’ केन्द्र के रूप में जैन विश्वभारती संस्थान को मान्यता दिए जाने की आवश्यकता है। संस्थान प्राचीन भारतीय पाण्डुलिपियों का अन्तर्राष्ट्रीय सन्दर्भ केन्द्र बनने की पूर्ण अर्हता रखता है। संस्थान जैन आगमों पर आधारित पांडुलिपियों में निहित प्रमुख ज्ञान-भंडार का पता लगाकर वैश्विक जगत् को समृद्ध कर सकता है। नैक रिपोर्ट के अनुसार इस संस्थान का विजन, मिशन, नीतियां और व्यावहारिक प्रक्रियाएं भारतीय मूल्यों, संस्कृति तथा अनुशास्ताओं की परम्पराओं पर आधारित है। संस्थान के पाठ्यक्रमों को शिक्षा के माध्यम से समग्र मानवता के विकास के लिए समाज की अपेक्षाओं के अनुरूप विकसित किया गया है। अहिंसा और शांति के क्षेत्र में विशिष्ट शिक्षण, अनुसंधान और प्रचार-प्रसार इस संस्थान के विशिष्ट पदचिह्नों को निर्मित करता है। संस्थान सूचना प्रौद्योगिकी के उच्च स्तर के अनुप्रयोगों के साथ आधुनिक और पारम्परिक शिक्षा प्रणाली का एक आदर्श मिश्रण है।

दूरदृष्टि व नवाचारों से आया बदलाव

कुलसचिव मेहता के अनुसार यह सब उपलब्धि कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ द्वारा दूरदृष्टिपूर्ण निर्णयों एवं विकास के लिए नवीन आयाम स्थापित करने से हासिल हो पाई है। उनके प्रयासों के कारण ही आज यह विश्वविद्यालय पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर बन पाया है। उन्होंने बताया कि कुलपति प्रो. दूगड़ ने एक अभिभावक के रूप में पूरे स्टाफ और विद्यार्थी वर्ग के साथ अपना रवैया व सम्बंध बनाए रखे और उनकी अपनी प्रगति के लिए उनमें रूचि का जागरण किया। इसके लिए उनके द्वारा शुरू किए गए नवाचार कहीं अन्यत्र नहीं मिल सकते। यहां विदेशों के विश्वविद्यालयों से अध्ययन के लिए काफी विद्यार्थी आते रहे हैं। वहां के विश्वविद्यालयों से इसका एमओयू है। विश्वविद्यालय अपने अन्तर्राष्ट्रीय स्वरूप को बनाए रखकर यहां मरूभूमि क्षेत्र में शिक्षा की अलख जगाए हुए है, जो विशेष बात है।

जैन विश्वभारती संस्थान मान्य विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति को पद्मश्री पुरस्कार मिलने पर हर्ष

 


गांधीवाद के प्रखर प्रचारक सर्वोदय विचारक डॉ. रामजी सिंह को राष्ट्रपति द्वारा पद्मश्री

लाडनूँ, 09 नवम्बर 2021। जैन विश्वभारती संस्थान मान्य विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. रामजी सिंह को समाजसेवा के लिये राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द द्वारा पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किये जाने पर यहां हर्ष जताया गया और उनकी स्वस्थता पूर्वक दीर्घायु के लिये कामनायें व्यक्त की गई। प्रो. रामजी सिंह को हालही में 8 नवम्बर को राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में पद्मश्री पुरस्कार प्रदान करके राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सम्मानित किया था। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचारों को देश-विदेश में फैलानेवाले सर्वोदय विचारक 94 वर्षीय डॉ. रामजी सिंह वर्ष 1992 से 94 तक जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय के कुलपति रहे थे। उन्होंने 1993 में शिकागों में आयोजित हुए विश्व धर्म संसद में जैनिज्म पर भारत का प्रतिनिधित्व किया था। कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने बताया कि प्रो. रामजी सिंह सादगी की प्रतिमूर्ति हैं। उन्होंने अथक प्रयास करके संपूर्ण भारत में गांधी विचार की पढ़ाई शुरू कराई। वे बिहार के भागलपुर संसदीय क्षेत्र से सांसद रहे हैं। देश के पहले गांधी विचार विभाग की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभानेवाले और विभाग के संस्थापक अध्यक्ष डॉ. रामजी सिंह रहे हैं। मूल रूप से बिहार के भागलपुर के रहने वाले प्रो. रामजी सिंह के प्रयासों से देश के पहले गांधी विचार विभाग का उद्घाटन दो अक्टूबर 1980 को भागलपुर विश्वविद्यालय में किया गया था। तब यह देश का इकलौता विभाग था, जहां गांधी विचार की पढ़ाई शुरू हुई थी। इन्होने इसके लिये अपनी महत्वपूर्ण व दुर्लभ कही जानेवाली 5 हजार पुस्तकें दान कर दी थी। आज 25 विश्वविद्यालयों में गांधी विचार विभाग की पढ़ाई हो रही है। पद्मश्री का पुरस्कार के बारे में उनका कहना था कि यह पुरस्कार उन्हें नहीं बल्कि समाज के लिए काम करने वाले लोगों को समर्पित है।