Saturday, 29 February 2020

जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के शिक्षा विभाग में पुस्तक समीक्षा कार्यक्रम में ‘‘जैन विद्या और विज्ञान’’ पुस्तक पर समीक्षा प्रस्तुत

जैन दर्शन में समाहित हैं आधुनिक विज्ञान के सिद्धांत

लाडनूँ, 29 फरवरी 2020। आचार्य महाप्रज्ञ जन्म शताब्दी वर्ष के अवसर पर जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के शिक्षा विभाग में चल रहे पुस्तक समीक्षा कार्यक्रम में आचार्य महाप्रज्ञ के साहित्य से सम्बद्ध पुस्तक जैन विद्या और विज्ञान की समीक्षा भौतिक विज्ञान की सहायक आचार्या राजश्री शर्मा ने प्रस्तुत की। उन्होंने बताया कि प्रसिद्ध लेखक डाॅ. महावीर राम गेलड़ा की इस कृति में जैन दर्शन का चिन्तन अध्यात्म या धर्म तत्वों तक ही सीमित नहीं रखा गया है, बल्कि आधुनिक विज्ञान के विषयों- भौतिकी, जैविकी, परमाणु विज्ञान, रसायन विज्ञान, गणित, स्वास्थ्य विज्ञान, सामाजिक विज्ञान आदि विज्ञान की विभिन्न शाखाओं के साथ प्रस्तुत किया गया है। पुस्तक में लेखक ने जैन विद्या और विज्ञान पर तीन भागों में चर्चा की है, जिनमें प्रकृति का दर्शन, विज्ञान का दर्शन और विज्ञज्ञन का समाज शास्त्र शामिल हैं। जैन दर्शन का भारहीनता का सिद्धांत आइंस्टीन के गुरूत्वाकर्षण सिद्धांत के समतुल्य है, लेकिन उसे पर्याप्त प्रचार नहीं मिल पाया। इसी प्रकार प्रकृति के गतिशीलता के सिद्धांत के अनुसार जैन आगम साहित्य में गति सम्बंधी अनेक प्रकरण अंकित हैं और आचार्य महाप्रज्ञ ने भी इसका रोचक विवरण प्रस्तुत किया था। पुस्तक में दिये गये वर्णन में ब्लेक होल, परमाणु की गति, आकाश के तीन आयाम, घनत्व, गुरूत्वाकर्षण, बिग-बैग, ताप, विज्ञान जगत में ईथर तत्व की अमान्यता, जैन गणित, गणित के दस प्रकार आदि विषयों पर गहन चिंतन प्रस्तुत किया गया है। समीक्षा के अंत में डाॅ. गिरधारीलाल शर्मा ने धन्यवाद ज्ञापित किया। इस अवसर पर डाॅ. मनीश भटनागर, डाॅ. आभा सिंह, डाॅ. गिरीराज भोजक, रवि प्रकाश, स्वाति खटेड़ आदि उपस्थित रहे।

जैन विश्वभारती संस्थान के आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय में मासिक व्याख्यानमाला में समुद्र विज्ञान पर व्याख्यान

गर्म व ठंडी धारायें समुद्री जीवों और मछलियों के लिये लाभदायक

लाडनूँ, 29 फरवरी 2020। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय के काॅनफ्रेन्स हाॅल में शुक्रवार को महाविद्यालय प्राचार्य प्रो. आनन्दप्रकाश त्रिपाठी की अध्यक्षता में व्याख्याता मांगीलाल सुथार द्वारा समुद्र विज्ञान विषय पर व्याख्यान दिया गया। सुथार ने अपने व्याख्यान में समुद्र में मग्नतटों के निर्माण की प्रक्रिया को बताते हुए गर्म व ठण्डी धाराओं की मौजूदगी को मछलियों एवं समुद्री जीवों हेतु सर्वाधिक उपयोगी बताया, वहीं वाष्पीकरण की अधिकता होने पर लवणता की अधिकता की सम्भावना पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने समुद्र विज्ञान में चेलेन्जर अभियान के बारे में बताया, जो 1872-76 के मध्य संचालित हुआ तथा जिसका मुख्य उद्देश्य समुद्री खाईयों तथा समुद्री निक्षपों के बारे में पता लगाना था। व्याख्यान के अन्त में प्राचार्य प्रो. त्रिपाठी ने व्याख्यान अभिव्यक्ति में आंकड़ों की महत्ता को स्वीकार किया तथा एक नये विषय क्षेत्र से परिचय करवाने के लिये महाविद्यालय के लिए इस व्याख्यान को सार्थक बताया। कार्यक्रम में सहायक आचार्य डाॅ. प्रगति भटनागर, कमल कुमार मोदी, डाॅ. बलबीर सिंह चारण, अभिषेक चारण, अभिषेक शर्मा, श्वेता खट़ेड आदि उपस्थित रहे। शेरसिंह राठौड़ द्वारा अंत में आभार ज्ञापन किया गया। कार्यक्रम का संचालन सोमवीर सांगवान द्वारा किया गया।

Thursday, 27 February 2020

जैन विश्वभारती संस्थान में कौशल विकास कार्यक्रम में कम्प्यूटर एकाउंटिंग टैली एवं इंग्लिश स्पोकन पाठ्यक्रमों के समापन पर प्रमाण-पत्र का वितरण

व्यक्ति को अतिरिक्त कुशलता प्रदान करते हैं अल्पकालिक कोर्सेज- मेहता

लाडनूँ, 27 फरवरी 2020। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में कौशल विकास कार्यक्रम के तहत चलाये जा रहेे अल्पकालीन कोर्सेज में कम्प्यूटर एकाउंटिंग टैली एवं इंग्लिश स्पोकन पाठ्यक्रमों के समापन पर सभी प्रशिक्षणार्थियों को प्रमाण पत्रों का वितरण किया गया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि कुलसचिव रमेश कुमार मेहता ने बताया कि विभिन्न व्यावसायिक शिक्षा के रूप में अल्प समय के कोर्स संचालित करके व्यक्ति को अतिरिक्त कुशलता दिलाने का प्रयास संस्थान द्वारा सफलता के साथ किया जा रहा है। आधुनिक युग में अंग्रेजी भाषा ने अपना वर्चस्व कायम कर रखा है। इसे विश्वभाषा के रूप में स्वीकार किया जाता है, इसलिये इंग्लिश का बोलना और समझाना आवश्यक बन चुका है। इसी प्रकार खाता-बही का स्थान कम्प्यूटर ने ले निया है। टैली सीखने के बाद व्यक्ति एकाटिंग में पारंगत हो जाता है। विताधिकारी आरके जैन ने कहा कि टैली और इंग्लिश स्पोकन आज के समय में मल्टीनेशनल कम्पनियों में और अन्य सभी जगह कॅरियर के लिये आवश्यक हो चुका है। अंग्रेजी विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो. रेखा तिवाड़ी ने भी अंग्रेजी की व्यापकता और महत्व पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम में सोमवीर सांगवान, अभिषेक शर्मा एवं प्रशिक्षणार्थियों ने भी विचार रखे व अनुभव प्रस्तुत किये। अंत में संस्थान के शैक्षणिक अधिकारी विजय कुमार शर्मा ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुये विश्वविद्यालय द्वारा संचालित अल्पकालिक पाठ्यक्रमों के बारे में जानकारी दी। कार्यक्रम में सभी प्रशिक्षित विद्यार्थियों को प्रमाण पत्र प्रदान किये गये। इस अवसर पर मनीष कुमार सैनी, दुर्गाराम खीचड़, विनोदकुमार पारीक, सुनीता कोटेचा, विष्णु ठठेरा, ललित वर्मा, ममता पारीक, कुसुम प्रजापत, साक्षी चैहान आदि उपस्थित थे।

Monday, 24 February 2020

जैन विश्वभारती संस्थान में आचार्य महाप्रज्ञ के जन्म शताब्दी वर्ष के अवसर पर आचार्य महाप्रज्ञ कृत ‘कर्मवाद’ ग्रंथ की समीक्षा

साधना से बदला जा सकता है कर्मजनित समस्याओं व घटनाओं को- समणी रोहिणी प्रज्ञा

लाडनूँ, 24 फरवरी 2020। आचार्य महाप्रज्ञ के जन्म शताब्दी वर्ष के अवसर पर यहां जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में संचालित ग्रंथ समीक्षा कार्यक्रम के अन्तर्गत अहिंसा एवं शांति विभाग में समणी रोहिणी प्रज्ञा ने आचार्य महाप्रज्ञ कृत ‘‘कर्मवाद’’ ग्रंथ पर समीक्षा प्रस्तुत की। उन्होंने बताया कि जीवन की समस्त घटनायें कर्मजनित नहीं होती है और कर्म-सिद्धांत से होने वाले और कम्र की भूमिका से रहित घटनाओं-समस्याओं के फर्क को समझने से ही अध्यात्म को सहीस्वरूप में समझा जा सकता है। उन्होंने कहा कि कर्मवाद अध्यात्म का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है, लेकिन इस सम्बंध में सही समझ के बजाये भ्रंतियां अधिक पनपी हैं। इस कारण कर्मवाद का महान सिद्धांत उपयोगी होने के बजाये समस्या के रूप में भी उभर कर सामने आया है। जैन दर्शन में कर्मवाद के संदर्भ में एक अवधारण रही है कि प्रत्येक घटना के पीेछे कर्म की ही भूमिका होती है। इस कारण गरीबी, बेरोजगारी और अन्य शरीरिक, मानसिक बीमारियों आदि को पनपने का मौका मिलता रहा है। आचार्य महाप्रज्ञ की एक महत्वपूर्ण कृति है ‘कर्मवाद’, जिसमें उनका मंतव्य रहा कि जीवन के कुछ प्रसंगों का कर्म से सिद्धांत से कुछ लेना देना नहीं है। संवदन की भूमिका पर ही कर्म का सही अंकन होता है। कर्म बुहत कुछ है, लेकिन सबकुछ नहीं है। चेतना का साम्राज्य अधिक शक्तिशाली है, इसलिये पुरूषार्थ, जो चेतना से निकलने वाला तत्व है, उससे संक्रमण एवंपरिवत्रन घटित हो सकता है। ध्यान, प्रतिक्रमण एवं प्रायश्चित जैसी अमूल्य साधना पद्धतियो ंसे परिवर्तित घटित किये जा सकते हैं। यदि हम कम्र से होने वाली घटनाओं तथा ऐसी घटनाओं, जिनमें कर्म की कोई भूमिका नहीं होती, उनके भेद को स्पष्ट समझ लेंगे, तो वास्तव में अध्यात्म को सही रूप में समझ सकेंगे एवं समस्याओं का सही समाधान भी कर पायेंगे। अंत में विभागाध्यक्ष प्रो. अनिल धर ने आभार ज्ञापित किया और कहा कि अध्यात्म के सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत को आचार्य महाप्रज्ञ ने हल किया और एक सतार्किक विवरण देकर लोगों में व्याप्त भ्रांतियों का समाधान किया है। ग्रंथ समीक्षा कार्यक्रम का संयोजन डाॅ. रविन्द्र सिंह राठौड़ ने किया। इस अवसर पर रेणु गुर्जर, पिंकी, पूजा महिया, कल्पना सिधू, हंसराज कंवर, प्रतिभा कंवर, राजकुमारी आदि विद्यार्थियों ने भी अपनी शंकाओं का समाधान प्राप्त किया।

Saturday, 22 February 2020

जैन विश्वभारती संस्थान के आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय में ‘‘वित्तीय अनियमितताओं की रोकथाम के उपाय’’ विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन

