Sunday 25 April 2021

कोरोना की दवा 2-डीजी की खोज में लाडनूँ के जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के प्रोफेसर की अहम भूमिका



 

कोविड-19 के उपचार की भारतीय दवा के आविष्कार में जैन विश्वभारती संस्थान के प्रोफेसर इमेरिटस की शोध बनी आधार

लाडनूँ। भारत की शीर्ष शोध संस्था डी.आर.डी.ओ. द्वारा कोविड-19 के उपचार के लिए विकसित की गयी दवा के विकास के मूल में जैन विश्व भारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) लाडनूँ के प्रोफेसर इमेरिटस प्रो. विनय जैन की शोध आधार बनी है। मार्च 2020 में उनके द्वारा प्रकाशित शोध पत्र में 2-डी-औक्सी-डी-ग्लूकोज (2-DG), जो एक रेडियो-कीमो मौ, डीफायर दवा के रूप में कैंसर के उपचार में उपयोगी होता है, के कोविड-19 के उपचार हेतु उपयोग किये जाने पर जोर दिया गया था। प्रो.जैन के साथ पातंजलि योग पीठ, सविता इंस्टीटयूट और मेडिकल एण्ड टेक्नीकल साइन्सेज के शोधार्थियों ने लीजेंड रिसेप्टर डोकिंग तकनीक का प्रयोग किया और मौलीक्युलर डाईनैमिक्स विश्लेषण के माध्यम से वायरस रिसेप्टर्स का अध्ययन किया। संस्थान के कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने प्रो. विनय जैन एवं उनके अन्य सहयोगियों को बधाई देते हुए कहा कि कोविड-19 के सीधे उपचार के लिए विकसित की गयी दवा के गर्भ में यह शोध, ऐतिहासिक रूप से वैश्विक महत्त्व रखती है, क्योंकि इसने विश्व को इस महामारी से जूझने के प्रथम उपचार को संस्तुत करने की युगांतरकारी सफलता को हासिल करने का मार्ग प्रशस्त किया है। इस सम्बंध में प्रमुख समासेवी नोरतन रामपुरिया ने जैन विश्वभारती संस्थान को बधाई देते हुए कहा है कि डीआरडीओ द्वारा जारी कोरोना की दवा में जैन विश्व भारती का भी अवदान है। यह अपने आप में सम्पूर्ण तेरापंथ समाज के लिए हर्ष और सम्मान का विषय है। गौरतलब है कि अब तक केवल वैक्सीन को ही कोरोना का बचाव समझख जा रहा था, पर अब डी.आर.डी.ओ. द्वारा यह पाऊडर के रूप में दवा का आविष्कार अति महत्वपूर्ण खोज है। यह दवा शरीर में ऑक्सीजन की अपेक्षा को कम करने में सहायक है तथा इसके आपातकालीन उपयोग को मान्यता मिल चुकी है। इह 2-डीजी नामक दा का निर्माण डीआरडीओ ने डाॅ. रेड्डी लैब के साथ मिल कर किया है। इस दवा की आपूर्ति प्रतिदिन 10 हजार पैकेटों के साद दिल्ली में एम्स, एएफएमएस तथा डी.आर.डी.ओ. के अस्पतालों में शुरू की जा चुकी है। इस दवा को रक्षामन्त्री राजनाथ सिंह व स्वास्थ्य मंत्री डाॅ. हर्षवर्धन ने गत 17 मई कै जारी किया था।

Saturday 24 April 2021

Grand Release of Jain Monograph Series by Anushastā Ācāryashree Mahāshraman


 In the holy presence of Anushastā Ācāryashree Mahāshraman, the monograph series of Bhagwan Mahavir International Research Center (BMIRC, Jain Vishva Bharti, Ladnun) was unveiled by Pujya Gurudev at Mahashramana Vatika, Shamshabad (Telangana) on 8th November 2020.

