Friday, 30 July 2021

जैन विश्वभारती संस्थान मे पांच दिवसीय एडमिनिस्ट्रेटिव स्टाॅफ डवलपमेेट प्रोग्राम का आयोजन

 

नागरिकों को सशक्त बनाने का विशिष्ट कानून है सूचना का अधिकार- डाॅ. परिहार

लाडनूं 30 जुलाई 2021 । जैन विश्वभारती संस्थान में कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड के मार्गदर्शन में चल रहे पांच दिवसीय ऑनलाईन एडमिनिस्ट्रेटिव स्टाॅफ डवलपमेेट प्रोग्राम के तहत केन्द्रीय विश्वविद्यालय राजस्थान किशनगढ के संयुक्त निदेशक कुलसचिव डाॅ. हरीसिंह परिहार ने सूचना का अधिकार विषय पर अपने व्याख्यान में सूचना के अधिकार कानून की जानकारी देते हुए बताया कि इस आंदोलन की शुरुआत 1990 में मजदूर किसान शक्ति संगठन के नेतृत्व में हुई। राजस्थान में काम कर रहे इस संगठन ने सरकार के सामने मांग रखी कि अकाल राहत कार्य और मजदूरों को दी जाने वाली पगार के रिकाॅर्ड का सार्वजनिक खुलासा किया जाए। यह मांग सबसे पहले राज्य के बेहद पिछड़े इलाके भीम तहसील में उठाई गई थी, जो सूचना के अधिकार कानून की जनक बनी। भारतीय संसद ने भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने और सरकारी प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने के लिए साल 2005 में सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून बनाया था। उन्होंने इसके उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सूचना का अधिकार अधिनियम का मूल उद्देश्य नागरिकों को सशक्त बनाने, सरकार के कार्य में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व को बढ़ावा देना, भ्रष्टाचार को नियंत्रित करना और वास्तविक अर्थों में हमारे लोकतंत्र को लोगों के लिए कामयाब बनाना है। उन्होंने कहा कि यह कानून नागरिकों को सरकार की गतिविधियों के बारे में जानकारी देने के लिए एक बड़ा कदम है। आवेदन प्रक्रिया, सूचना के प्रकार, शुल्क आदि की जानकारी देते हुए डाॅ. परिहार ने बताया कि इस अधिनियम के अंतर्गत किसी भी लोक प्राधिकरण (सरकारी संगठन या सरकारी सहायता प्राप्त गैर सरकारी संगठनों) से सूचना प्राप्त की जा सकती है। प्रथम अपीलीय प्राधिकरण, लोक सूचना अधिकारी से वरिष्ठ अधिकारी होता है। वह आवेदन स्वीकार करने, आवेदक द्वारा मांगी गई सूचना के अनुसार लोक सूचना अधिकारी को सूचना आपूर्ति का आदेश देने या सूचना के अधिकार अधिनियम के किसी भाग के अंतर्गत आवेदन को अस्वीकृत करने के लिए उत्तरदायी होता है। प्रारम्भ में मोहन सियोल ने अतिथियों का परिचय देते हुए स्वागत किया। अंत में संस्थान के कुलसचिव रमेशचन्द्र मेहता ने आभार ज्ञापन किया। कार्यक्रम में संयोजक प्रो. बीएल जैन सहित संस्थान के सभी प्रशासनिक कर्मचारी भाग लिये।

Wednesday, 7 July 2021

जैन विश्वभारती संस्थान में आचार्य महाप्रज्ञ के सामाजिक योगदान और जीवन पर कार्यक्रम आयोजित

 जैन विश्वभारती संस्थान में आचार्य महाप्रज्ञ के सामाजिक योगदान और जीवन पर कार्यक्रम आयोजित

महाप्रज्ञ की 102वीं जयंती मनाई

लाडनूँ, 7 जुलाई 2021। जैन विश्वभारती संस्थान के आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय के कान्फ्रेंस हाॅल में बुधवार को संस्थान के द्वितीय अनुशास्ता रहे आचार्यश्री महाप्रज्ञ की 102वीं जयन्ती पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। प्राचार्य प्रो. आनन्दप्रकाश त्रिपाठी की अध्यक्षता में हुए इस कार्यक्रम में ‘आचार्य महाप्रज्ञ के अनुकरणीय जीवन एवं उनके सामाजिक योगदान’ विषय पर वक्ताओं ने अपने विचार व्यक्त किए। मुख्य वक्ता प्रो. त्रिपाठी ने व्यक्ति एक-रूप अनेक की उक्ति को परिभाषित करते हुए आचार्य महाप्रज्ञ द्वारा दी गयी प्रेक्षाध्यान की पद्धति का महत्व बताया तथा साथ ही आधुनिक शिक्षा पद्धति पर महाप्रज्ञ के विचारों पर प्रकाश डालते हुए उनके कार्यों और रचनाओं का विवरण प्रस्तुत किया। प्रो. त्रिपाठी ने बताया कि 1949 में अणुव्रत आन्दोलन से लेकर अर्थशास्त्र तक को नैतिकता की कसौटी पर ले जाने की सोच रखने वाले कर्मनिष्ठ मुनिवर आचार्य महाप्रज्ञ द्वारा कवित्व धर्म की पालना करते हुए समाज को साहित्य रूपी दर्पण के वास्तविक साक्षात्कार सहज रूप से करवाया था। उन्होंने महाप्रज्ञ की लेखनी में भाषा की सहजता एवं उनकी शैलीगत विशिष्टताओं की ओर सभी का ध्यान आकृष्ट करवाया। इस अवसर पर अभिषेक चारण ने ‘युगान्तर कर्मयोगी’ की समीक्षा प्रस्तुत करते हुए बताया कि उसमें आचार्य महाप्रज्ञ के सम्पूर्ण जीवनवृत को अभिव्यक्त किया गया है। उन्होंने प्रो. आनंदप्रकाश त्रिपाठी की कृति की प्रशंसा की। इस अवसर पर डाॅ. बलवीरसिंह ने भी आचार्य महाप्रज्ञ के जीवन पर प्रकाश डालते हुए अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम में डॉ. विनोदकुमार सैनी, अभिषेक शर्मा, घासीलाल शर्मा आदि उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन अभिषेक चारण ने किया।