आम नागरिक की इकोनोमी के प्रति जागरूकता ही आर्थिक अपराधों को रोक सकती है- शर्मा

लाडनूँ, 22 फरवरी 2020। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय में ‘‘वित्तीय अनियमितताओं की रोकथाम के उपाय’’ विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुये प्राचार्य प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने कहा कि किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के लिये वहां होने वाली वित्तीय अनियमिततायें सबसे अधिक नुकसानदायी होती है। इनके द्वारा सारा आर्थिक व्यवहार दिन्न-भिन्न हो जाता है और बड़ी संख्या में लोग आर्थिक समस्याओं से जूझने को मजबूर हो जाते हैं। उन्होंने विभिन्न बैंक घोटालों, चिटफंड कम्पनियों, मनी सर्कुलेशन योजनाओं आदि का उदाहरण देते हुये कहा कि देश को खोखला करने में ये सबसे अधिक भूमिका निभाते हैं। इन पर प्रभावी नियंत्रण कायम करने में सरकारों की विफलता के कारणों में विशेषज्ञों की पर्याप्त सहायता नहीं मिलना है। आम नागरिक इन समस्याओं से ग्रसित होता है, इसलिये इस तरफ सबकी जागृति जरूरी है। संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के संदर्भ व्यक्ति शांतिलाल शर्मा थे। शर्मा ने शेयर मार्केट में होने वाली हलचलों और उतार-चढाव में प्रभावी सेगमेंट्स पर प्रकाश डाला और बताया कि सन 1988 से देश में प्रतिभूति और वित्त का नियामक बोर्ड सेबी बना हुआ है। सेबी का प्रमुख उद्देश्य भारतीय स्टाक निवेशकों के हितों का उत्तम संरक्षण प्रदान करना और प्रतिभूति बाजार के विकास तथा नियमन को प्रवर्तित करना है। उन्होंने बताया कि सेबी प्रतिभूति बाजार से जुड़े लोगों को प्रशिक्षित करता है और निवेशकों के लिये शिक्षा प्रोत्साहन प्रदान करता है। समस्त प्रकार के प्रतिभूति बाजार, व्यवहार और म्युचुअल फंड और समब्ंधित व्यक्तियों के नियमन का अधिकार सेबी के पास है। जनता से 100 करोड़ रुपये से अधिक धनराशि जुटाने वाली सभी योजनायें सेबी के अधीन हैं। सेबी को तलाशी, जब्ती व संपत्ति कुर्क करने का अधिकार है। नियमों का पालन नहीं करने वालों को हिरासत में लेने का अधिकार भी सेबी के पास है और देश-विदेश के नियामकों से सूचनाएं मांगने की अनुमति भी सेबी को प्राप्त है। उन्होंने सेबी के रिसोर्स में शिकायतें दर्ज करवाने और उनके निपटारे की प्रक्रिया के बारे में भी बताया। श्वेता खटेड़ ने भी संगोष्ठी में देश में व्याप्त वित्तीय अनियमितताओं के बारे में विस्तार से बताया और कहा कि जब तक इन पर व्यापक नियंत्रण नहीं किया जाता है, तब तक देश को मजबूती नहीं मिल सकती। प्रारमभ में अभिषेक शर्मा ने अपने वक्तव्य में अतिथियों का स्वागत किया। संगोष्ठी के द्वितीय सत्र में सेबी के संदर्भ व्यक्ति शांतिलाल शर्मा ने देश भर में फैले विभिन्न स्तर पर आर्थिक अपराधों की गतिविधियों के बारे में बताया और उनकी रोकथाम के उपाय सुझाये। उन्होंने स्पष्ट कहा कि जब तक आम नागरिक जागरूक नहीं रहेगा और इकोनोमी को नहीं समझेगा, तब तक उसका लाभ ऐसे आर्थिक अपरााी उठाते रहेंगे। संगोष्ठी में कमल कुमार मोदी, डाॅ. प्रगति भटनागर व प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने भी विभिन्न वित्तीय अनियमितताओं के समबंध में विचार व्यक्त किये। अंत में सेबी के शांतिलाल शर्मा ने सभी विद्यार्थियों एवं सम्भागियों की शंकाओं व जिज्ञासाओं का समाधान प्रस्तुत किया।

Thursday, 20 February 2020

जैन विश्वभारती संस्थान में संचालित राष्ट्रीय सेवा योजना (एनएसएस) की दोनों इकाइयों के संयुक्त तत्वावधान में एक दिवसीय विशेष शिविर का आयोजन

दांतों की पीड़ा सबसे असहनीय होती है- डाॅ. सोनी

लाडनूँ, 20 फरवरी 2020। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में संचालित राष्ट्रीय सेवा योजना (एनएसएस) की दोनों इकाइयों के संयुक्त तत्वावधान में एक दिवसीय विशेष शिविर का आयोजन किया गया। शिविर तीन सत्रों में हुआ, जिसमें प्रथम सत्र में व्याख्यान का आयोजन किया गया। इसमें स्थानीय राजकीय चिकित्सालय के दंत चिकित्सा विशेषज्ञ डाॅ. नवल सोनी ने मुख्य व्याख्यान कर्ता के रूप में अपने सम्बोधन में कहा कि दांत हमारे मुंह की शोभा होते हैं और दांतों की बीमारियां भी व्यक्ति के लिये सबसे अधिक पीड़ादायक साबित होती है। व्यक्ति दंातों के रोगों के चलते ठंडा-गर्म व मीठा वगैरह खाने-पीने में ही नहीं बल्कि बोलने-हंसने का एंग तक बदल जाता है। व्यक्ति के मुंह का स्वाद तक बिगड़ जाता है। प्रारम्भ में आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने उनका स्वागत किया तथा अपने सम्बोधन में स्वास्थ्य सम्बंधी विभिन्न पहलुओं के बारे में बताया तथा दांतों की सुरक्षा और उन्हें बीमारी से बचाने के लिये आहर व खानपान में सावधानी बरतने की सलाह दी। शिविर के द्वितीय चरण में दंत चिकित्सक डाॅ. नवल सोनी ने 105 एनएसएस स्वयंसेविकाओं के दांतों का परीक्षण किया और उन्हें परामर्श प्रदान किया। तीसरे सत्र में सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किये गये। एनएसएस की ईकाई प्रभारी डाॅ. प्रगति भटनागर व डाॅ. बलबीर सिंह चारण ने कार्यक्रम को व्यवस्थित किया। कार्यक्रम का संचालन स्वयंसेविका दिव्यता कोठारी ने किया।

जैन विश्वभारती संस्थान के शिक्षा विभाग के अन्तर्गत अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर कार्यक्रम का आयोजन

हृदय के उद्गारों की अभिव्यक्ति के लिये मातृभाषा सशक्त माध्यम

लाडनूँ, 20 फरवरी 2020। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के शिक्षा विभाग के अन्तर्गत अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में विभागाध्यक्ष प्रो. बीएल जैन ने अपने सम्बोधन में कहा कि मातृभाषा व्यक्ति के हृदय के अन्तरतम भावों की अभिव्यक्ति का सबसे सशक्त माध्यम होती है। सर्वतोमुखी विकास के लिये मातृभाषा को महत्व दिया जाना आवश्यक है। डाॅ. अमिता जैन ने कहा कि हमारे उद्वेगों, मनोभावों एवं विचारों की अभिव्यंजना में सरलता एवं स्पष्टता से अपनी बात हम केवल मातृभाषा में ही रख सकते हैं। छात्राध्यापिका मनीषा पंवार ने कहा कि विदेशी व अन्य भाषाओं की ओर हमारे बढते व्यर्थ आकर्षण में हम अपनी मातृभाषा की उपेक्षा करने लगे हैं, जो नुकसानदायक साबित होगी। हमें मातृभाषा को अपनाने और उसके उत्थान की तरफ सजग होना होगा। रेखा शेखावत ने मातृभाषा को संस्कृति की द्योतक बताते हुये कहा कि मातृभाषा को अपनाने के लाभ बताये और कहा कि संस्कृति को अक्षुण्ण रखने के लिये मातृभाषा आवश्यक है। सरिता ने भी मातृभाषा पर अपने विचार रखते हुये कहा कि विश्व की भाषायी और सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषायिता को बढावा देने का काम मातृभाषा को महत्व देने से ही संभव हो सकता है। कार्यक्रम में सभी छात्राध्यापिकायें और सभी संकाय सदस्य उपस्थित थे।

Wednesday, 19 February 2020

जैन विश्वभारती संस्थान के अहिंसा एवं शांति विभाग तथा समाज कार्य विभाग के संयुक्त तत्वावधान में दो विवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन

अहिंसा के माध्यम से समाज की समस्याओं को किया जा सकता है ठीक- प्रो. व्यास

लाडनूँ, 18 फरवरी 2020। आचार्य महाप्रज्ञ जन्मशताब्दी के अवसर पर जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के अहिंसा एवं शांति विभाग तथा समाज कार्य विभाग के संयुक्त तत्वावधान में ’आचार्य महाप्रज्ञ का शांति की संस्कृति तथा ग्रामीण चुनौतियों का समाधान’ विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र के कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर के समाजशास्त्र विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. के.एन. व्यास ने कहा कि गुरूदेव तुलसी व आचार्यश्री महाप्रज्ञ आध्यात्म के नक्षत्र हैं, मुनि नथमल से लेकर आचार्य महाप्रज्ञ की जीवनयात्रा को दो दिवसीय संगोष्ठी में बांधा नही जा सकता। समाज की समस्याओं - क्रोध, हिंसा, घृणा को अहिंसा के माध्यम से ठीक किया जा सकता है। उन्होंने प्रेक्षाध्यान, जीवन विज्ञान सापेक्ष अर्थव्यवस्था तथा अहिंसा चार मुख्य बिन्दुओं पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. नरेश दाधीच ने अपने वक्तव्य में कहा कि आचार्य महाप्रज्ञ जैसे संत विलक्षण होते हैं, जो व्यक्ति समाज से अलग सोचते हैं वे सन्त बनते हैं। उन्होंने आचार्य महाप्रज्ञ को सामुदायिक सन्त के रूप में प्रस्तुत किया। आचार्य महाप्रज्ञ सारी मानवता को पथ-प्रदर्शन करने वाले सन्त थे। व्यक्ति को भीड़-तंत्र से अलग सोचना चाहिए। एक व्यक्ति अच्छा वक्ता तभी हो सकता है जब वह अच्छा श्रोता हो। कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र का प्रारंभ डाॅ. समणी प्रणव प्रज्ञा ने मंगालचरण से किया। तत्पश्चात अतिथियों का स्वागत व अभिनन्दन शाॅल व मोमेन्टो के साथ किया गया। संगोष्ठी निदेशक प्रो. अनिल धर ने अपने स्वागत वक्तव्य में कहा कि आचार्य महाप्रज्ञ ने अपने जीवन में निरन्तर पद-यात्राएं की तथा शांति की संस्कृति के बीज रोपते हुए समाज को लाभान्वित किया। आचार्य महाप्रज्ञ जी ने महिला शिक्षा के प्रेरणाश्रोत के रूप में कार्य किया। उन्होंने अहिंसा का जीवन की कला बताया। कार्यक्रम के अन्त में समाज कार्य विभाग के विभागाध्यक्ष ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. पुष्पा मिश्रा ने किया। उद्घाटन सत्र में प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी, प्रो. रोखा तिवारी, प्रो. बी.एल. जैन, डाॅ. प्रद्युम्न सिंह शेखावत, डाॅ. रविन्द्र सिंह राठौड़, डाॅ. योगेश जैन, डाॅ. विकास शर्मा, डाॅ. सोमवीर सांगवान, रंजीत मंडल, डाॅ. बलबीर सिंह आदि संकाय सदस्य तथा विभिन्न प्रतिभागी, शोधार्थी तथा विद्यार्थी उपस्थित थे।

महाप्रज्ञ ने अहिंसा के व्यावहारिक पक्ष को प्रस्तुत किया- प्रो. द्विवेदी

19 फरवरी 2020। आचार्य महाप्रज्ञ जन्मशताब्दी के अवसर पर जैन विश्वभारती संस्थान के अहिंसा एवं शांति विभाग तथा समाज कार्य विभाग के संयुक्त तत्वाधान में राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के समापन सत्र के मुख्य वक्ता महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी के गांधी अध्ययन केन्द्र के निदेशक प्रो. आरपी द्विवेदी ने कहा कि आचार्य महाप्रज्ञ इस बात पर बल देते थे कि जड़ की तुलना में सचेतन को आगे बढ़ाया जाये। उन्होंने कहा कि आचार्य तुलसी की सबसे महान देन के रूप में आचार्य महाप्रज्ञ को रेखांकित किया और कहा कि इन संतों के समय में देश की जो आध्यातिक उन्नति हुई, वह अप्रतिम है। आचार्य महाप्रज्ञ ज्ञान, भक्ति और वैराग्य की त्रिवेणी थे। आचार्य महाप्रज्ञ ने अहिंसा के व्यवहारिक पक्ष पर बल दिया तथा लौकिक, इहलौकिक और पारलौकिक सन्तुलन पर बल दिया। प्रो. द्विवेदी ने गीता के समकक्ष सम्बोधि ग्रन्थ को बताया। उन्होंने सफलता की कुजी के रूप में सहन करो, श्रम करो, संयम करो, सेवा करो का सूत्र दिया था। उन्होंने जैन विश्वभारती संस्थान को अद्भूत प्रयोगशाला बताया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आरएल. गोदारा ने बहुत ही सहज, सरल शब्दो में आचार्य महाप्रज्ञ के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का गुणगान किया तथा कहा कि उन्होंने ज्ञान के साथ चरित्र निर्माण पर बल दिया। उन्होंने उपवास को बहुत महत्वपूर्ण बताया। प्रो. गोदारा ने बताया कि आचार्य महाप्रज्ञ ने गांवों की वेदना समझी और जैन विश्वभारती संस्थान को शिक्षा के लिए उनका आर्शीवाद बताया।