HH Acharya Shri Mahashramanji; the eleventh Acahrya, the supreme head of Jain Shvetambar Terapanth sect and the Anushasta of the Jain Vishva Bharati Institute (Deemed-to-be University), Ladnun congratulated the Vice-Chancellor of the University, Pro. B.R. Dugar for bringing out a monographic series on a wide variety of contemporary philosophical issues under the sphere of the Jainological studies. He expressed his satisfaction to see the monographic studies concerned with questions that cannot be addressed from the standpoint of a single discipline. He blessed the Vice-Chancellor Prof B.R. Dugar with the belief that monographs covering various dimensions of Jainism would be respected by the academia as an outstanding work, a monument of erudition and philosophical appreciation all over the globe.

 

The program to release the monographs was inaugurated by the divine sound of Mahamantra Namokar. The Honorable Vice-Chancellor of Jain Vishva Bharati Institute, Prof. B.R. Dugar presented the monograph series to Acharya Gurudev and Sadhvi Pramukha Kanakpragyaji.

 

Prof. B.R. Dugar, stated the purpose and the utility of the monograph series for understanding Jain philosophy which is indeed true philosophy. Further he said that “keeping in mind the fact that, people of any field can take advantage of this by understanding it in simple language, BMIRC took the initiative to write a monograph on each Jain concept, so that every person can become familiar with the scientism of Jainism”.

 

Sadhvi Pramukha Kanakpragya Ji said ‘The source of understanding Jainism is our Shvetambara and Digambara Prakrit Agamas (Canonical Literature in Prakrit Language), which are filled with immense knowledge. Through these monographs, a common person will also be able to understand its essence in simple language and at the same time will be attracted to read the canonical literature in depth and be inspired.

 

On this momentous occasion, the President of Chaturmas Arrangement Committee Shri Mahendra Bhandari, Board member of the JVBI, T. Amarchandji Lunkad Shri Santosh ji Katrela ,Shri Dharmchand Ji Lunkar, Shri Kevalchandji Mandot, B. Ramesh ji Bohra, , and other distinguished guests were present, and everyone appreciated and admired the effort.

 

This monograph series, based on the diverse theories and themes of Jain Philosophy which have been prepared with the great efforts of Prof. SamaniRijuPrajna Ji (Director of BMIRC) and with the cooperation of renowned scholars of the country.

The list of monographs is as under:

Series No.

Name of the Monograph

Author

1.

Introduction to Jainism

Mukhya Niyojika Sadhvi Vishrut Vibha

2.

Jainism:A Living Realism

Prof. S. R. Vyas

3.

Jain Doctrine of Reality

Prof. Samani Riju Prajna and

Dr. Samani Shreyas Prajna

4.

Jain Doctrine of Knowledge

Dr. Sadhvi Chaitanya Prabha

5.

Jain Doctrine of Karma

Prof. Samani Riju Prajna and Sarika Surana

6.

Jain Doctrine of Anekanta

Dr. Samani Shashi Prajna

7.

Jain Doctrine of Naya

Prof. Anekant Kumar Jain

8.

Jain Doctrine of Nine Tattvas

Dr. Pradyuman Singh Shah

9.

Jain Doctrine of Six Essentials

Dr. Arihant Kumar Jain

10.

Jain Doctrine of Aparigraha

Dr. SushmaSinghvi and

Dr. Rudi Jansma

11.

Jain Doctrine of Nyaya

Prof. Samani Riju Prajna

Dr. Samani Shreyas Prajna

12.

Jain Doctrine of Dreams

Dr. Sadhiv Rajul Prabha

13.

Jain Doctrine of Aayushya

Dr. Sadhvi Chaitanya Prabha

14.

