विकास के लिये आवश्यक हैं शीतलता, गांभीर्य व पुरूषार्थ के गुण - मुनि जयकुमार
लाडनूँ, 31 मार्च 2018। मुनिश्री जयकुमार ने कहा है कि हर व्यक्ति विकास की दौड़ में लगा हुआ है, लेकिन विकास के पैमाने के बारे में भी सोचा जाना चाहिये। कोई आर्थिक विकास और कोई भौतिक विकास को ही विकास मान कर चल रहा है। इस तकनीक के युग में होने वाला यह विकास व्यक्ति का उध्र्वारोहण करता है या नहीं अथवा यह केवल शारीरिक व मानसिक शोषण का कारण ही बन रहा है। चेतना को पतन की ओर नहीं ले जाना चाहिये। स्वयं के विकास के लिये तय पैमाने के अनुसार व्यक्ति को शीतल, पराक्रमी और गंभीर होना चाहिये। वे यहां संस्थान के सेमिनार हाॅल में आयोजित अभिनन्दन एवं मंगलभावना समारोह में सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि ज्ञान प्राप्त करने को केवल जानकारी प्राप्त करने तक सीमित नहीं रखें। भीतर की प्रज्ञा का जागरूक बनना आवश्यक है। व्यक्ति चन्द्रमा की तरह से शीतल और शांत होना चाहिये। व्यक्ति भीतर से शीतल होगा व भावनायें शांत होंगी तो उसके सोचने की शक्ति दुगुनी हो जाती है। चिंतायें व तनाव विकास में बाधक बनती हैं। व्यक्ति सूर्य की भांति तेजस्विता, पराक्रमी और पुरूषार्थी होना चाहिये। अगर कोई पुरूषार्थ नहीं करता है तो वह स्वयं को धोखा देता है। इसके अलावा व्यक्ति को सागर की तरह से गहरा व गंभीर होना चाहिये। अगर भीतर गंभीरता नहीं होगी तो विश्वसनीयता नहीं रह सकती। मर्यादा, अनुशासन एवं गंभीरता हो तो तभी शिक्षा का महत्व होता है।
संस्थान के कुुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने इस अवसर पर मुनिश्री जयकुमार का स्वागत करते हुये बताया कि वे ऐसे तपस्वी व साधक संत हैं, जिन्होंने अपने साधना-काल में बरसों तक लेट कर शयन नहीं किया। वे आराम के लिये केवल बैठ कर ही विश्राम करते रहे हैं। उन्होंने मुनिश्री जयकुमार को सरल प्रवृति का बताया तथा कहा कि उनका यहां सेवा केन्द्र के व्यवस्थापक के रूप में लाडनूँ विराजना काफी आह्लादकारी है तथा यह विकास का कारण बनेगा। मुनि स्वस्तिक कुमार ने कहा कि संत किसी समाज से बंधकर नहीं चलते। समाज उनकी व्यवस्थायें करते हैं, लेकिन संत समस्त संसार के लिये होते हैं। मुनि मुदित कुमार व मुनि सुपारस कुमार ने व्यक्ति को सदैव गतिशील रहने की जरूरत बताई। कार्यक्रम में जैन विश्व भारती के ट्रस्टी भागचंद बरड़िया, जीवन मल मालू, निदेशक राजेन्द्र खटेड़, संस्थान के कुलसचिव विनोद कुमार कक्कड़, प्रो. दामोदर शास्त्री, वित्ताधिकारी आरके जैन, दूरस्थ शिक्षा निदेशक प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी आदि ने सम्बोधित किया तथा संतों को सदैव चलने वाला और सम्पूर्ण मानवता के लिये समर्पित बताया। कार्यक्रम में डाॅ. जसबीर सिंह, डाॅ. सत्यनारायण भारद्वाज, प्रगति भटनागर, सोनिका जैन, दीपक माथुर, नुपूर जैन आदि उपस्थित रहे।
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