महाप्रज्ञ चाहते थे कि सामाजिक कुरीतियां हटें

कार्यक्रम के अध्यक्ष जैन विश्वभारती संस्थान के कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुये कहा कि इस संस्थान के अनुशास्ता के रूप में आचार्य महाप्रज्ञ का सान्निध्य एवं अनुशासन-मार्गदर्शन मिला था, उन्होंने संस्थान को नई दिशा प्रदान की, यह संस्थान का परम सौभाग्य रहा। आचार्य महाप्रज्ञ ने जैन विश्वभारती संस्थान को विजडम सिटी की संज्ञा दी। आचार्य महाप्रज्ञ की सोच थी कि जहां समस्या है, उससे उपर उठकर उसके समाधान के बारे में सोचें। उनके अनुसार पक्ष के साथ प्रतिपक्ष इस जगत का सौन्दर्य है। प्रो. दूगड़ ने कहा कि आचार्य महाप्रज्ञ ने गांवो के विकास के लिए बहुत कार्य किया वे अहिंसा यात्रा के माध्यम से जिस गांव में भी पदयात्रा करते थे, उससे पूर्व उस गांव की समस्यायें जान लेते थे, फिर उन समस्याओं का समाधान करने का प्रयास करते थे। आचार्य महाप्रज्ञ ने सामाजिक कुरीतियों को दूर करने का प्रयास किया। आचार्य महाप्रज्ञ अपरिग्रह को परम धर्म मानते थे। आचार्य महाप्रज्ञ ने प्रो. ग्लेन डी. पंज, जाॅन गाल्टुंग, पूर्व राष्ट्रपति डाॅ. अब्दुल कलाम आदि विद्वानों के साथ समाज कल्याण की चर्चा की। उन्होंने कहा कि यदि अभय होगा, विश्वास होगा तो शस्त्रीकरण नही होगा। आचार्य महाप्र्रज्ञ ऐसे दुर्लभ सन्त थे जिन्होंने चेतना के जागरण की बात कही। उनकी जन्मशताब्दी के सुअवसर पर यह संस्थान कितने ही आयोजन करे कम हीं होंगे। समापन सत्र के प्रारम्भ में अहिंसा एवं शांति विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. अनिल धर ने सभी अतिथियों का स्वागत एवं अभिनंदन किया। सर्वप्रथम दो दिवसीय संगोष्ठी का प्रतिवेदन समाज कार्य विभाग के सहायक आचार्य डाॅ. विकास शर्मा ने किया। अन्त में अहिंसा एवं शांति विभाग के सहायक आचार्य डाॅ. रवीन्द्र सिंह राठौड़ ने धन्यवाद ज्ञापित किया। समापन सत्र में प्रो. रेखा तिवारी, डाॅ. निशा गोस्वामी, विभा मिश्रा, प्रद्युम्नसिंह शेखावत, डाॅ. युवराजसिंह खांगारोत, डाॅ. योगेश जैन, रंजीत मंडल, विजय कुमार शर्मा, दीपाराम खोजा, पंकज भटनागर, डाॅ. वीरेन्द्र भाटी मंगल आदि उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. समणी रोहिणी प्रज्ञा ने किया।

जैन विश्वभारती संस्थान को ‘‘बेस्ट इन क्लास यूनिवर्सिटी अवार्ड’’ मिला


लाडनूँ 19 फरवरी 2020। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) को शिक्षा, शोध एवं समाज-सेवा के क्षेत्र में अप्रतिम उपलब्धियों के लिए मुम्बई के ताज होटल में आयोजित ‘‘विश्व मानव संसाधन विकास सम्मेलन- 2020’’ के अवसर पर वर्ल्ड फेडरेशन आफ एकेडमिक एंड एज्युकेशनल इंस्टीट्यूट एवं सीएचआरओ, एशिया द्वारा ‘‘बेस्ट इन क्लास यूनिवर्सिटी अवार्ड’’ सम्मान प्रदान किया गया। संस्थान की ओर से यह सम्मान एन.सी. जैन ने ग्रहण किया। इस सम्मान के लिये जगन्नाथ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. मदन मोहन, राजस्थान पत्रिका के प्रबंध-संपादक गुलाब कोठारी, तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम के अध्यक्ष निर्मल कोटेचा, दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. चंदन चैबे, आईसीपीआर के पूर्व सचिव प्रो. एस. आर. व्यास, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के पूर्व संकायाध्यक्ष प्रो. राजबीर सिंह यादव, जय तुलसी फाउण्डेशन कोलकाता के अध्यक्ष तुलसी दूगड़ एवं पूर्व अध्यक्ष बनेचंद मालू, लाडनूँ समाज सेवी जगदीश शर्मा, ओमप्रकाश बागड़ा, जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के अध्यक्ष सुरेश गोयल, आचार्य तुलसी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष लूणकरण छाजेड़, जैन विश्व भारती के निवर्तमान मंत्री भागचंद बरड़िया एवं वर्तमान मंत्री गौरव मांडोत, जैन विश्व भारती के पूर्व अध्यक्ष धरमचंद लूंकड़, पंजाब विश्वविद्यालय की प्रो. कंचन जैन, अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल की पूर्व अध्यक्ष कुमुद कच्छारा, हिमाचल प्रदेश केन्द्रीय विश्वविद्यालय के प्रो. आशुतोष प्रधान, प्रो. मनोज सक्सेना, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रो. बिमलेन्द्र कुमार, केन्द्रीय विश्वविद्यालय बिहार के प्रो. जुगल किशोर, जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के प्रो. के.एन. व्यास, प्रो. एच.एस. राठौड़, प्रो. धरमचंद जैन, पूर्व डायरेक्टर जनरल ऑफ पुलिस मनोज भट्ट, पूर्व कुलपति भोपालचंद लोढ़ा, वैज्ञानिक नरेन्द्र भण्डारी, शांतिनिकेतन विश्वविद्यालय के प्रो. जगतराम भट्टाचार्य, वित्त समिति सदस्य प्रमोद बैद, राजस्थान सरकार के संयुक्त परिवहन आयुक्त डाॅ. नानूराम चोयल आदि ने कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ को इस सम्मान के लिये अपनी बधाइयां प्रेषित की हैं।

Monday, 17 February 2020

जैन विश्वभारती संस्थान के आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय में में भ्रूण हत्या व लैंगिक असंतुलन पर नियंत्रण को लेकर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन

लैंगिक असंतुलन पर नियंत्रण के लिये सामाजिक सोच में बदलाव जरूरी

लाडनूँ, 17 फरवरी 2020। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय में भ्रूण हत्या और लैंगिक असंतुलन पर नियंत्रण के उपाय विषय पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के शुभारम्भ सत्र की अध्यक्षता करते हुये प्राचार्य प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने देश के व्याप्त सामाजिक माहौल में महिलाओं के प्रति सोच के नजरिये को बदलने की आवश्यकता बताते हुये कहा कि भ्रूणहत्या अमानवीय कृत्य है और इसी सामाजिक बुराई के कारण समाज में लैंगिक असंतुलन को बढावा मिला है। इस पर नियंत्रण के लिये जरूरी है कि समाज की आम सोच को बदला जावे। उन्होंने अहिंसा प्रशिक्षण कार्यक्रम के अन्तर्गत जन साधारण की सोच को बदलने की शक्ति बताई और कहा कि आचार्य महाप्रज्ञ ने इस दिशा में राह दिखाई थी। कार्यक्रम में मुख्यवक्ता के रूप में गर्भस्थ शिशु संरक्षण समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामकिशोर तिवाड़ी ने कहा कि जब तक समाज की मातृशक्ति जागृत नहीं होगी, तब तक इस सामाजिक बुराई पर अंकुश संभव नहीं लगता है। गर्भ में ही शिशु की हत्या कर देना सबसे क्रूर व धृणास्पद दुष्कृत्य है। देश में बालिका भ्रूण हत्या बड़ी संख्या में हो रही है, जो संकीर्ण मानसिकता की वजह से हो रही है, लेकिन आज तो बालक भ्रूण हत्यायें भी कम नहीं हो रही है। उन्होंने सामाजिक संस्कारों में परिवर्तन लाने और इस घोर-पाप के प्रति मानसिकता में बदलाव लाने की जरूरत बताई। समिति के मंत्री करणीदान ने सहज राजस्थानी और अपनी काव्यात्मक भाषा में कन्या भ्रूण हत्या की कुप्रथा की रोकथाम के विभिन्न पहलुओं के बारे में बताया और इस सम्बंध में छात्राओं को जागरूक बनाया। कार्यक्रम में गर्भस्थ शिशु संरक्षण समिति के स्थानीस ईकाई के अध्यक्ष सूरजनारायण राठी, मंत्री अभय नारायण शर्मा, संकाय सदस्य डाॅ. प्रगति भटनागर, कमल कुमार मोदी, सोमवीर सांगवान, डाॅ. विनोद सियाग, श्वेता खटेड़, शेरसिंह, अभिषेक शर्मा, मांगीलाल आदि उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. बलबीर सिंह चारण ने किया।

जैन विश्वभारती संस्थान के आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय में में भ्रूण हत्या व लैंगिक असंतुलन पर नियंत्रण को लेकर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन

लैंगिक असंतुलन पर नियंत्रण के लिये सामाजिक सोच में बदलाव जरूरी

लाडनूँ, 17 फरवरी 2020। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय में भ्रूण हत्या और लैंगिक असंतुलन पर नियंत्रण के उपाय विषय पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के शुभारम्भ सत्र की अध्यक्षता करते हुये प्राचार्य प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने देश के व्याप्त सामाजिक माहौल में महिलाओं के प्रति सोच के नजरिये को बदलने की आवश्यकता बताते हुये कहा कि भ्रूणहत्या अमानवीय कृत्य है और इसी सामाजिक बुराई के कारण समाज में लैंगिक असंतुलन को बढावा मिला है। इस पर नियंत्रण के लिये जरूरी है कि समाज की आम सोच को बदला जावे। उन्होंने अहिंसा प्रशिक्षण कार्यक्रम के अन्तर्गत जन साधारण की सोच को बदलने की शक्ति बताई और कहा कि आचार्य महाप्रज्ञ ने इस दिशा में राह दिखाई थी। कार्यक्रम में मुख्यवक्ता के रूप में गर्भस्थ शिशु संरक्षण समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामकिशोर तिवाड़ी ने कहा कि जब तक समाज की मातृशक्ति जागृत नहीं होगी, तब तक इस सामाजिक बुराई पर अंकुश संभव नहीं लगता है। गर्भ में ही शिशु की हत्या कर देना सबसे क्रूर व धृणास्पद दुष्कृत्य है। देश में बालिका भ्रूण हत्या बड़ी संख्या में हो रही है, जो संकीर्ण मानसिकता की वजह से हो रही है, लेकिन आज तो बालक भ्रूण हत्यायें भी कम नहीं हो रही है। उन्होंने सामाजिक संस्कारों में परिवर्तन लाने और इस घोर-पाप के प्रति मानसिकता में बदलाव लाने की जरूरत बताई। समिति के मंत्री करणीदान ने सहज राजस्थानी और अपनी काव्यात्मक भाषा में कन्या भ्रूण हत्या की कुप्रथा की रोकथाम के विभिन्न पहलुओं के बारे में बताया और इस सम्बंध में छात्राओं को जागरूक बनाया। कार्यक्रम में गर्भस्थ शिशु संरक्षण समिति के स्थानीस ईकाई के अध्यक्ष सूरजनारायण राठी, मंत्री अभय नारायण शर्मा, संकाय सदस्य डाॅ. प्रगति भटनागर, कमल कुमार मोदी, सोमवीर सांगवान, डाॅ. विनोद सियाग, श्वेता खटेड़, शेरसिंह, अभिषेक शर्मा, मांगीलाल आदि उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. बलबीर सिंह चारण ने किया।

आचार्य महाप्रज्ञ जन्म शताब्दी वर्ष के अवसर पर आचार्य महाप्रज्ञ कृत ‘जो सहता है वहीं रहता है’ पुस्तक की समीक्षा प्रस्तुत