Introduction to Preksha Meditation

Mukhya Niyojika Sadhvi Vishrut Vibha

जैन विश्व भारती संस्थान द्वारा भगवान् महावीर जयंती के उपलक्ष्य में दर्शन दिवस के अंतर्गत राष्ट्रीय वेबिनार आयोजित

 



National Webinar Report

दर्शन दिवस के अंतर्गत भगवान् महावीर जयंती के उपलक्ष्य में

जैनविद्या तथा तुलनात्मक धर्म एवं दर्शन विभाग, जैन विश्व भारती संस्थान

द्वारा आयोजित

एवं

भारतीय दर्शन अनुसंधान परिषद (नई दिल्ली )

द्वारा प्रायोजित

राष्ट्रीय वेबिनार

"आधुनिक युग में भगवान् महावीर के दर्शन की प्रासंगिकता”

Relevance of Lord Mahavira’s Philosophy in the Modern Era

दर्शन दिवस के अंतर्गत भगवान् महावीर जयंती के उपलक्ष्य में, जैनविद्या तथा तुलनात्मक धर्म एवं दर्शन विभाग, जैन विश्व भारती संस्थान, लाडनूं द्वारा आयोजित तथा भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् (नई दिल्ली ) द्वारा प्रायोजित ‘आधुनिक युग में भगवान् महावीर के दर्शन की प्रासंगिकता” विषयक राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन २४ अप्रैल २०२१ को पूर्वाह्न 11 बजे किया गया । माननीय कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ जी के संरक्षकत्व में आयोजित इस वेबिनार के मुख्य अतिथि भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् (नई दिल्ली ) के माननीय अध्यक्ष प्रो. आर.सी. सिन्हा थे ।

भगवान् महावीर दर्शन के विभिन्न आयामों पर हुए, देश के मूर्धन्य विद्वानों के व्याख्यानों से सुजज्जित इस राष्ट्रीय वेबिनार का शुभारम्भ जैन विश्व भारती संस्थान की मुमुक्षु बहनों द्वारा “महावीर स्तुति” से हुआ । तत्पश्चात विभाग की विभागाध्यक्षा प्रो. समणी ऋजुप्रज्ञा ने अपने सभी आमंत्रित माननीय वक्ताओं एवं विद्वान् अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि “भगवान् महावीर के २६२० वें जन्म कल्याणक की सच्ची सार्थकता तभी है, जब हम उनके दर्शन को अपनाकर “सर्व जन हिताय, सर्व जन सुखाय” सिद्धांत को आत्मसात करेंगे । उन्होंने कहा कि ‘वर्तमान समय में भगवान महावीर के अहिंसा, अनेकांत एवं अपरिग्रह जैसे सिद्धांत निश्चय ही सर्वोदयी संमार्ग दिखा सकते हैं’ ।

इस राष्ट्रीय संगोष्ठी के संयोजक, जैनविद्या तथा तुलनात्मक धर्म एवं दर्शन विभाग में सहायक आचार्य डॉ. अरिहन्त कुमार जैन ने सभी आमंत्रित विद्वान् वक्ताओं का विस्तृत परिचय देते हुए ‘भगवान् महावीर के दर्शन’ की उपयोगिता पर प्रकाश डाला और कहा कि “भगवान् महावीर का दर्शन, अध्यात्म और विज्ञान से परिपूर्ण एक सार्वभौमिक दर्शन है, जिसके सिद्धांत सर्वोदयी और शाश्वत हैं” ।

 

प्रथम वक्ता के रूप में श्रीलाल बहादुर शास्त्री केंद्रीय संस्कृत विद्यापीठ, नई दिल्ली के जैन दर्शन विभाग के प्रो. अनेकांत कुमार जैन ने ‘भगवान् महावीर का विभिन्न संस्कृतियों पर प्रभाव’ विषय पर कहा कि “भगवान महावीर का नाम महावीर इसलिये पड़ा था क्योंकि उन्होंने पूरी दुनिया की ईश्वर कर्तृत्व की अवधारणा के विपरीत तत्त्व का सच्चा स्वरूप बतलाने का साहस किया था । वे एक ईश्वर को नहीं मानते थे बल्कि उन्होंने भक्त में भी पुरुषार्थ का प्राण फूंककर भगवान बनने का रास्ता खोला और आध्यात्मिक प्रजातंत्र की स्थापना की । डॉ. जैन ने भारत की सभी प्राचीन संस्कृति के साथ-साथ पाश्चात्य संस्कृति पर महावीर दर्शन के प्रभाव को प्रस्तुत करते हुए कहा कि “भगवान महावीर के इस चिंतन का प्रभाव वेद के बाद उपनिषदों में स्पष्ट देखा जा सकता है । वैदिकों में पशुबलि बंद करवा कर उन्हें अहिंसक भक्ति एवं तप की ओर अग्रसर किया । इस विषय पर विस्तृत चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि बौद्ध, इस्लाम, ईसाई, यहूदी, सिक्ख, कबीर आदि अनेक धर्मपंथों पर उनके चिंतन का स्पष्ट प्रभाव दिखलाई देता है ।

