लाडनूँ, 1 फरवरी 2018। जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय के अहिंसा एवं शांति विभाग एवं योग एवं जीवन विज्ञान विभाग के तत्वावधान में राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर के प्रायोजन में भारतीय साहित्य में अहिंसा एवं सामाजिक समरसता विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन अकादमी के अध्यक्ष डाॅ. इन्दुशेखर तत्पुरूष की अध्यक्षता में समारोह पूवर्क किया गया। समारोह के मुख्य अतिथि प्रख्यात चिंतक व लेखक हनुमान सिंह राठौड़ ने भारतीय संस्कृति व समरसता के साहित्य पर आक्रमणों पर चिंता जताते हुये कहा कि हमें पहले इन आक्रमणों को समझना होगा, फिर उसके जवाब में अपने प्राचीन साहित्य को आधुनिक शब्दावली में युवाओं के लिये व्याख्यात्मक रूप में लिखना होगा, तभी परिवर्तन संभव हो पायेगा। उन्होंने टीवी चैनलों द्वारा पारिवारिक विभेदों को बढावा देने वाले धारावाहिक दिखाये जाने, विज्ञापनों के रूप में अपनी वस्तुओं को बेचनेे के लिये उपभोक्तावादी संस्कृति को जन्म देने, इच्छायें एवं ईष्र्या पैदा करने, मोबाईल के कारण घरों में संवादहीनता के पैदा होने, आधुनिकता के नाम पर पश्चिम का अंधनुकरण करने और मजहब व सम्प्रदाय के नाम पर मनुष्यों को दो भागों में विभाजित करके समरसता को समाप्त करने को चिंताजनक बताया। दलित साहित्य के नाम से विभेद पैदा करने को भी उन्होंने आड़े हाथों लिया। उन्होंने कहा कि प्रवचनों से जीवन को नहीं बदला जा सकता, क्योंकि 24 घंटे प्रवचनों वाले चैनल कोई परिवर्तन नहीं कर पाये हैं; इसके लिये कर्म को महत्व देना होगा।
समारोह केे मुख्य वक्ता जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय जोधपुर के नेहरू अध्ययन केन्द्र के निदेशक प्रो. प्रताप सिंह भाटी ने बौद्ध साहित्य को अहिंसा की दिशा में महत्वपूर्ण बताते हुये कहा कि महान सम्राट अशोक जैसे क्रूर विजेता का हृदय परिवर्तन बुद्ध की शिक्षाओं से हुआ था और उसने अहिंसा को अपना लिया था। उन्होंने भगवान महावीर और उनके पश्चातवर्ती आचार्यों, अनुयायियों के उपदेशों का प्रकाशन अहिंसा का अद्भुत साहित्य है। महात्मा गांधी ने भी स्वतंत्रता आंदोलन को अहिंसा के माध्यम से संचालित किया था। उनके लेखन, कर्म और वचन भी अहिंसा के लिये महत्वपूर्ण साहित्य के अंग है। सामाजिक समरसता के बारे में बोलते हुये उन्होंने कहा कि असमानता की उत्पति केवल वर्ग और जातीय भेद से नहीं है, बल्कि इसके अन्य कारण हैं, जिन पर विचार करना चाहिये। उन्होंने कहा कि वैदिक साहित्य कहीं भी जातिय भेद प्रकट नहीं करता, बल्कि उसमें कर्म पर आधारित विभाजन है, लेकिन बाद में उनसे ही जातियां बन गई, जिसे लोगों ने अपनी सुविधा के लिये निर्मित किया था। उन्होंने परम्परागत असमानता को समाप्त करने की आवश्यकता सामाजिक समरसता के लिये आवश्यक बताई।
समारोह की अध्यक्षता करते हुये राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर के अध्यक्ष डाॅ. इंदुशेखर तत्पुरूष ने अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में कहा कि आज के समय में सर्वाधिक जरूरत है अहिंसा व सामाजिक समरसता की, जो केवल व्याख्यानों से संभव नहीं है, इसके लियेे कर्म और साहित्य की जरूरत है। उन्होंने कहा कि सदा प्रासंगिक रहने वाले अहिंसा व सामाजिक समरसता के विषय पर अकादमी ने अपने इस कार्यक्रम को बाहर करने का निर्णय लेते हुये जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय में करना तय किया, जो एक महान स्थली है। इस संगोष्ठी से