यौन उत्पीड़न की घटनाओं के प्रति जागरूक रहें, हिचकिचायें नहीं- डाॅ. विश्नोई
लाडनूँ, 25 मई 2018। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) एवं ताल्लुका विधिक सहायता समिति के तत्वावधान में महाप्रज्ञ-महाश्रमण आॅडिटोरियम में यौन उत्पीड़न, कानूनी अधिकार एवं न्यायिक संरक्षण विषय पर विधिक साक्षरता शिविर का आयोजन किया गया। सिविल न्यायाधीश एवं प्रथम श्रेणी न्यायिक दंडनायक (कनिष्ठ वर्ग) डाॅ. पवन कुमार विश्नोई ने कहा कि विधायिका ने बहुत सारे कानून बनाये हैं, लेकिन हर व्यक्ति उनके बारे में पूरी जानकारी नहीं रखता, इसलिए विधिक साक्षरता आवश्यक है। उन्होंने पोक्सो कानून के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि 18 वर्ष से कम आयु के बच्चे अपने साथ घटित किसी भी घटना के बारे में बताने से हिचकिचाते हैं, लेकिन अभिभावकों को बच्चों के व्यवहार व हरकतों को देखकर उसका आभास लगाना चाहिए और उनके प्यार से पूछना चाहिए। अगर किसी बच्चे के साथ लगातार ऐसी घटनाएं हो रही हैं और उन्हें नहीं रोका जाता है तो वे बड़े अपराध से जुड़ जाते हैं। उन्होंने बताया कि कोई भी व्यक्ति किसी अश्लील साहित्य या ऐसी कोई वस्तु, शरीर का कोई अंग लैंगिक आशय से दिखाता है या इलेट्रोनिक उपकरणों से पीछा करता है तो वह यौन उत्पीड़न है और ऐसा किसी बच्चे के साथ करने पर वह बाल यौन उत्पीड़न होता है। उन्होंने वहां मौजूद विद्यार्थियों से कहा कि वे सदैव जागरूक रहें और कानून की जानकारी सबको प्रदान करें व कानून का उपयोग भी करें।
सोच बदलें, आवाज उठायें
सहायक लोक अभियोजक आनन्द व्यास ने बताया कि संविधान सबको मौलिक अधिकार देता है और न्यायपालिका उन अधिकारों का संरक्षण करती है। पूरे देश में यौन उत्पीड़न की घटनाएं बढ रही है, ये पिछले 10-15 सालों से अधिक है, क्योंकि अभिभावकों ने अपने बच्चों की उपेक्षा शुरू कर दी। जरूरी यह है कि बच्चों को खुलकर बताने का माहौल प्रदान करें। समय बदल रहा है और इसके साथ हमें भी बदलने की जरूरत है। आप अपने परिवार से इसकी शुरूआत करें, तो समाज तक बात पहुंचेगी और पिफर जिले व राष्ट्र में बदलाव आयेगा। सोच बदलें और सहन करने का आदत बदलें। जब तक पीड़ित स्वयं लड़ने के लिऐ तैयार नहीं होंगे तब तक न्याय नहीं मिलेगा तथा कोर्ट व कानून कुछ नहीं कर पाएंगे। कहीं भी गलत हो रहा है तो आंखें बंद करके नहीं निकलें, बल्कि सजग रह कर आवाज उठायें। यौन उत्पीड़न रोकने का सबसे बड़ा जिम्मा स्वयं पर ही होता है। उन्होंने बिना सहमति, इच्छा के विरूद्ध लैंगिक कृत्य करना, प्रयास करना या उकसाना, पीछा करना आदि सभी यौन उत्पीड़न बताया तथा कहा कि यह किसी भी आॅफिस, प्राईवेट क्षेत्र सभी जगह हो सकता है। उन्होंने छोटी हरकतों को महिलाओं द्वारा नहीं बताने व उनकी उपेक्षा करने से कृत्य करने वाला का हौसला बढ जाता है और वहबड़ा अपराध भी कारित कर देता है। इसलिए आवाज उठाने की हिम्मत करें, इससे दूसरों को भी प्रेरणा मिलेगी।
नैतिक मूल्यों की शिक्षा आवश्यक
जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के कुलसचिव विनोद कुमार कक्कड़ ने अंत में अपने सम्बोधन में कहा कि अगर नैतिक मूल्यों की शिक्षा दी जावे तो इन समस्याओं को कम किया जा सकता है। उन्होंने संयुक्त परिवार का उदाहरण देते हुए कहा कि इसमें यौन शोषण व अपराध संभव नहीं होते। बिरादरी की व्यवस्था में वृद्धाश्रम, अनाथाश्रम, घरेलु नौकरों आदि की जरूरतें खत्म हो जाती है। उन्होंने नैतिक मूल्यों की शिक्षा को स्वीकार करना जरूरी बताया तथा कहा कि जीवन की अधिकांश मुश्किलों को इससे समाप्त किया जा सकता है। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. प्रद्युम्न सिंह शेखावत ने किया। इस अवसर पर बार संघ के पूर्व अध्यक्ष चेतन सिंह शेखावत, छोगाराम बुरड़क, न्यायिक कर्मचारी कपिल व अजीज खां आदि मौजूद थे।
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