 

द्वितीय वक्ता के रूप में जैन विश्व भारती संस्थान, लाडनूं के दूरस्थ शिक्षा के निदेशक प्रो. आनंद प्रकाश त्रिपाठी ने अहिंसा दर्शन की प्रासंगिकता को बताते हुए कहा कि सच्ची अहिंसा वह है, जहाँ मानव- मानव के बीच भेदभाव न हो, हृदय और हृदय, शब्द और शब्द, भावना और भावना के बीच समन्वय हो । साथ ही वर्तमान की कठिन परिस्थितियों के सन्दर्भ में अपनी बात रखते हुए प्रो. त्रिपाठी ने कहा कि “इस कोरोना महामारी जैसी कठिन परिस्थिति में भी इसके उपचार से सम्बंधित दवाइयों की जो कालाबाज़ारी, जमाखोरी आदि हो रही है, वो एक प्रकार की हिंसा ही है, वहीँ कई सज्जन, पीड़ितों की सेवा, मदद आदि करके एक मिसाल भी प्रस्तुत कर रहे है, जो मानवता रुपी अहिंसा को उजागर करती है ।

 

 

तृतीय वक्ता के रूप में जे. एन. व्यास यूनिवर्सिटी, जोधपुर के पूर्व संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो. धर्मचंद जैन जी ने अनेकांत दर्शन को समझाते हुए कहा कि “विश्व की बड़ी-बड़ी समस्याओं का समाधान अनेकांत का सिद्धांत दे देता है । अनेकान्त हमारे नित्य व्यवहार की वस्तु है, इसे स्वीकार किए बिना हमारा लोक व्यवहार एक क्षण भी नहीं चल सकता । विचार जगत का अनेकांत दर्शन ही, नैतिक जगत में आकर अहिंसा के व्यापक सिद्धांत का रूप धारण कर लेता है । यह अनेकता में एकता स्थापित करने के लिए सभी के हितों का चिंतन करता है एवं विभिन्न मतों के समन्वय की बात करता है । प्रो. जैन ने अनेकांत की प्रासंगिकता को बताते हुए आगे कहा कि “यदि विश्व के मतमतांतर अपनी संकुचित विचारधाराओं को उदार बनाकर अनेकांत की व्यापक और निष्पक्ष दृष्टि को अपना लें तो सांप्रदायिकता जन्य विद्वेषों और विवादों का अंत भी सहज संभव हो जाये जो विश्वशांति के लिये अनिवार्य है और आज जिसकी नितांत आवश्यकता है । अतः अनेकांत विचार ही जैन दर्शन, धर्म और संस्कृति का प्राण है और यही इसका सर्वोदयी तीर्थ भी है।

 

चतुर्थ वक्ता के रूप में जैन विश्व भारती संस्थान के संस्थापक कुलपति प्रो. महावीर राज गेलरा जी ने कहा कि “व्यक्ति जन्म से नहीं कर्म से महान बनता है”- यह उद्घोष ही महावीर की चिंतन धारा को व्यापक बनाता है। नर से नारायण और निरंजन बनने की कहानी ही महावीर का जीवन दर्शन है । उन्होंने आगे कहा कि “ भगवान् महावीर की दृष्टि वैज्ञानिक दृष्टि थी । आज हमारा कर्त्तव्य है कि उनके मौलिक सिद्धांतों को, उसके वैज्ञानिक और तर्कसंगत स्वरूप को दुनिया के सामने लाएं, ताकि उन संभावनाओं को परिपुष्ट किया जा सके, जिन्हें हम विश्व-शान्ति, विश्व-धर्म और विश्व-बंधुत्व जैसे नामों से जानते हैं । महावीर का पुनर्जन्म तो हो नहीं सकता, वे तो सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हो गए । परन्तु उनका पुनर्जन्म हमारे दिलों में हो, इसकी आज आवश्यकता है ।