नये आयाम खुलेंगे तथा गोष्ठी सार्थक सिद्ध होगी। वर्द्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय कोटा के क्षेत्रीय अध्ययन केन्द्र के निदेशक डाॅ. अन्नाराम शर्मा ने कहा कि आज वर्गों के बीच खाई बढती जा रही है, उत्पीड़न बढता जा रहा है। ऐसे में समस्या के मूल कारण को एवं साहित्य के दायित्व को समझना आवश्यक है। व्यक्ति की इच्छा व घोर उपभोग की प्रवृति ही अहिंसा व असमानता का कारण है। अहंकार व गहराता हुआ व्यक्तिवाद के कारण हिंसा है। साहित्यकार मन का व आत्मा का परिष्कार करता है तथा अहं का तिरस्कार करता है। त्याग भारतीय साहित्य की पहचान है।
जैविभा विश्वविद्यालय के दूरस्थ शिक्षा निदेशक प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने कहा कि सामाजिक समरसता हमारे व्यवहार में होनी चाहिये, केवल व्याख्यान मंे नहीं। सामाजिक समरसता का आधार प्रेम है, इसे जीवन में उतारें। उन्होंने आचार्य महाश्रमण द्वारा की जा रही अहिंसा यात्रा एवं ईमानदारी, नैतिकता व नशामुक्ति के संदेश के बारे में जानकारी दी तथा कहा कि देश में सामाजिक समरसता का बहुत बड़ा कार्य यह हो रहा है। उन्होंने अणुव्रत आंदोलन की जानकारी भी दी। योग एवं जीवन विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ. प्रद्युम्न सिंह शेखावत ने प्रारम्भ में संगोष्ठी का प्रतिवेदन प्रस्तुत करते हुये बताया कि दो दिनों की इस संगोष्ठी में विभिन्न सम्बंधित उप-विषयों पर 4 तकनीकी सत्र आयोजित किये गये। संगोष्ठी में कुल 12 प्रतिभागियों ने पंजीयन करवाया तथा कुल 62 शोध-पत्र प्रस्तुत किये गये, जिनमें से 31 पत्रों का वाचन किया गया। कार्यक्रम का शुभारम्भ समणी मंजुल प्रज्ञा के मंगल संगान के साथ किया गया। कार्यक्रम में राजस्थान साहित्य अकादमी के के सचिव डाॅ. विनीत गोधल का सम्मान भी किया गया। अतिथियों का सम्मान प्रो. अनिल धर, डाॅ. विवेक माहेश्वरी, डाॅ. विकास शर्मा, डाॅ. युवराज सिंह खंगारोत, डाॅ. हेमलता जोशी आदि ने किया। अंत में डाॅ. रविन्द्र सिंह राठौड़ ने आभार ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. जुगल किशोर दाघीच ने किया।
जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में राष्ट्रीय सेवा योजना की दोनों इकाईयों आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय एवं जैन विश्वभारती संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में सात दिवसीय राष्ट्रीय सेवा योजना शिविर के छठे दिन प्रागंण में ट्रेक रंगाई का कार्य स्वयंसेवकों द्वारा किया गया। कार्य का शुभारम्भ संस्थान के कुलसचिव विनोद कुमार कक्कड़ एवं महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी द्वारा संस्थान के प्रतीक चिन्ह के चारों ओर बने ट्रेक पर रंगाई करते हुये किया गया। बाद में एनएसएस की छात्राओं ने विधिवत रूप से सम्पूर्ण ट्रेक की रंगाई का कार्य किया। इसके साथ ही छात्र-छात्राओं द्वारा सम्पूर्ण परिसर में स्थित पेड़ों पर भी रंगाई का कार्य किया गया। यह शिविर दोनों इकाईयों के समन्वयक क्रमशः डाॅ. जुगल किशोर दाधीच एवं डाॅ. प्रगति भटनागर के निर्देशन में आयोजित किया जा रहा है। आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय की सहायक आचार्या सोनिका जैन ने स्वयं सेवको को जीवन में सदैव खुशनुमा रहने के गुर सिखाये। शुक्रवार को शिविर का समापन लाडनूं शहर के सभी प्रमुख मार्गों से स्वच्छता एवं स्वास्थ्य जागरूकता रैली निकाल कर किया जायेगा।
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