Saturday, 3 July 2021

जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में सात दिवसीय नेशनल एफडीपी कार्यक्रम का आयोजन

 

उच्च शिक्षा का विषय-चिन्तन सार्वभौमिक होना चाहिए- प्रो. बैरवाल

लाडनूँ, 3 जुलाई 2021। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में चल रहे सात दिवसीय नेशनल एफडीपी कार्यक्रम के तहत चैधरी रणवीरसिंह विश्वविद्यालय जींद हरियाणा के प्रो. संदीप बैरवाल ने ‘उच्च शिक्षा के विविध आयाम’ पर बोलते हुए कहा कि यह विषय सार्वभौमिक होना चाहिए। सार्वभौमिक तरीके से ही इस विषय का प्रयोग किया जाना चाहिए। यह कोई नया विषय नहीं है। अनेक कमेटियों, विभिन्न नीतियों एवं नई शिक्षा नीति-2020 में इस पर पूरा जोर दिया गया है। हमारी शोध का विषय भी अन्तर्विषयी, बहुविषयी, क्राॅसविषयी होना चाहिए। तभी इसका शिक्षा में सार्थक प्रयोग किया जा सकता है। साथ ही विशेष प्रकार के विद्यार्थियों के लिए अन्तर्विषयी शिक्षा का प्रयोग किया जा सकता है।

विश्वविद्यालयी शिक्षा में सुधार की जरूरत

प्रो.नलिन के. शास्त्री ने ‘उच्च शिक्षा में नवीन प्रवृतियां’ विषय पर कहा कि विश्वविद्यालय की उच्च शिक्षा में असमानता की भावना, प्रदेश में गुणवतापूर्ण विश्वविद्यालयों की कमी, ग्रामीण विश्वविद्यालय की कमी, गुणवतापूर्ण शिक्षा का अभाव, पाठ्यक्रम में सृजनात्मकता का अभाव, नवोन्मेष विधियों की कमी, मानवीय व भौतिक संसाधनों का कमी, शिक्षकों व विशेषकर योग्य शिक्षकों का अभाव, छात्र-शिक्षकों का उचित अनुपात नहीं होना, प्रामाणिकता की कमी व नैक के प्रति उदासीनता, शोध की गुणवता में गिरावट, अन्तःसम्बंध शोध की कमी आदि चुनौतियां हैं, जिनका समाधान नई शिक्षा नीति के क्रियान्वयन से किया जा सकता है। नई शिक्षा नीति समग्र विकास परक, रोजगार परक शिक्षा, लचीलेपन की शिक्षा, वैश्विक शिक्षा से ओतप्रोत तथा मानव सृजन का विकास करने में सक्षम है।

तकनीकी व डिजीटल शिक्षा को दे बढावा

प्रो. शास्त्री ने कहा कि शिक्षण, शोध और प्रसार के क्षेत्र में विश्वविद्यालयों को विशेष व अनूठी भूमिका निभाने की जरूरत है। इसके लिए शिक्षकों को ऊर्जावान बनाना, अच्छा कार्य करने वाले संस्थानों को आगे बढाना, व्यक्तित्व का निर्माण करना, वंचित वर्ग को आगे बढाना, प्रबंधन को पारदर्शी बनाना, भारतीय शिक्षा को बढाना, नए प्रवर्तन को बढाना, तकनीकी प्रयोग को श्रेष्ठ बनाना, मोबाईल व डिजीटल से शिक्षा व परीक्षा, मानवीय समस्याओं के समाधान तथा प्रोजेक्ट बेस लर्निंग का प्रचलन बढाना होगा। विभागाध्यक्ष प्रो. बीएल जैन ने प्रारम्भ में वक्ताओं का परिचय प्रस्तुत किया। अंत में डाॅ. सरोज राय व डाॅ. बी. प्रधान ने धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम में डाॅ. बाबूलाल मीणा, डाॅ. विनोद जैन, डाॅ. रविन्द्र राठौड़, डाॅ. लिपि जैन, डाॅ. अमित राठौड़, डाॅ. मनीष भटनागर, डाॅ. अमिता जैन, डाॅ. सरोज राय, डाॅ. आभासिंह, डाॅ. गिरीराज भोजक, डाॅ. विष्णु कुमार, डाॅ. गिरधारी लाल शर्मा, डाॅ. ममता सोनी, डाॅ. प्रद्युम्नसिंह शेखावत, प्रमोद ओला, ललित कुमार आदि उपस्थित रहे।