 

 

इस राष्ट्रीय वेबिनार के मुख्य अतिथि भारतीय दर्शन अनुसंधान परिषद (नई दिल्ली ) के माननीय अध्यक्ष प्रो. रमेश चन्द्र सिन्हा जी ने आधुनिक दार्शनिक शब्दावली के परिपेक्ष्य में, आधुनिकतावाद और उत्तरआधुनिकतावाद का उल्लेख करते हुए, भगवान महावीर के सिद्धांतों को सार्वकालिक बताया । उन्होंने कहा कि “ भगवान् महावीर का दर्शन एक जीवन्त दर्शन है, क्यूंकि इनके सिद्धान्त किसी विशिष्ट समाज, विशेष समय या परिस्थिति के लिये नहीं हैं, वरन् सार्वभौमिक हैं । दर्शन दिवस के अंतर्गत भगवान् महावीर के दर्शन पर केन्द्रित इस राष्ट्रीय वेबिनार को प्रो. सिन्हा ने बहुत सार्थक बताया एवं इस सम्पूर्ण आयोजन के सुव्यवस्थित संयोजन एवं सुंदर संचालन हेतु “जैन विद्या एवं तुलनात्मक धर्म दर्शन विभाग” के प्रयासों की प्रशंसा की ।

 

 

इस राष्ट्रीय वेबिनार का समापन करने से पूर्व, संयोजक डॉ. अरिहन्त कुमार जैन ने “जैन दर्शन के विभिन्न अवधाराणाओं पर जैन विश्वभारती संस्थान द्वारा प्रकाशित चौदह मोनोग्राफ्स सीरीज का परिचय एवं महत्त्व को बताते हुए श्रोताओं को इससे अवगत कराया । अंत में डॉ. समणी अमल प्रज्ञा जी ने कुलपति महोदय, मुख्य अतिथि तथा सभी विशिष्ट वक्ताओं का धन्यवाद ज्ञापन किया । इस राष्ट्रीय वेबिनार में जैन विश्व भारती संस्थान के सभी विभागों के विभागाध्यक्ष एवं अध्यापकगण उपस्थित रहे । इस राष्ट्रीय वेबिनार का लाभ लेने हेतु २०२ प्रतिभागियों ने पंजीकरण कराया एवं ७० से भी अधिक प्रतिभागियों ने व्याख्यानों का लाभ लिया ।

 

 

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Wednesday 14 April 2021

जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) का समय बदला, स्टाफ की उपस्थित आधी की, लाईब्रेरी पूरी तरह से बंद, सभी कक्षाएं बंद रहेगी

 लाडनूँ, 15 अप्रेल 2021। कोरोना की दूसरी लहर के तेजी से बढने को ध्यान में रखते हुए यहां जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) द्वारा कुछ अहम कदम उठाए गए हैं। इस सम्बंध में कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने एक बैठक लेकर सावधानी के सम्बंध में कतिपय निर्णयों को तय किया जाकर उन्हें लागू किया गया है। कुलपति प्रो. दूगड़ ने बताया कि केाविड-19 के खतरे को देखते हुए एवं सरकार द्वारा जारी गाइड लाईन की अनुपालना में 16 अप्रेल से 30 अप्रेल तक के लिए विश्वविद्यालय में सभी कक्षाओं को बंद किया जा रहा है और लाईब्रेरी भी बंद की जा रही है। यहां विश्वविद्यालय में शैक्षणिक व गैर शैक्षणिक स्टाफ को 50 प्रतिशत तक की उपस्थिति ही निर्धारित की जा रही है। इसके लिए सभी विभागाध्यक्षों को यह अधिकार दिया गया है कि वे इसके लिए अपने विभाग के स्तर पर व्यवस्थाएं करेंगे। उन्होंने बताया कि परीक्षा विभाग, दूरस्थ शिक्षा निदेशालय, रजिस्ट्रार एवं कुलपति कार्यालय को आवश्यक सेवाओं में रखा जा रहा है, इसलिए इनमें यह लागू नहंी होगा। छात्रावास में भी 50 प्रतिशत छात्राओं की ही उपस्थिति रखी जाएगी।