सहन वही कर सकता है जो शक्तिशाली होता है

लाडनूँ, 17 फरवरी 2020। आचार्य महाप्रज्ञ जन्म शताब्दी वर्ष के अवसर पर जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के शिक्षा विभाग में आयोजित ग्रंथ समीक्षा संगोष्ठी में स्वाति शर्मा ने आचार्य महाप्रज्ञ की कृति ‘‘जो सहता है, वहीं रहता है’’ की समीक्षा प्रस्तुत की। स्वाति ने बताया कि महाप्रज्ञ ने अपनी इस पुस्तक में बताया है कि व्यक्ति हमेशा समूह में निवास करता है और समूह में उसे अनेक व्यक्तियों के बीच रहना पड़ता है, उनके साथ जीना पड़ता है। ऐसे में उसे सबको सहन करने की आवश्यकता रहती है। चाहे प्राकृतिक वातावरण हो या सामाजिक माहौल, परिवार की मर्यादायें हों अथवा शासन के बंधन, व्यक्ति को सबको सहन करने की आदत का विकास करना होता है। तूफान के समय छोटे-छोटे पौधे झुक जाते हैं, तो वे अपना बचाव कर लेते हैं, लेकिन जो पेड़ कड़े होकर तने रहते हैं, उन्हें उखड़ना पड़ता है। वर्तमान में पारिवारिक इकाइयां छोटी होती जारही है, संयुक्त परिवारों से एकल परिवार बन रहे हैं, यह सब सहनशीलता के अभाव का परिणाम है। सहनशीलता का गुण व्यक्ति को मजबूत बनाता है, लेकिन आज का युवा उसे कायरता मान लेता है। जबकि कायता और सहनशीलता बिलुकुल विपरीत होते हैं। अगर कोई अपने आपको कहीं पर स्थापित करना चाहता है, तो उसमें सहनशक्ति का होना बहत जरूरी है और सहन तो वहीं कर सकता है जो अपने आप में शक्तिशाली होता है। स्वाति ने बताया कि आचार्य महाप्रज्ञ ने बहुत ही रोचक भाषा में सटीक उदाहरणाें का प्रयोग करते हुये ‘जो सहता है, वहीं रहता है’ पुस्तक की रचना की है। उन्होंने जीवन में परिवर्तन, समता की दृष्टि, व्यक्तित्व के विविध रूप, अपना आलंबन स्वयं बनें, प्रकृति एवं विकृति, दिशा और दशा, सापेक्ष सत्य, बुद्धि और अभय, न डरें और प डरायें आदि बिन्दुओं में अपने कत्य को तथात्मक ढंग से वर्णित किया है, जिसमें वैचारिक आश्चर्य है, धरातल की सच्चाई है और समुचित मार्गदर्शन व्याप्त है। इससे यह पुस्तक दिशा दिखाने वाली रेष्ठ कृति है। कार्यक्रम में डाॅ. अमिता जैन ने अंत में आभार ज्ञापित किया।

Saturday, 15 February 2020

जैन विश्वभारती संस्थान के अहिंसा एवं शांति विभाग के तत्वावधान में एक दिवसीय अहिंसा प्रशिक्षण शिविर का आयोजन

एकाग्रता, सकारात्मक सोच व संकल्पशक्ति के विकास के लिये अहिंसा प्रशिक्षण सहायक

लाडनूँ, 15 फरवरी 2020। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के अहिंसा एवं शांति विभाग के तत्वावधान में एक दिवसीय अहिंसा प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में विभागाध्यक्ष प्रो. अनिल धर ने अध्यक्षता करते हुये कहा कि शांति की संस्कृति व मानवाधिकारों की रक्षा की दिया में अहिंसा प्रशिक्षण महत्वपूर्ण महत्व रखता है। हम अपनी छोटी-छोटी आदतों को बदल कर सकारात्मक सोच के माध्यम से हम अपने व्यवहार को एवं समूचे जीवन को परिवर्तित कर सकने में समर्थ हो पाते हैं। प्रशिक्षण का अपने-आप में बहुत महत्व होता है। सह आचार्य समणी रोहिणी प्रज्ञा ने कहा कि अपने भाव, विचार और संकल्प को मजबूती दिये जाने से व्यक्ति बदल सकता है, इसमें अहिंसा प्रशिक्षण से बहुत सहायता प्राप्त होती है। शिविर में प्रो. समणी सत्यप्रज्ञा ने सम्भागियों को अहिंसा प्रशिक्षण के व्यावहारिक प्रयोगों का अभ्यास करवाया। उन्होंने मन की शांति, एकाग्रता व मानसिक संतुलन में सहायक अनुलोम-विलोम प्राणायाम तथा ध्यान के प्रयोग करवाये। उन्होंने प्रशिक्षणार्थियों से कहा कि संस्कारों के बीज मन में बोने का प्रयास करें। महाप्राण ध्वनि और अनुलोम-विलोम के प्रयोग द्वारा संकल्पशक्ति का विकास होगा और सकारात्मक सोच विकसित होगी। प्रो. समणी सत्यप्रज्ञा ने गुस्सा नहीं करने, स्मरणशक्ति के विकास और शांति प्राप्ति के लिये मस्तिष्क की शक्ति बढाने के प्रयोग करवाये और उनका महत्व बताया। उन्होंने बताया कि इनसे एकाग्रता के साथ मन को मजबूती मिलती है। शिविर में यहां के दयानन्द सरस्वती सी. सै. स्कूल के विद्यार्थियों ने भाग लेकर प्रशिक्षण प्राप्त किया। शिविर में अहिंसा एवं शांति विभाग के शोधार्थियों व विद्यार्थियों कमल किशोर, उषा, हरफूल, हीरालाल, रजनी, राजकुमारी, रेणु, सोनिया आदि का सहयोग रहा। कार्यक्रम के अंत में सहायक आचार्य डाॅ. रविन्द्र सिंह राठौड़ ने आभार ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. विकास शर्मा ने किया।

जैन विश्वभारती संस्थान में ग्रंथ समीक्षा संगोष्ठी में आचार्य महाप्रज्ञ कृत पुस्तक ‘जैन दर्शनः मनन और मीमांसा’’ की समीक्षा प्रस्तुत

दर्शन की गूढता को सरल करके सर्वजन उपयोगी बनाया

लाडनूँ, 15 फरवरी 2020। आचार्य महाप्रज्ञ जन्म शताब्दी वर्ष के अवसर पर जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) संचालित ग्रंथ समीक्षा संगोष्ठी कार्यक्रम अन्तर्गत के प्राकृत एवं संस्कृत विभाग में आचार्य महाप्रज्ञ कृत पुस्तक ‘‘ जैन दर्शनः मनन और मीमांसा’’ की समीक्षा प्रस्तुत की गई। इस पुस्तक समीक्षा में सहायक आचार्या डाॅ. समणी भास्कर प्रज्ञा ने बताया कि महाप्रज्ञ ने परम्परा और कालचक्र, तत्व मीमांसा, आचार मीमांसा, ज्ञान मीमांसा और प्रमाण मीमांसा इन 5 खंडों में जैन दर्शन के गूढ रहस्यों को आसान व सरल भाषा में नवीन तथ्यों के साथ प्रस्तुत करते हुये जैन दर्शन की बौद्ध व वेदांत दर्शनों के साथ तुलना प्रस्तुत करके भारतीय दर्शन का सटीक व तटस्थता पूर्वक निरूपण किया है। पुस्तक की विषयवस्तु, उसकी पृष्ठभूमि और रहस्यों के बारे में बताते हुये डाॅ. भास्कर प्रज्ञा ने कहा कि आचार्य महाप्रज्ञ की साहित्यिक मेधा उच्च कोटि की रही थी। उह उनकी लेखनी और मेधाशक्ति की विशेषता ही रही कि उन्होंने इस गूढ विषय वाली पुस्तक को आबाल-वृद्ध सामान्यजन से लेकर विद्वानों तक प्रत्येक श्रेणी के व्यक्ति के लिये पठनीय एवं हृदंगम करने वाली पुस्तक का स्वरूप दिया है। इस ग्रंथ समीक्षा संगोष्ठी की अध्यक्षता विभागाध्यक्ष प्रो. दामोदर शास्त्री ने की। संगोष्ठी में डाॅ. समणी संगीतप्रज्ञा, डाॅ. समणी सम्यक्त्व प्रज्ञा, डाॅ. सत्यनारायण भारद्वाज, डाॅ. सुनीता इंदौरिया, डाॅ. मीनाक्षी मारू एवं समस्त शोधार्थी व विद्यार्थी उपस्थित रहे।

Friday, 14 February 2020

जैन विश्वभारती संस्थान में राष्ट्रीय केडेट्स कोर (एनसीसी) ने दी पुलवामा शहीदों को श्रद्धांजलि

लाडनूँ, 14 फरवरी 2020। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में राष्ट्रीय केडेट्स कोर (एनसीसी) के कैडे्स ने एक कार्यक्रम आयोजित करके पुलवामा के हमले में शहीद हुये जवानों को श्रद्धांजलि अप्रित की। इस अवसरपर कैडेट्स ने शहीदों की स्मृति में गान प्रस्तुत किया। एनसीसी की एएनओ आयुषी शर्मा ने अपने सम्बोधन में शहीदों की शहादत को याद करते हुये उनके बारे में विस्तार से बताया तथा राष्ट्र के लिये हर बलिदान देने के लिये तत्पर रहने की आवश्यकता बताई। अध्यक्षता करते हुये आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने पुलवामा की घटना को दुश्मन देश पाकिस्तान की साजिश करार देते हुये कहा कि हम सभी देशवासियों को देश के किसी भी कोने में ऐसी साजिशों के प्रति सजग रहना होगा तथा देश के जवानों के प्रति पूर्ण सम्मान प्रत्येक देशवासी के दिल में होना आवश्यक है। इस अवसर पर डाॅ. प्रगति भटनागर, श्वेता खटेड़, सोमवीर सांगवान, अभिषेक शर्मा, शेरसिंह, शिवानी, आरती, मनीषा बुगालिया, मनीषा शर्मा, प्रियंका, पूजा, निरमा, गीता, पुष्पा, वर्षा आदि अपस्थित रहे। मुख्य एनसीसी प्रभारी अजयपाल सिंह भाटी ने कार्यक्रम का संचालन किया।

जैन विश्वभारती संस्थान एवं जैन विश्व भारती के संयुक्त तत्वावधान में अभिनन्दन एवं मंगलभावना समारोह का आयोजन

संतों के आगमन से होती है विवेक की जागृति- मुनिश्री सुमति कुमार

लाडनूँ, 14 फरवरी 2020। जैन विश्व भारती स्थित भिक्षु विहार में जैन विश्व भारती एवं जैविभा विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में अभिनन्दन एवं मंगलभावना समारोह का आयोजन किया गया, जिसमें मुनिश्री सुमति कुमार का यहां स्वागत किया गया और मुनिश्री देवेन्द्र कुमार के प्रति मंगलभावनायें व्यक्त की गई। मुनिश्री सुमति कुमार यहां वृद्ध साधु-साध्वी सेवाकेन्द्र व्यवस्थापक के रूप में एक साल के लिये यहां आये हैं तथा मुनिश्री देवेन्द्र कुमार यहां व्यवस्थापक पद से एक साल कार्यरत रह कर सेवानिवृत होकर यहां से प्रस्थान करने जा रहे हैं। कार्यक्रम में मुनिश्री सुमति कुमार ने इस अवसर पर कहा कि संतों का आना व्यक्ति के भीतर की आंखों खोल कर उसके विवेक के जागरण का माध्यम बनता है। संतों की संगति के कारण व्यक्ति को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। जो शांत होता है, वहीं संत होता है। जिसकी शांति नहीं रही, गुस्सा हो गया हो तो उसकी संतता चली जाती है। उन्होंने कहा कि सेवा का लक्ष्य लेकर वे अपने सहवर्ती संतों के साथ लाडनूँ आये हैं। सेवा को परम धर्म की उपमा देते हुये उन्होंने कहा कि जैन धर्म अहिंसा परमोधर्मः पर आधारित है, वैसे ही सेवा परमोधर्म भी महत्वपूर्ण होता है। सच्चे मन से सेवा करने पर व्यक्ति के कर्मों की निर्जरा होती है। उन्होंने जैन विश्व भारती को पवित्र भूमि बताते हुये कहा कि यह आचार्य तुलसी की महान देन है और यहां शांत व सुरम्य वातावरण मन को प्रसन्नता देता है। मुनिश्री देवेन्द्र कुमार ने कहा कि संतों की संगति प्राप्त होना सौभाग्य की बात होती है। उन्होंने बताया कि यहां एक साल वे रहे, उन्हें सहवर्ती संतों, अन्य संतों एवं श्रावक-श्राविकाओं का सहयोग मिला। संतों का आगमन मंगल माना जाता है, तो उनका प्रस्थान भी मंगल ही माना जाता है।

