21 दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का समापन
नवाचार के साथ पाण्डुलिपि संरक्षण वर्तमान की आवश्यकता-प्रो दूगड़
लाडनूं 15 दिसम्बर
जैन
विश्वभारती संस्थान के जैनविद्या एवं तुलनात्मक धर्म दर्शन विभाग व
प्राच्य विद्या एवं भाषा विभाग के तत्वावधान में 21 दिवसीय पाण्डुलिपि
विज्ञान एवं लिपिविज्ञान विषयक कार्यशाला का समापन संस्थान के सेमिनार हाॅल
में समारोह पूर्वक हुआ। समारोह की अध्यक्षता करते हुए जैन विश्वभारती
संस्थान के कुलपति प्रो बच्छराज दूगड ने कहा कि आज शिक्षा में हर जगह
नवाचार का उपयोग हो रहा है ऐसे में पाण्डुलिपि जैसे परम्परागत ज्ञान के लिए
भी नवाचार की आवश्यकता है। उन्होनें कहा कि एक रिसर्च के मुताबिक आने वाले
समय में 70 प्रतिशत नौकरियों का स्वरूप एवं पदनाम बदल जायेगें। जिसके कारण
पाण्डुलिपि संरक्षण में भी नवीन तकनीक का उपयोग जरूरी है।
प्रो
दूगड ने देश में लाखों पाण्डुलिपिया विद्यमान है जिनमे से मात्र दस
प्रतिशत पाण्डुलिपियों पर ही काम हो पाया है, प्रकाशन तो इससे भी कम हुआ
है। जरूरत है कि पाण्डुलिपि संरक्षण एवं संपादन के प्रति विद्वतजन नये
तकनीकों का प्रयोग करते हुए अपना योगदान दें। प्रो दूगड ने पाण्डुलिपि के
विकास के लिए तीन बातों को महत्वपूर्ण बताया जिनमें पाण्डुलिपियों संग्रह,
प्रकाशन एवं नये शोधार्थी तैयार हो। उन्होनें देश भर से आये विद्वतजनों के
समक्ष सीखने की अभीप्सा को ही ज्ञान विकास का माध्यम बताया। प्रो दूगड ने
बताया कि आने वाले समय में इस विश्वविद्यालय में प्राकृतिक चिकित्सा काॅलेज
एवं प्राच्य विद्याओं की दृष्टि से महत्वपूर्ण कार्य होगा।
कार्यक्रम
के मुख्य अतिथि लखनऊ के प्रो के के थापलिपाल ने पाण्डुलिपि ज्ञान एवं
गुप्तकालिन लिपियांे को समझाते हुए पाण्डुलिपि मिशन को रेखाकिंत किया।
उन्होनें पाण्डुलियों में समाहित अंक गणित, ज्योतिष विज्ञान,चिकित्सा
विज्ञान आदि को संस्कृति की अमूल्य धरोहर बताते हुए गहनता के साथ करने का
आह्वान किया।
इस
अवसर पर कार्यशाला की निदेशका प्रो समणी ऋजुप्रज्ञा ने अतिथियों का स्वागत
करते हुए परिचय दिया। उन्होंने कहा कि इस कार्यशाला से पाण्डुलिपि एवं
लिपियों के संरक्षण एवं ज्ञान के प्रति एक ठोस नींव का निर्माण हुआ है, जो
भविष्य में और अधिक प्रवद्र्वमान होगा। उन्होनें कहा विद्वानों ने जो कुछ
भी इस कार्यशाला में सीखा है उसका अभ्यास बहुत जरूरी है। प्राकृत एवं
संस्कृत भाषा विभाग की अध्यक्ष डाॅ समणी संगीत प्रज्ञा ने 21 दिवसीय
कार्यशाला का प्रगति प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। कार्यक्रम में समणी
सुयशनिधि, कुलदीप शर्मा, समणी स्वर्णप्रज्ञा आदि ने अपने अनुभव सुनायें।
शुभारम्भ समणी वृन्द द्वारा प्रस्तुत मंगलसंगान से हुआ। इस अवसर पर देश भर
से आये विद्वानों को प्रमाण पत्र, प्रतीक चिन्ह एवं साहित्य भेंट कर
अतिथियों द्वारा स्वागत किया गया। कार्यक्रम का संयोजन डाॅ सत्यनारायण
भारद्वाज एवं आभार ज्ञापन डाॅ योगेश कुमार जैन ने किया।
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