ऑनलाईन कक्षाओं के निर्देश

कुलपति ने ऑनलाईनकक्षाओं को चालु रखे जाने एवं उसकी नियमित रिपोर्ट प्रस्तुत करने के निर्देश भी दिए। उन्होंने बताया कि विज्ञान विषय की सभी प्रयोगशालाएं खुली रखी जाएंगी तथा प्रेक्टिकल करवाए जाएंगे। प्रो. दूगड़ ने स्टाफ आधा करने के निर्णय में यह अनिवार्यता भी रखी कि सभी स्टाफ केम्पस एवं मुख्यालय छोड़ कर नहीं जाएंगे। उन्हें घर पर रह कर कार्य करने की छूट भी रहेगी, लेकिन उसकी पूरी जानकारी यहां प्रशासन के पास होनी चाहिए। उन्होंने बताया कि आगामी 30 अप्रेल तक के लिए यह व्यवस्थाएं की जा रही है। इसके बाद की स्थितियों एवं गाइड लाईन के आधार पर इनमें परिवर्तन भी किया जा सकेगा। कुलपति ने सभी से गाइड लाईन की पूर्ण पालना, सेनिटाईजेशन, मास्क, सोशल डिस्टेंस आदि का पालन किया जाने को सख्ती से लेने की जरूरत बताई। उन्होंने मुख्यमंत्री चिरंजीवी बीमा योजना के तहत सभी को अपना रजिस्ट्रेशन करवाने के लिए प्रेरित किया। बैठक में प्रो. नलिन शास्त्री, कुलसचिव रमेश कुमार मेहता, प्रो. ऋजुप्रज्ञा, प्रो. दामोदर शास्त्री, प्रो. बीएल जैन, प्रो. अनिल धर, प्रो. रेखा तिवाड़ी, डाॅ. युवराजसिंह खांगारोत, डाॅ. प्रद्युम्नसिंह शेखावत, डाॅ. बिजेन्द्र प्रधान, सुनील त्यागी आदि उपस्थित रहे।

जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के शिक्षा विभाग में संकाय संवर्द्धन कार्यक्रम में व्याख्यान का आयोजन

 

पर्यावरण को स्वच्छ व हरा रखने में उपयोगी है ग्रीन कैमेस्ट्री - डाॅ. ममता सोनी

लाडनूँ, 15 अप्रेल 2021। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के शिक्षा विभाग के अन्तर्गत संकाय संवर्द्धन कार्यक्रम के तहत डाॅ. ममता सोनी ने ग्रीन कैमेस्ट्री के सिद्धांतों की उपयोगिता पर अपना व्याख्यान प्रसतुत किया। डाॅ. सोनी ने बताया कि ग्रीन कैमेस्ट्री पर्यावरण के प्रदूषण को कम करने में उपयोगी है। इसके द्वारा विभिन्न संश्लेषण से बनने वाले विषैले व विस्फोटक सह उत्पदों का बनना कम किया जाकर पर्यावरण को स्वच्छ व हरा रखा जा सकता है। उन्होंने बताया कि ग्रीन कैमेस्ट्री 12 सिद्धांतों पर आधारित है। इन सभी 12 सिद्धांतों के अनुप्रयोगों के आधार पर इस शाखा में वृहत स्तर पर अनुसंधान किया जा सकता है। हानिकारक पदार्थों को दूर करने में ग्रीन कैमेस्ट्री की अपनी उपयोगिता है। यह पर्यावरण को सुरक्षित रखने का रसायन है। ग्रीन कैमेस्ट्री सतत विकास व नवाचार अनुसंधान के लिए एक पथ है। ग्रीन नैनोटेक्नोलाॅजी भी एक नवाचार शाखा है, जिससे पर्यावरण विज्ञान को नैनोटेक्नोलाॅजी से जोड़ कर सूक्ष्म स्तर के व पर्यावरण सहायक उत्पाद बनाए जा सकते हैं। व्याख्यान के अंत में विभागाध्यक्ष प्रो. बीएल जैन ने आभार ज्ञापित किया। कार्यक्रम में डाॅ. मनीष भटनागर, डाॅ. बी. प्रधान, डाॅ. विष्णु शर्मा, डाॅ. सरोज राय, डाॅ. आभासिंह, डाॅ. गिरीराज भोजक, डाॅ. गिरधारीलाल शर्मा, प्रमोद ओला आदि उपस्थित रहे।