सेवा से होती है ब्रह्म की प्राप्ति

संस्थान के कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने कहा कि केवल सेवा से ब्रह्म की प्राप्ति की बात प्राचीन ग्रंथों और वैदिक साहित्य में मिलती है। मुनिश्री देवेन्द्र कुमार के प्रति मंगलभावना व्यक्त करते हुये उन्होंने कहा कि वे सरल, सहज, निर्लेप व शांत थे और उनमें ऋजुता थी। वे नियमित रूप से यहां आचार्य तुलसी समाधिस्थल जाते और वहां ध्यान-साधना आदि करते थे। उन्होंने मुनिश्री सुमति कुमार को भी धीर, गंभीर व शांत बताते हुये कहा कि उनका यहां पधारना जैन विश्व भारती, जैविभा विश्वविद्यालय और सम्पूर्ण लाडनूँ के लिये लाभप्रद रहेगा। यहां उनसे ज्ञान-ध्यान सीखने को मिलेगा। कार्यक्रम में मुनिश्री तन्मय कुमार, मुनिश्री देवार्य, आदित्य मुनि, अणुव्रत जीवन विज्ञान अकादमी के असिस्टेंट डायरेक्टर हनुमान मल शर्मा, प्रेक्षा फांउडेशन के चैयरमेन अरविन्द गोठी, राजेन्द्र मोदी इंदौर, दूरस्थ शिक्षा निदेशक प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी आदि ने भी इस अवसर पर स्वागत एवं मंगलभावना व्यक्त की। इस अवसर पर जैन विश्व भारती के सहमंत्री अशोक चिंडालिया, रजिस्ट्रार रमेश कुमार मेहता, प्रो. अनिल धर, डाॅ. अमिता जैन, डाॅ. युवाराज सिंह खांगारोत, डाॅ. प्रद्युम्नसिंह शेखावत, प्रगति चैरड़िया, आयुषी शर्मा, पंकज भटनागर, डाॅ. जेपी सिंह, कमल कुमार मोदी, डाॅ. विनोद सियाग, डाॅ. सरोज राय, डाॅ. सुनिता इंदौरिया, विजय कुमार शर्मा, डाॅ. मनीष भटनागर, डाॅ. गिरीराज भोजक, डाॅ. सत्यनारायण भारद्वाज, डाॅ. रविन्द्र सिंह राठौड़, डाॅ. योगेश जैन, सोमवीर सांगवान, अजयपाल सिंह भाटी आदि उपस्थित थे। इससे पूर्व प्रातः मुनिश्री सुमति कुमार व अन्य सहवर्ती संतों को बड़ी संख्या में श्रावकगण यहां ऋषभद्वार से लाकर जैन विश्व भारती में मंगल प्रवेश करवाया गया।

जैन विश्वभारती संस्थान के आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय में अभिभावक-शिक्षक बैठक आयोजित

अभिभावकों के सुझावों से निखरेगा शिक्षा का स्वरूप

लाडनूँ, 14 फरवरी 2020। जैन विश्वभारती संस्थान के आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय में शुक्रवार को आयोजित अभिभावक-शिक्षक बैठक की अध्यक्षता करते हुये प्राचार्य प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने कहा कि अभिभावकों द्वारा दिये जाने वाले सुझाव व उठाये जाने वाले सवाल बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। वे उन्हें विद्यार्थी एवं स्वयं के अनुभवों के आधार पर रखते हैं, उनका समाधान किया जाने से निश्चित रूप से महाविद्यालय का स्वरूप निखरेगा और यहां की शिक्षण व्यवस्था तुलनात्मक रूप से अन्य महाविद्यालयों से अधिक गुणवतापूर्ण बन पाती है। उन्होंने महाविद्यालय की विभिन्न गतिविधियों के बारे में बताते हुये संचालित विभिन्न क्लबों के माध्यम से छात्राओं की रूचि के अनुरूप उनके कौशल का विकास किये जाने, उनमें वक्तृत्व कला, नृत्य कला, गायन कला, चित्रकला, योग आदि के गुणों का विकास शिक्षण के साथ सहज भी संभव हो पाता है। बैठक में छात्रा दक्षता कोठारी, सुरभि नाहटा व माधुरी सोनी ने महाविद्यालय की विशेषताओं के बारे में बताया। कार्यक्रम के शुरू में कुसुम नाई व समूह ने स्वागत गीत प्रस्तुत किया। अभिभावकों व अध्यापकों का परस्पर परिचय करवाया गया। अंत में अभिभावकों की जिज्ञासाओं एवं सवालों के जवाब दिये गये। व्याख्याता कमल कुमार मोदी, अभिषेक चारण व राजश्री शर्मा ने सभीकी शंकाओं का समाधान प्रस्तुत किया। अभिभावकों ने महाविद्यालय की व्यवस्थाओं व शिक्षा के प्रति संतोष जताया। बैठक में प्रदीप कोठारी, मोहम्मद अयूब, हरिराम जाट, रामकुमार मंडा, किशन प्रजापत, महावीर सारण, धनराम बाघवानी, नत्थूसिंह सांखला, पन्नालाल शर्मा, जाकिर खां, लीला देवी, जयश्री पांड्या, किरण सांखला, बिस्मिल्लाह बानो, बरजी देवी, जमना देवी, मनीषा, सरिता, मुन्नी देवी, मनफूल देवी, मंजू देवी, मधु नाहटा, ज्योत्सना राठौड़ आदि उपस्थित थे। बैठक का संचालन अभिषेक चारण ने किया।

Thursday, 13 February 2020

जैन विश्वभारती संस्थान में प्रसार भाषणमाला में पाठ योजना में सुधार के लिये सुझाव

लाडनूँ, 13 फरवरी 2020। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के शिक्षा विभाग के अन्तर्गत संचालित प्रसार भाषणमाला में गुरूवार को प्रो. शिरीष वालिया ने अपना भाषण प्रस्तुत किया। इस कार्यक्रम में प्रो. वालिया ने कहा कि पाठ योजना तैयार करने से पहले अपने विषय के अध्यापक से राय लें। इसमें कथन छोटा होना चाहिये तथा सार प्रश्न ही पूछे जाने चाहिये। विषय के आधार पर ही शिक्षक सहायक सामग्री का प्रयोग करें तथा शिक्षण बिन्दुओं के आधार करवाया जावे। शिक्षण सहायक सामग्री कक्षा स्तर के अनुरूप हों और वह ठीक प्रकार से दिखाई दे। बीएड के वार्षिक पाठ योजना तथा प्रशिक्षण काल में श्यामपट्ट कार्य महत्वपूर्ण है। शिक्षण सहायक सामग्री का प्रयोग उचित समय पर करना ही प्रभावशाली है। पाठ योजना डायरी साफ व स्वच्छता से तैयार की जानी चाहिये। प्रो. शिरीष वालिया ने रोचक उदाहरणों के माध्यम से जीवन के व्यावहारिक पक्षों पर भी विस्तार से प्रकाश डाला। शिक्षा विभाग के समस्त संकाय सदस्य उपस्थित थे। अंत में डाॅ. मनीष भटनागर ने धन्यवाद ज्ञापन किया। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. सरोज राय ने किया।

जैन विश्वभारती संस्थान के जैन विद्या एवं तुलनात्मक धर्म व दर्शन विभाग में ‘‘जैन योग में आचार्य महाप्रज्ञ का योगदान’’ विषय पर राष्ट्रीय कार्यशाला आयोजित

प्रेक्षाध्यान केवल शारीरिक व्याधियां ठीक करने का माध्यम नहीं, बल्कि आत्मदर्शन का माध्यम- डाॅ. मल्लीप्रज्ञा

लाडनूँ, 13 फरवरी 2020। आचार्य महाप्रज्ञ जन्म शताब्दी वर्ष के अवसरपर जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के जैन विद्या एवं तुलनात्मक धर्म व दर्शन विभाग के तत्वावधान में यहां एक दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। ‘‘जैन योग में आचार्य महाप्रज्ञ का योगदान’’ विषय पर आयोजित इस कार्यशाला में मुख्य वक्ता के रूप में समणी नियोजिका डाॅ. समणी मल्लीप्रज्ञा ने कहा कि यह तुलसी-महाप्रज्ञ युग है, जिसमें मानव-निर्माण का बीड़ा उठाया गया है। अणुव्रत-जीवन विज्ञान आधारित पद्धति से यह कार्य किया जा रहा है। ऋषभ से लेकर महावीर तक और महावीर से लेकर तुलसी-महाप्रज्ञ तक जैन योग द्वारा चेतना के ऊर्ध्वारोहण का कार्य किया गया है। उन्होंने बताया कि कायोत्सर्ग को शवासन या शिथिलीकरण ही नहीं माना जाये, बल्कि यह आत्मा और शरीर की भिन्नता को प्रकट करने का प्रयोग है। प्रेक्षाध्यान बीपी, डायबीटीज आदि शारीरिक व्याधियों को ठीक करने का माध्यम नहीं है, बल्कि यह आत्मदर्शन का माध्यम है। यह चेतना की धारा को वीतरागतातक ले जाता है। महाप्रज्ञ का विश्व को सबसे बड़ा अवदान है चेतना का रूपांतरण और यही प्रेक्षाध्यान का वैशिष्ट्य है। महावीर का योगदान था उपदान और निमित की चेतना। कर्म सारे निमित होते हैं। हम किसी को न सुधार सकते हैं और प बिगाड़ सकते हैं। उन्होंने बताया कि प्रेक्षाध्यान शुद्ध अध्यात्म का विज्ञान है। वैज्ञानिक तौर पर हम इसे सिद्ध कर सकते हैं। उपादान हमारी आत्मा है। यह आत्मा पर चोट करता है। प्रेक्षाध्यान आत्मा का स्वास्थ्य सुधारता है। कार्यशाला में प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम आयोजित किया जाकर जिज्ञासाओं के समाधान भी समणी डाॅ. मल्लीप्रज्ञा द्वारा किया गया।

महावीर से महाप्रज्ञ तक जैन योग का सफर

कार्यशाला की अध्यक्ष प्रो. समणी ऋजुप्रज्ञा ने इस अवसर पर कहा कि महाप्रज्ञ ने 20वीं शताब्दी में प्रेक्षाध्यान दिया, लेकिन इससे पूर्व जैन योग की स्थिति क्या रही, इस पर विचार किया जाने पर ज्ञात होता है कि भगवान महावीर की साधना कायोत्सर्ग, भावना, विपश्यना और विचय- इन चार में विभक्त थी। इसे महाप्रज्ञ ने अपनी पुस्तक ‘महावीर की साधना का रहस्य’ में विस्तार से समझाया है। महावीर के बाद के समय में ध्यान की परम्परा लुप्त हो गई थी। बाद में ध्यान प्रधान जैन धर्म के स्थान पर स्वाध्याय प्रधान धर्म रह गया था। फिर हठयोग और तंत्र ने स्थान बनाया। आचार्य महाप्रज्ञ ने प्रेक्षाध्यान प्रदान करके जैन योग को नई दिशा प्रदान की। प्रो. ऋजुप्रज्ञा ने आत्मा के आठ प्रकार बताते हुये कहा कि जो शुद्ध आत्मा होती है, वही योग आत्मा, कषाय आत्मा, वीर्य आत्मा, उपयोग आत्मा, ज्ञान दर्शन आत्मा, क्रोध आत्मा आदि रूप धारण करती है। महावीर ने स्वयं सत्य को खोजने का संदेश दिया है। उन्होंने बताया कि ध्यान को ज्ञान का विषय नहीं बल्कि अभ्यास का विषय मानना चाहिये। मन को चंचलता से बाहर निकालना जरूरी है। कार्यशाला के मुख्य अतिथि राजेन्द्र मोदी इंदौर ने आचार्य महाप्रज्ञ को महायोगी बताया तथा उनकी सिद्धि के अनेक अनुभव साझा किये। विशिष्ट अतिथि पारस दूगड़ मुम्बई ने जीवन की जटिल समस्याओं से छुटकारा पाने का साधन प्रेक्षाध्यान को बताया तथा कहा कि इससे जीवन को परिवर्तित करने की क्षमता है। प्रेक्षाध्यान से शारीरिक, मानसिक व भावात्मक परिवर्तन लाये जा सकते हैं। मिश्रीमल जैन ने बताया कि उसकी अस्थमा की बीमारी प्रेक्षाध्यान से ठीक हो गई। वह पिछले 40 सालों से प्रेक्षाध्यान का अभ्यास कर रहा है। इसमें जीवन में बदलाव लाने की शक्ति है। अंत में डाॅ. प्रद्युम्न सिंह शेखावत ने आभार ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. योगेश कुमार जैन ने किया।

Tuesday, 11 February 2020

आचार्य महाप्रज्ञ जन्म शाताब्दी वर्ष में आचार्य महाप्रज्ञ कृत पुस्तक ‘अवचेतन मन से सम्पर्क’ की समीक्षा

अवचेतन मन से संपर्क पुस्तक में महाप्रज्ञ ने अखंड व्यक्तित्व निर्माण का मार्ग बताया

लाडनूँ, 11 फरवरी 2020।आचार्य महाप्रज्ञ जन्म शाताब्दी वर्ष के अन्तर्गत जैन विश्वभारती संस्थान के योग व जीवन विज्ञान विभाग में पुस्तक समीक्षा कार्यक्रम में आचार्य महाप्रज्ञ कृत पुस्तक ‘अवचेतन मन से सम्पर्क’ की समीक्षा डाॅ. हेमलता जोशी द्वारा प्रस्तुत की गई। डाॅ. जोशी ने बताया कि चेतना एक ऐसा तत्त्व है जो प्राणी को उसके अस्तित्व और उसके पर्यावरण का ज्ञान कराती है। चेतना के तीन स्तर माने गए हैं- चेतन, अवचेतन और अचेतन। चेतन का संबंध प्रत्यक्ष ज्ञान से है जिसमें हमारी इंद्रियां प्रत्यक्ष जुड़ी रहती हैं तो अवचेतन का संबंध अप्रत्यक्ष ज्ञान से है। अचेतन का संबंध इन दोनों से परे है जहां का हमें कोई ज्ञान नहीं है। अचेतन हमारे व्यवहार का मूल है। हमारे भीतर जो संस्कार, जो इच्छाएं, विश्वास जमा हैं, चाहे वे सकारात्मक हों या नकारात्मक, वही व्यवहार रूप में व्यक्त होते हैं। अतः नकारात्मकता को दूर करने हेतु अचेतन का परिष्कार और सकारात्मकता को बढ़ाने हेतु अचेतन को प्रशिक्षित करना आवश्यक माना गया है। आचार्य महाप्रज्ञ ने इस पुस्तक को तीन भागों में बांटा है- ज्ञात-अज्ञात, मन की सीमा और चेतना के आयाम। इनमें वर्तमान की तीन ज्वलंत समस्याओं को समाहित करने का प्रयास किया है। वे समस्याएं है- मानसिक अशांति, हिंसा की उग्रता और नैतिक चेतना का अभाव। इनके समाधान के लिए बौद्धिक और भावात्मक विकास का संतुलन, विधायक दृष्टिकोण और संबंधों के नये क्षितिज को महत्त्व दिया है, जिसके लिए अवचेतन और अचेतन मन से संपर्क स्थापित करने की बात कही है। आचार्य महाप्रज्ञ ने अखंड व्यक्तित्व की परिकल्पना की है जिसमें ज्ञात-अज्ञात अर्थात् बाह्य और आंतरिक पक्ष के संतुलन की बात कही है। जिसके लिये विधायक दृष्टिकोण, यथार्थ चिंतन और अनुशासन आदि के साथ इनके मूल भाव को परिष्कृत करने पर सर्वाधिक बल दिया है। पुस्तक में वैज्ञानिक तथा दार्शनिक दोनों पक्षों को महत्त्व दिया है। चित्त को चंचल करने वाले हैं-नाड़ी संस्थान, आनुवांशिकता, कर्म, कर्म शरीर, कर्म शरीर के प्रभाव और उनसे उत्पन्न होने वाली प्रतिक्रियाएं- संज्ञा, संस्कार, वृत्ति आदि। समाधान है चित्त का निरोध। विज्ञान के अनुसार हमारा मस्तिष्क विद्युत प्रवाहों और रसायनों से प्रभावित होता है। रसायनों, विद्युत तरंगों का भावों से गहरा संबंध है। ध्यान के प्रयोगों में पे्रक्षाध्यान के विभिन्न प्रयोग कायोत्सर्ग, श्वासपे्रक्षा, चैतन्यकेन्द्र पे्रक्षा, लेश्याध्यान, अनुपे्रक्षाओं को विशेष महत्त्व दिया है, जिनका संबंध भाव परिष्कार से है। आचार्य महाप्रज्ञ की ‘‘अवचेतन मन से संपर्क’’ नामक पुस्तक अखंड व्यंिक्तत्व के निर्माण में अपनी महती भूमिका अदा करती है। इसमें एक ओर अनेक मूल्यों को व्यवहारगत करने की बात है तो दूसरी ओर भाव परिष्कार को सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण माना है। मूल्यों को व्यवहारगत करने से भाव शुद्ध होते हैं और भाव शुद्धि से मूल्यों का विकास होता है। जीवन में सुख-शांति और आनंद की चाह रखने वालों के लिए यह पुस्तक अनेकांतिक दृष्टि से अपना विशेष स्थान रखती है।

Monday, 10 February 2020

जैन विश्वभारती संस्थान में काम करने वाले कर्मचारियों के लिये कोरल ड्रा व फोटो शोप के निःशुल्क अल्कालिक पाठ्यक्रम का शुभारम्भ

लाडनूँ, 10 फरवरी 2020। जैन विश्वभारती संस्थान में काम करने वाले कर्मचारियों के लिये भी कौशल विकास आवश्यक कर दिया गया है। इसके अन्तर्गत इच्छुक कार्मिकों के लिये 10 दिवसीय निःशुल्क कोर्स का प्रारम्भ किया गया, जिसमें सोमवार से फोटोशाॅप एवं कोरल-ड्रा सोफ्टवेयर की कार्यप्रणाली व्यावहारिक तौर पर सिखाई जा रही है। इस अल्पकालिक पाठ्यक्रम में संस्थान के गैर शैक्षणिक कर्मचारियों ने बड़ी संख्या में रूचि दर्शाई है। कोर्स के शुभारम्भ के अवसर पर संस्थान के शैक्षणिक अधिकारी विजय कुमार शर्मा ने कहा कि संस्थान टैली एकाउंटिंग सिस्टम, इंग्लिश स्पोकन कोर्स आदि विभिन्न अल्पकालीन पाठ्यक्रमों के माध्यम से कौशल विकास का कार्य सफलता पूर्वक कर रहा है। संस्थान के कार्मिकों के लिये कोरल ड्रा एवं फोटोशोप निश्चित रूप से उपयोगी सिद्ध होंगे। दक्ष प्रशिक्षक रखती है। रखती है। शरद जैन सुधांशु ने कहा कि सीखने के लिये जो सदैव तत्पर रहता है, वही भरपूर आत्मविश्वास का धनी होता है। सीखा हुआ हुनर जीवन में सदैव काम आता है।

Saturday, 8 February 2020

जैन विश्वभारती संस्थान के आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय में अन्तर्विद्यालयी नृत्य प्रतियोगिता का आयोजन

आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय में अन्तर्विद्यालयी नृत्य प्रतियोगिता में एकल नृत्य में ऐश्वर्या व सामुहिक नृत्य में तेजिका समूह रहा विजेता

लाडनूँ, 8 फरवरी 2020। जैन विश्वभारती संस्थान के आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय में संचालित सोनल मानसिंह क्लब एवं राष्ट्रीय सेवा योजना के संयुक्त तत्वावधान में अन्तर्विद्यालयी नृत्य प्रतियोगिता का आयोजन शनिवार को महाप्रज्ञ-महाश्रमण ओडिटोरियम में किया गया। प्रतियोगिता में एकल नृत्य में आदर्श विद्या मन्दिर जसवंतगढ़ की ऐश्वर्या सोनी ने प्रथम स्थान प्राप्त किया। केशरदेवी राजकीय बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय की छात्रा जयश्री वर्मा द्वितीय स्थान एवं श्रीलाडमनोहर बाल निकेतन माध्यमिक विद्यालय की छात्रा प्रियंका जांगिड़ तृतीय स्थान पर रही एवं प्यारीदेवी तापड़िया उच्च माध्यमिक विद्यालय, जसवंतगढ़ की पूजा शर्मा ने सांत्वना पुरस्कार प्राप्त किया। इसी प्रकार सामूहिक नृत्य प्रतियोगिता में ओसवाल उच्च माध्यमिक विद्यालय, सुजानगढ़ की तेजिका चैधरी व समूह ने प्रथम स्थान प्राप्त किया। सेठ सूरजमल भूतोड़िया राजकीय बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय की मनीषा प्रजापति एवं समूह ने द्वितीय व मदनलाल भवंरीदेवी आर्य मेमोरियल संस्थान की छात्रा स्नेहा सैनी एवं समूह ने तृतीय स्थान प्राप्त किया। सांत्वना पुरस्कार के लिए संस्कार उच्च माध्यमिक विद्यालय की शबाना एवं समूह का चयन किया गया। कार्यक्रम में सभी विजेता छात्राओं को पुरस्कार एवं प्रमाणपत्र प्रदान किये गये।

गलतियां सुधार कर आगे बढें

इस अवसर पर प्राचार्य प्रो. आनन्दप्रकाश त्रिपाठी ने कहा कि शिक्षा के साथ अन्य गतिविधियां भी छात्राओं के सर्वांगीण विकास हेतु आवश्यक है। ऐसी प्रतियोगिताओं के आयोजनों के माध्यम से निर्णय लेने की क्षमता, प्रबन्धन की कला, साहस और धैर्य का विकास होता है। विशिष्ट अतिथि आयशा सिंह ने कहा कि हम खुशी के लिए काम करेंगे तो ना खुशी मिलेगी और ना सफलता, लेकिन अगर हम खुश रहकर किसी काम को करते हैं तो सफलता के नित नये आयाम छू सकते हैं। मुख्य अतिथि पूजा चैधरी ने कहा कि जीवन में निराश होना आपकी प्रगति में बाधक है। असफलताओं से निराश होने की बजाय सीख लेनी चाहिए ताकि अपनी गलतियों को सुधारकर असफलता रूपी सागर से पार पाया जा सके। कार्यक्रम के प्रारम्भ में स्वागत गीत कुसुम एवं समूह ने प्रस्तुत किया। कार्यक्रम में तेरापंथ महिला मण्डल की अध्यक्षा तारा बोथरा, मंत्री सपना भंसाली, कनक दूगड़, गजेन्द्रजी बोहरा एवं मदनलाल चिण्डालिया अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। इनका स्वागत क्लब सदस्य छात्राओं द्वारा पुष्प-गुच्छ एवं संस्थान का प्रतीक चिन्ह भेंट कर किया गया। उदयपुर से प्रतियोगिता हेतु पधारे गजेन्द्र बोहरा द्वारा सोनल मानसिंह क्लब को 5 हजार रूपये की प्रोत्साहन राशि भेंट की गई। डाॅ. पुष्पा मिश्रा द्वारा कार्यक्रम की समीक्षा की गई। आभार क्लब प्रभारी वाणिज्य व्याख्याता श्वेता खटेड़ द्वारा किया गया।

छात्राओं की छात्राओं के लिए छात्राओं द्वारा आयोजित अनोखी प्रतियोगिता

कार्यक्रम का आयोजन सोनल मानसिंह क्लब की छात्राओं द्वारा लाडनूं क्षेत्र के सभी उच्च माध्यमिक विद्यालयों हेतु किया गया, जिसमें छात्राओं का उद्देश्य नृत्य प्रतियोगिता के माध्यम से युवा छात्राओं में देश की संस्कृति एवं लोक-गीतों के प्रति जागरूकता लाना रहा। देश की सांस्कृतिक विरासत को बचाने का यह उपक्रम काफी हद तक सफल भी साबित हुआ। कार्यक्रम में अध्यक्ष, मुख्य अतिथि, संचालनकर्ता, निर्णायक आदि सभी भूमिकाएं क्लब सदस्य छात्राओं द्वारा निभाई गई। कार्यक्रम की अध्यक्षता छात्रा दक्षता कोठारी ने की सह-अध्यक्ष की भूमिका सृष्टि जड़िया ने अदा की वहीं मुख्य अतिथि छात्रा पूजा चैधरी एवं विशिष्ट अतिथि आयशा सिंह रही। प्रतियोगिता में निर्णायक के तौर पर भी छात्रा प्रीति फूलफगर, दिव्यता कोठारी व पूजा प्रजापत रही। कार्यक्रम की छात्रा समीक्षक की भूमिका में बी.काॅम तृतीय वर्ष की छात्रा सोनम कंवर रही। कार्यक्रम का संचालन काजल प्रजापत, मानसी जांगीड़, नवनीधि दौलावत, कीर्ति बोकड़िया, सुरभि नाहटा व हसीबा बानो ने किया। कार्यक्रम में सहयोगी रही छात्राओं में मुस्कान बानो, ईशा जड़िया, दिशा बैंगानी, पूजा सोनी, ऋतिका सांखला, निशा राठौड़ आदि शामिल रही। इस अवसर पर सोनल मानसिंह क्लब की छात्राओं ने भी नृत्य प्रस्तुतियां देकर विद्यालय से आई छात्राओं को प्रेरणा दी।

जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के कुलपति प्रो. दूगड़ को ‘‘विश्व कवि रविन्द्रनाथ टैगोर मैमोरियल अवार्ड‘‘ से सम्मानित

बधाइयां देने वालों का तांता लगा

लाडनूँ, 8 फरवरी 2020। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ को इंडियन इंस्टीट्यूट आफ ओरियेंटल की ओर से पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने ‘‘विश्व कवि रविन्द्रनाथ टैगोर मैमोरियल अवार्ड‘‘ से सम्मानित किया। उन्हें यह सम्मान उनकी उत्कृष्ट विद्वता एवं प्राच्य विद्याओं के क्षेत्र में अध्ययन, शोध एवं विकास को संरक्षण, भारतीय संस्कृति के प्रसार एवं प्राचीन भारतीय ज्ञान को आधुनिक परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुति के प्रयासों के लिये प्रदान किया गया है। कोलकाता के रविन्द्र भवन में आयोजित तीन दिवसीय 43वें वार्षिक अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन समारोह में इन अवार्ड के रूप में उन्हें सम्मान-स्वरूप प्रशस्तिपत्र एवं स्मृति चिह्न प्रदान किये गये। यह सम्मान प्रो. दूगड़ की ओर से जैन विश्वभारती संस्थान की सहायक प्रोफेसर डाॅ. प्रेमलता चैरडिय़ा ने प्राप्त किया। प्रो. दूगड़ को यह सम्मान दिये जाने पर अखिल भारतीय जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के अध्यक्ष सुरेश गोयल ने कहा कि यह पूरे धर्मसंघ का सम्मान हुआ है। हमें इस बात पर गौरव है कि हमारे समाज में ऐसे विद्वान सज्जन पुरूष हैं। सभा के पूर्व अध्यक्ष हंसराज बेताला, चैनरूप चिंडालिया, पूर्व महामंत्री विनोद बैद, जैन विश्व भारती के मंत्री गौरव जैेन, कोषाध्यक्ष प्रमोद बैद, पूर्व अध्यक्ष डाॅ. धर्मचंद लूंकड़, रमेश बोहरा, हीरालाल मालू, पूर्व मुख्य न्यासी भागचंद बरडिय़ा, राजस्थान पत्रिका समूह के प्रधान सम्पादक डाॅ. गुलाब कोठारी, जय तुलसी फाउंडेशन के अध्यक्ष तुलसी दूगड़, पूर्व अध्यक्ष सुरेन्द्र दूगड़, कनकमल दूगड़, अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के पूर्व अध्यक्ष पन्नालाल टांटिया, जगन्नाथ विश्वविद्यालय जयपुर के कुलपति प्रो. मदन मोहन, जैविभा विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. बीसी लोढा, प्रो. महावीरराज गेलड़ा, नागपुर विश्वविद्यालय के प्रो. भागचंद जैन, हरियाणा के डाॅ. संजीव, कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय के प्रो. आरके यादव, राजवीर सिंह यादव, पंजाब विश्वविद्यालय के एमएल शर्मा, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रो. विमलेन्दु कुमार, शांति निकेतन विश्वविद्यालय के प्रो. जगतराम भट्टाचार्य, जोधपुर विश्वविद्यालय के प्रो. धर्मचंद जैन, शिवनारायण जोशी, संस्कृत विश्वविद्यालय के प्रो. सुदीप जैन, मुजफ्फरपुर के प्रो. जय कुमार जैन, राजस्थान विश्वविद्यालय के प्रो. केएन व्यास, विद्या जैन, जयपुर के प्रो. अशोक बापना, सुखाडिय़ा विश्वविद्यालय के प्रो. प्रेमसुमन जैन, प्रो. एसआर व्यास, प्रो. जिनेन्द्र जैन जम्मू विश्वविद्यालय के प्रो. अनुराग गंगल, भारत सरकार के पूर्व वित्त सलाहकार एमके सिंघी, प्रसिद्ध वैज्ञानिक डाॅ. नरेन्द्र भंडारी, पूर्व पुलिस महानिदेशक डाॅ. मनोज भट्ट, परिवहन आयुक्त डाॅ. नानूराम चोयल, बीकानेर के दंत चिकित्सक डाॅ. राजकुमार पुरोहित, हड्डी रोग विशेषज्ञ डाॅ. कमलेश कस्वां, वरिष्ठ शल्य चिकित्सक डाॅ. वीएस घोड़ावत, यूरोलोजिस्ट डाॅ. शिवम् प्रियदर्शी, ओमप्रकाश बागड़ा, कमल खटेड़, राजेश खटेड़, ललित वर्मा, रमेश सिंह राठौड़, राजेन्द्र खटेड़़, जगदीश प्रसाद पारीक आदि ने उन्हें बधाइयां प्रदान की हैं।

Wednesday, 5 February 2020

जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय में मासिक व्याख्यानमाला में व्याख्यान का आयोजन

साहित्य के माध्यम से बदले जा सकते हैं जीवन के सामाजिक, नैतिक और दार्शनिक आयाम

लाडनूँ, 5 फरवरी 2020। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय में मंगलवार को मासिक व्याख्यान माला के अन्तर्गत प्राचार्य प्रो. आनन्दप्रकाश त्रिपाठी की अध्यक्षता में अंग्रेजी के सहायक आचार्य सोमवीर सांगवान ने ‘‘साहित्य के माध्यम से जीवन का सामाजिक, नैतिक और दार्शनिक आयाम’’ विषय पर व्याख्यान दिया गया। सांगवान ने बताया कि साहित्य समाज का दर्पण होता है, इसके माध्यम से व्यक्तिगत सम्बन्धों में मधुरता उत्पन्न कर जीवन को बेहतरी के साथ जीने की प्रेरणा मिलती है। जीवन को सहजता से और सद्भाव के साथ कैसे जिया जाये, यह साहित्य से बेहतर कोई अभिव्यक्त नहीं कर सकता। साहित्य की इस विषेशेषता के कारण जन-मानस चेतना से होते हुए साहित्य मानव में संस्कारों का रूप ले लेता है। साहित्य में भारतीय संस्कृति का स्वर सहजता से सुना जा सकता है। साहित्य समाज में परिवत्रन का माध्यम बनता है, वहीं व्यक्ति में नैतिकता के जागरण और उसे अध्यात्म के प्रति और दर्शन के प्रति जागरूक बनाने में भी साहित्य सहायक होता है। व्याख्यान के उपरान्त प्राचार्य त्रिपाठी ने व्याख्यान में साहित्य के बारे में सार्थक एवं सही दिशा में व्याख्यायित करने के लिये सोमवीर सांगवान को बधाई दी तथा कहा कि सांस्कृतिक सद्भावना को सर्वोपरि रखना आवश्यक है। व्याख्यान माला के दौरान महाविद्यालय के व्याख्याता कमल कुमार मोदी, अभिषेक चारण, अभिषेक शर्मा, श्वेता खटेड़ एवं घासीलाल शर्मा उपस्थित रहे। व्याख्यान माला का संचालन डाॅ. बलबीर सिंह चारण द्वारा किया गया और अंत में आभार ज्ञापन डाॅ. प्रगति भटनागर ने किया।

Monday, 3 February 2020

जैन विश्वभारती संस्थान के आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय में आचार्य महाप्रज्ञकृत ‘महावीर का अर्थशास्त्र’ पुस्तक की समीक्षा प्रस्तुत

जैन विश्वभारती संस्थान के आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय में आचार्य महाप्रज्ञकृत ‘महावीर का अर्थशास्त्र’ पुस्तक की समीक्षा प्रस्तुत

शोषण विहीन समाज की संरचना के लिये सापेक्ष अर्थशास्त्र अपनाना जरूरी

लाडनूँ, 3 फरवरी 2020। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय में प्राचार्य प्रो. आनन्दप्रकाश त्रिपाठी की अध्यक्षता में आचार्य महाप्रज्ञ द्वारा रचित पुस्तक ‘‘महावीर का अर्थशास्त्र’’ की समीक्षा वाणिज्य व्याख्याता अभिषेक शर्मा द्वारा की गई। शर्मा ने समीक्षा प्रस्तुत करते हुये बताया कि आचार्य महाप्रज्ञ ने सापेक्ष अर्थशास्त्र की बुनियाद कायम की है। उनकी पुस्तक ने शोषण विहीन समाज, नैतिकता पूर्ण आजीविका, प्रकृति व पर्यावरण हितैषी अर्थशास्त्र आदि के समबंध में व्यसापक प्रकाश डाला है। शर्मा ने बताया कि यह पुस्तक कुल नौ भागों में विभक्त की गई है, जिनमें प्रथम भाग में केन्द्र में कौन-मानो या अर्थ? द्वितीय विकास की अर्थशास्त्रीय अवधारणा, तृतीय अहिंसा और शांति का अर्थशास्त्र, चतुर्थ व्यक्तिगत स्वामित्व एवं उपभोग का सीमाकरण, पंचम पर्यावरण और अर्थशास्त्र, षष्ठ गरीबी और बेरोजगारी, सप्तम महावीर, माक्र्स, केनिज और गाँधी, अष्टम नई अर्थनीति के पेरामीटर, नवम भाग में धर्म से आजीविका: ईच्छा परिमाण में अर्थशास्त्र के बारे में व्यापक चर्चा की गई है। इस दौरान प्रो. त्रिपाठी द्वारा पुस्तक में परित्राण शब्द के शब्दार्थ एवं भावार्थ पर विषद् चर्चा की एवं संकाय सदस्यों की जिज्ञासाओं का समाधान किया। इस दौरान महाविद्यालय के वाणिज्य व्याख्याता कमल कुमार मोदी ने पुस्तक समीक्षा के लिए आभार प्रकट किया। कार्यक्रम का संयोजन सोमवीर सांगवान ने किया। इस दौरान सहायक आचार्य डाॅ. प्रगति भटनागर, अभिषेक चारण, श्वेता खटेड़, शेरसिंह राठौड़ आदि उपस्थित रहे।

जैन विश्वभारती संस्थान की राष्ट्रीय सेवा योजना की दोनों इकाइयों के संयुक्त तत्वावधान में सात दिवसीय शिविर का आयोजन

लाडनूँ, 3 फरवरी 2020। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) की राष्ट्रीय सेवा योजना की दोनों इकाइयों के संयुक्त तत्वावधान में सात दिवसीय शिविर का आयोजन सोमवार को किया गया। शिविर की अध्यक्षता करते हुये आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने एनएसएस के कार्यों व उद्देश्यों पर प्रकाश डला और कहा कि विद्यार्थी जीवन से ही समाज सेवा और राष्ट्रहित की सोच को विकसित करने का यह सबसे बड़ा माध्यम है। एनएसएस केवल विचार परिवर्तित ही नहीं करता बल्कि व्यावहारिक तौर पर विद्यार्थियों में समाज सेवा की आदत का विकास भी करता है। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वित्ताधिकारी आरके जैन ने स्वास्थ्य एवं कॅरियर निर्माण के बारे में बताया तथा प्राकृतिक चिकित्सा के महतव को बताते हुये कहा कि इसके एक्युप्रेशर जैसी बिना दवा और बिना अतिरिक्त समय गंवाये की जा सकने वाली चिकित्सा पद्धति भी शामिल है, जिसके द्वारा कब्ज, माईग्रेन आदि बीमारियों का सफल इलाज केवल बिन्दुओं को दबा कर किया जा सकता है। छात्राओं ने उनसे इसबारे में अनेक सवाल भी पूछे, जिस पर जैन ने सबकी जिज्ञासाओं को शांत किया। इस अवसर पर गायन प्रतियोगिता का आयोजन भी किया गया, जिसमें पूजा प्रजापत, सोनम कंवर, पूजा, स्नेहा पारीक, रूबीना बानो आदि स्वयंसेविकाओं ने हिस्सा लेकर अपनी प्रस्तुतियां दी। प्रतियोगिता के निर्णायकों में डाॅ. पुष्पा मिश्रा व श्वेता खटेड़ थी। कार्यक्रम के प्रारम्भ में ईकाई प्रभारी डाॅ. प्रगति भटनागर ने सात दिनों के शिविर में आयोज्य कार्यक्रमों की जानकारी दी और कहा कि अनुशासन जीवन में सबसे जरूरी होता है। छात्राओं को पूर्ण संयमित रह कर दिये गये कार्यक्रमों को सम्पन्न करना है। अंत में द्वितीय इकाई प्रभारी डाॅ. बलबीर सिंह चारण ने धन्यवाद ज्ञापित किया।