Friday 9 April 2021

जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के शिक्षा विभाग में “संकाय संवर्धन कार्यक्रम” के अंतर्गत कृत्रिम बुद्धि की उपयोगिता पर व्याख्यान

 


आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस की जीवन में बहुत सफलतताएं मिल जाती है- ओला

लाडनूँ, 10 अप्रेल 2021। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के शिक्षा विभाग में “संकाय संवर्धन कार्यक्रम” के अंतर्गत ‘आर्टिफिशियल इंटेलीजेंसी‘ के सम्बंध में व्याख्यान प्रस्तुत किया जाकर एआई यानि कृत्रिम बुद्धि के मूलभूत सिद्धांतों और उसकी व्यावहारिक जीवन में उपयोगिता के बारे में विस्तार से बताया गया। विषय विशेषज्ञ प्रमोद ओला ने इस पर अपने व्याख्यान में बताया कि दैनिक जीवन में उपयोग में आने वाले मोबाईल, सोशल मीडिया, वीडियो गेम, आॅटोमोबाईल, व्यापार, शिक्षा, चिकित्सा तथा उच्च स्तरीय कम्प्यूटराइज्ड रोबोट बनाने में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंसी द्वारा सफलता प्राप्त की गई है। चिकित्सा क्षेत्र में मानव की पहुंच से बाहर वाले अंगों के इलाज में रोबोट द्वारा सफलता मिली है। खेल जगत में भी इसके प्रयोग के माध्यम से सही निर्णय लेना संभव हुआ है।

यांत्रिक बुद्धि से बनेगा मानव जीवन सरल

ओला ने बताया कि आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस के माध्यम से मानव जीवन को सरल बनाने और विभिन्न कार्यों को मशीनों के जरिए से करना संभव हुआ हैं। लेकिन दूसरी तरफ संवेदनशीन मुद्दों को समझने में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस सक्षम नहंी है। इस कारण मनुष्य जीवन में अनेक समस्याएं भी पैदा होंगी। उन्होंने रोबोट के उपयोग पर चर्चा करते हुए कहा कि देश की सीमाओं की सुरक्षा के लिए भी रोबोट तैनात करके लक्ष्य पाया जा सकता है, जो कि मनुष्यों की भांति ही काम करेंगे। एआई भविष्य में सुरक्षा, शिक्षा, चिकित्सा आदि सभी क्षेत्रों में विभिन्न समस्याओं को सुलझाना भी संभव होगा। व्याख्यान के अंत में विभागाध्यक्ष प्रो. बीएज जैन ने आभार ज्ञापित करते हुए कहा कि मशीनों और मशीनी दिमाग का उपयेाग मनुष्य के अधीन ही रहना चाहिए। मनुष्य पर इनका हावी होना अनुचित हो जाता है। मशीनरी का उपयोग चाहे वह इंटेलीजेंस क्षेत्र में हो या अन्य सोशल फील्ड में उसके लाभों से भी मानवता को लाभान्वित किया जाना आवश्यक है। इस अवसर पर डाॅ. मनीष भटनागर, डाॅ. भाबाग्रही प्रधान, डाॅ. विष्णु कुमार, डाॅ. अमिता जैन, डाॅ. सरोज राय, डाॅ. गिरीराज भोजक, डाॅ. आभासिंह, डाॅ. गिरधारीलाल शर्मा, डाॅ. ममता सोनी आदि उपस्थित रहे।