बैंकिंग क्षेत्र में बढते साईबर अपराध की रोकथाम के लिये सावधानियां जरूरी- डूडी

4 फरवरी 2020। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) की राष्ट्रीय सेवा योजना की दोनों इकाइयों के संयुक्त तत्वावधान में चल रहे सात दिवसीय शिविर के द्वितीय दिवस अलग-अलग सत्रों का आयोजन करके विश्व कैंसर दिवस, बौद्धिक सत्र में साईबर अपराध व बैंकिंग व्यवस्थायें पर व्याख्यान तथा सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किये गये। एनएसएस के ईकाई प्रभारी डाॅ. प्रगति भटनागर व डाॅ. बलबीर सिंह चारण के निर्देशन में चल रहे इस शिविर के दौरान आयोजित बौद्धिक सत्र में मुख्य वक्ता ओरियंटल बैंक ऑफ काॅमर्स के अधिकारी कैलाश चंद डूडी ने एनएसएस की छात्राओं को बैंकिंग व्यवस्थाओं के बारे में जानकारी प्रदान की तथा बताया कि नेट बैंकिंग नवीन व्यवस्था है और इसके माध्यम से तेज लेनदेन संभव हो पाया है। हालांकि इसमें अनेक साईबर अपराधी सेंध लगाने के प्रयास करते हैं, फिर भी कुछ सावधानियां बरतने पर हम असुविधाओं और ठगी के शिकार होने से बच सकते हैं। उन्होंने साईबर अपराधों के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुये उनके प्रति छात्राओं को जागरूक किया तथा साईबर अपराध का शिकार होने से बचने के उपाय बताये। डूडी ने बैंकिंग क्षेत्र में कॅरियर बनाने के बारे में भी बताया और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के सूत्र छात्राओं को बताये।

विश्व कैंसर दिवस का आयोजन

विश्व कैंसर दिवस के अवसर पर शिविर में कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. डाॅ. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने कैंसर की व्यापकता व भयावहता के बारे में बताया तथा उनसे बचने के लिये बरती जाने वाली सावधानियां एवं रहन-सहन में किये जाने वाले बदलावों के बारे में छात्राओं को जानकारी दी। उन्होंने बताया कि किसी भी बीमारी को आने से रोका जा सकता है, अगर उसके प्रति सावधानियां बरती जावे। इलाज से बचाव हमेशा बेहतर होता है। स्वयंसेविका प्रतिष्ठा कोठारी ने इस अवसर पर कैंसर के बारे में विस्तार से चर्चा करते हुये छात्राओं को कैंसर से बचाव केे लिये प्रेरित किया और उन्हें स्वस्थ जीवन जीने के सूत्र बताये। शिविरके तृतीय सत्र में सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किये गये; स्वयंसेविका अर्चना शर्मा ने गायन द्वारा इस सत्र का शुभारम्भ किया। अन्य स्वयंसेविकाओं ने भी अपनी प्रसतुतियां दी।

स्वस्थ रहने की कला का जानना सबके लिये जरूरी- प्रो. त्रिपाठी

5 फरवरी 2020। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) की राष्ट्रीय सेवा योजना की दोनों इकाइयों के संयुक्त तत्वावधान में चल रहे सात दिवसीय शिविर के तृतीय दिवस स्वास्थ्य शिविर का आयोजन किया जाकर प्राथमिक चिकित्सा सहायता उपलब्ध करवाने के बारे में प्रशिक्षण के साथ स्वस्थ्य रहने के सूत्र एवं प्रयोगशाला जांच के बारे में बताया गया। इस अवसर पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुतियां भी दी गई। एनएसएस के ईकाई प्रभारी डाॅ. प्रगति भटनागर एवं डाॅ. बलबीर सिंह चारण के निर्देशन में आयोज्य इन कार्यक्रमों में तीसरे दिन आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने अध्यक्षता की। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि स्वयंसेवी छात्राओं के लिये आवश्यक है कि वे प्राथमिक चिकित्सा एवं स्वस्थ रहने की कला अवश्य सीखें। वे इस प्रशिक्षण के पश्चात आपातकाल में किसी की भी मदद के लिये तैयार रह सकती है और प्राथमिक चिकित्सा पहुंचा कर किसी की जान बचा सकती हैं। जीवन में इस प्रकार की जानकारियां बहुत ही अमूल्य होती हैं। उन्होंने स्वास्थ्य को सबसे बड़ी सम्पति के रूप में चित्रांकित करते हुये कहा कि संसार के सारे सुख स्वास्थ्य के पश्चात गिने जाते हैं।

प्राथमिक चिकित्सा का प्रशिक्षण दिया

कार्यक्रम में स्थानीय राजकीय चिकित्सालय में अस्थिरोग विशेषज्ञ डाॅ. कमलेश कस्वां ने छात्राओं को दुर्घटनाओं के समय घायलों को दी जाने वाली मदद और प्राथमिक चिकित्सा के बारे में विस्तार से बताया तथा घर, सफर आदि में अचानक होने वाली व्याधि से निपटने के लिये बीमार को पहुंचाई जाने वाली प्राथमिक चिकित्सा की राहत के बारे में भी जानकारी दी। उन्होंने प्राथमिक चिकित्सा के लिये आवश्यक उपकरणों व दवाओं की जानकारी देने के अलावा इस दौरान कोई उपकरण व दवा का अभाव हो तो उसके विकल्प के तौर पर किये जाने वाले कार्यों के बारे में भी बताया। उन्होंने व्यक्गित स्वास्थ्य के बारे में भी जानकारी दी और बीमारियों से बचाव के तरीके समझाये। प्रारम्भ में प्रो. त्रिपाठी ने डाॅ. कस्वा का स्मृति चिह्न प्रदान करके सम्मान किया व उनका परिचय प्रस्तुत किया।

छात्राओं की हेमोग्लोबिन जांच की

शिविर के अगले सत्र में संस्थान के लेब टेक्नीशियन रामनारायण गैणा ने एनएसएस के सभी स्वयंसेवकों व स्वयंसेविकाओं को प्रयोगशालायी जांच, रक्त-थूक आदि के नमूने एकत्र करने, उनकी जांच करने की विधियों आदि के बारे में बताया और ब्लड प्रेशर मापने के तरीके बताये। इसके अलावा उन्होंने प्रायोगिक तौर पर स्वयंसेविकाओं की रक्त जांच करते हुये उनके रक्त में हेमोग्लोबिन की जांच की और प्रक्रिया को अच्छी तरह से समझाया। तृतीय चरण में स्वयंसेवियों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रसतुत किये। कार्यक्रम का संचालन छात्रा दिव्यता कोठारी ने किया।

मंगलपुरा गांव में स्वास्थ्य जागरूकता रैली निकाल कर दिया संदेश

6 फरवरी 2020। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) की राष्ट्रीय सेवा योजना की दोनों इकाइयों के संयुक्त तत्वावधान में चल रहे सात दिवसीय शिविर के अंन्तर्गत चतुर्थ दिवस गुरूवार को एनएसएस द्वारा गोद लिये गये निकटवर्ती ग्राम मंगलपुरा के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में पोस्टर प्रतियेागिता, बच्चों को दूध पिलाने एवं स्वास्थ्य जागरूकता रैली के कार्यक्रम आयोजित किये गये। इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में विद्यालय के कार्यवाहक प्राचार्य जयपाल शर्मा ने स्वास्थ्य की जागरूकता को जन-जन तक पहुंचाने की आवश्यकता बताई तथा कहा कि जन चेतना के माध्यम से हम बहुत सारी फैलने वाली बीमारियों की रोकथाम कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों के इन कार्यक्रमों से उनके विद्यालय के बालकों को प्रेरणा मिलेगी। डाॅ. शिल्पी जैन ने बच्चों को दूध पिलाने के कार्यक्रम की प्रशंसा की और कहा कि यह स्वास्थ्य जागरूकता का कार्यक्रम विद्यार्थियों में सेहत के लिये जागरूक बनायेगा। एनएसएस के इ्रकाई प्रभारी डाॅ. बलबीरसिंह चारण ने कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की और बताया कि एनएसएस के स्वयंसेवक विद्यार्थी अपने सात दिनों में ऐसे विभिन्न सेवाकार्य कर रहे हैं, जिनसे आम लोगों को उनका लाभ मिल पायेगा। अंत में एनएसएस की प्रथम ईकाई प्रभारी डाॅ. प्रगति भटनागर ने आभार ज्ञापित किया।

रैली निकाली, पोस्टर चित्रित किये

इससे पूर्व एनएसएस के स्वयंसेवियों ने राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय मंगलपुरा से एक स्वास्थ्य जागरूकता रैली का आयोजन किया, जिसको प्राचार्य जयपाल शर्मा ने हरी झंडी दिखाई। रैली गांव के प्रमुख मार्गों से होते हुये वापस विद्यालय भवन पहुंची। विद्यालय में एक पोस्टर प्रतियोगिता का आयोजन किया गया, जिसमें 25 प्रतिभागी विद्यार्थियों ने भाग लिया और स्वास्थ्य जागरूकता विषय पर चित्र उकेरे। इस अवसर पर सभी प्रतिभागियों को पुरस्कृत किया गया। विद्यार्थियों को स्वास्थ्यवर्द्धक दुग्ध पिलाने के अलावा सड़क सुरक्षा सप्ताह को देखते हुये विद्यार्थियों को यातायात नियमों के बारे में जानकारी देते हुये उनके पालन से हादसों से बचने व सुरक्षित यात्रा की जानकारी दी गई। इस सम्बंध में एक गीत भी प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रमों में जयपाल शर्मा, डाॅ. शिल्पी जैन व अजयपाल सिंह भाटी, डाॅ. प्रगति भटनागर, डाॅ. बलबीरसिंह चारण, संतोष कुमार भोजक, नरपत, भंवरलाल आदि उपस्थित रहे।

राष्ट्रीय सेवा योजना का सात दिवसीय शिविर सम्पन्न

11 फरवरी 2020। जैन विश्वभारती संस्थान में राष्ट्रीय सेवा योजना की दोनों इकाइयों के तत्वावधान में संचालित सात दिवसीय शिविर के समापन पर स्वयंसेवक व स्वयंसेविकाओं ने विश्वविद्यालय परिसर में श्रमदान करके परिसर को स्वच्छ बनाया तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों द्वारा सबका मनोरंजन किया। समापन समारोह में सात दिनों में आयोजित की गई विभिन्न प्रतियोगिताओं के तृतीय स्थान तक के विजेताओं को पुरस्कृत किया गया। शिविर के दौरान विशेष सहयोग प्रदान करने वाली स्वयंसेविकाओं को भी इस अवसर पर पारितोषिक प्रदान किये गये। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुये आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने कहा कि सात दिनों में विद्यार्थियों ने महत्वपूर्ण कार्य करके समाज को अच्छा संदेश दिया है। उन्होंने छात्र जीवन में सेवाकार्य की भावना पनपने को देश के नवनिर्माण के लिये श्रेष्ठ बताया। प्रो. त्रिपाठी ने कहा कि यहां के मूक बधिर दिव्यांग आवासीय विद्यालय के बच्चों को प्रोत्साहन दिया जाने के लिये वहां कार्यक्रम प्रस्तुत करने और उन विद्यार्थियों को कार्यक्रम में पुरस्कृत करने को एक अच्छा कार्य बताया। कार्यक्रम में एनएसएस के द्वितीय इकाई प्रभारी डाॅ. बलबीर सिंह चारण ने सात दिवस के दौरान किये गये समस्त क्रियाकलापों, प्रतियोगिताओं और समाजसेवा कार्यों के बारे में जानकारी दी और प्रगति विवरण प्रस्तुत किया। स्वयंसेविका रूबीना बानो ने शिविर के अपने अनुभव साझा किये। एनएसएस की प्रथम इकाई प्रभारी डा. प्रगति भटनागर ने अंत में आभार ज्ञापित किया।