Sunday, 11 February 2018

तीन दिवसीय आईसीटी इंटीग्रेशन इन एजयुकेशन एंड लर्निंग पर राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन

सबको शिक्षा अच्छी शिक्षा की चुनौतियो का मुकाबला आईसीटी से- मयूर अली

लाडनूँ 10 फरवरी 2018। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में आईसीटी इंटीग्रेशन इन एज्यूकेशन एंड लर्निंग विषय पर आयोजित एनसीईआरटी नई दिल्ली एवं जैन विश्वभारती संस्थान के शिक्षा विभाग के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला के शुभारम्भ सत्र में मुख्य वक्ता एनसीईआरटी नई दिल्ली के ई-लर्निंग काॅर्डीनेटर मो. मयूर अली ने कहा है कि दो सबसे बड़ी चुनौतियां शिक्षा के क्षेत्र में हैं, सबको शिक्षा और अच्छी शिक्षा। इन चुनौतियांे का मुकाबला हम आईसीटी के माध्यम से कर सकते हैं। देश भर में 26 करोड़ विद्यार्थी स्कूली शिक्षा में हैं। उन सबको क्वालिटी एज्युकेशन देने के लिये तकनीक का सहारा आवश्यक है। मूक्स ओनलाईन कोर्सेज के माध्यम से हम बड़ी तादाद में लोगों को शिक्षित बना सकते हैं। इसमें सीटों का सामित होना, स्थान कम होना या दूर होना आदि की समस्या नहीं आती। इसी प्रकार टीवी चैनलों के माध्यम से ग्रामीण सुदूर क्षेत्र तक शिक्षा की पहंच बनी है। शिक्षा को दूर-दूर तक फैलाने में तकनीक से पूरी मदम मिलती है। अनेक अच्छे अध्यापकों का एक क्षेत्र विशेष तक सीमित रहने की समस्या का हल भी इस आईसीटी तकनीक के माध्यम से किया जा सकता है और उनके अध्यापन को दूसरों तक आसानी से पहुंचाया जा सकता है। इंटरनेट संसाधनों को आधारभूत ढांचे में शामिल करना होगा
कार्यशाला की अध्यक्षता करते हुये कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय के गांधी एकेडेमिक सेंटर के निदेशक प्रो. आरएस यादव ने कहा कि आईसीटी द्वारा हम इस भूमंडलीकरण के युग में ज्ञान के क्षेत्र में पूरे जगत से जुड़ सकते हैं। दुनिया भर की शोध का लाभ हम यहां उठा सकते हैं और यहां लाडनूं में होने वाली शोध को पूरे विश्व में फैलाया जा सकता है। पहले ज्ञान के स्रोत कम थे, लेकिन आज तो आईसीटी के माध्यम से उच्च श्रेणी की शिक्षा का विस्तार किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि इसमें भौगोलिक स्थितियां, छात्रों की संख्या, संसाधनों का अभाव, पहुच का अभाव आदि चुनौतियों का हल हमें खोजना होगा। आज मोबाईल एप्स, डिजीटल लाईब्रेरी आदि विभिन्न साधन तो हैं, लेकिन इंटरनेट कनेक्टिविटी, संसाधन आदि का इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित किया जाना आवश्यक है। भारत ऐसा देश है, जो अकेला कई देशों की आवश्यकता के बराबर है। यादव ने कहा कि तकनीक को शिक्षा का अभिन्न अंग के रूप में स्वीकार करना होगा। अंग्रजी व हिन्दी भाषा के अलावा क्षेत्रीय भाषाओं में भी सामग्री के अनुवाद की व्यवस्था होनी चाहिये। तेजी से बदलती तकनीक के दौर में यह भी जरूरी है कि समस्त व्यवस्थायें, साॅफ्टवेयर आदि का निरन्तर अपग्रेडेशन किया जाता रहे, वे कहीं भी आउटडेटेड नहीं होने पायें। नये-पुराने जितने भी अध्यापक हैं, उनकी भी शत-प्रतिशत ट्रेनिंग होकर उन्हें नई तकनीक में सहायक बनाना होगा और स्मार्ट कक्षाओं में उनका उपयोग लेना होगा। इंटरनेट पर आने वाली बच्चों के विकास में बाधक सामग्री को रोकना होगा।
जैन विश्वभारती संस्थान के कुलसचिव विनोद कुमार कक्कड़ ने अपने सम्बोधन में कहा कि कम्युनिकेशन का दौर एक क्रांति है। हमें आईसीटी को एडोप्ट करना चाहिये। यह भविष्य के लिये मददगार है। लेकिन इस बात का हमेशा ध्यान रखना चाहिये कि हर चीज के साईड इफेक्ट भी होते हैं, इसलिये इन्फोरमेशन टेक्नोलोजी को साधन ही बनाये रखें, इसे साध्य के रूप में परिवर्तित नहीं होने दें। जो परिवर्तन आता है, उसका उपयोग समाज की बेहतरी के लिये होना चाहिये। उन्होंने कार्यालयों में आधुनिक तकनीक युक्त संसाधनों को बढाने की तरफ ध्यान देने को आवश्यक बताया तथा कहा कि मैन पावर से बझाने से अधिक इक्वीपमेंट्स बढाने पर ध्यान देना चाहिये। महात्मा गांधी सेंट्रल यूनिवर्सिटी बिहार के प्रो. आशुतोष प्रधान ने कहा कि चाहे आज मूक्स का युग हो, लेकिन कक्षाओं में उपस्थिति का अपना महत्व है। तकनीक का प्रयोग केवल शिक्षा को अधिक गुणवता पूर्ण बनाने के लिये होना चाहिये। उन्होंने तकनीक को शिक्षा के एडिशनल रूप में स्वीकार करने की जरूरत बताते हुये कहा कि इससे भविष्य उज्ज्वल बन पायेगा। उन्होंने कहा कि इस तीन दिवसीय कार्यशाला का शिक्षकों को अच्छा व काबिल बनाने में योगदान रहना चाहिये, ताकि एक श्रेष्ठ राष्ट्र के निर्माण में उनका अमूल्य योगदान शामिल हो सके। प्रारम्भ में डाॅ. बी. प्रधान ने कार्यशाला के उद्देश्य पर प्रकाश डाला। शिक्षा विभाग के विभागध्यक्ष प्रो. बीएल जैन ने अतिथियों का परिचय देते हुये उनका स्वागत किया। उप. कुलसचिव डाॅ. प्रद्युम्न सिंह शेखावत, प्रो. रेखा तिवाड़ी, डाॅ. गोव्निद सारस्वत, डाॅ. गिरीराज भोजक आदि ने अतिथियों को शाॅल, पुस्तकें व स्मृति चिह्न प्रदान करके सम्मानित किया। कार्यक्रम का प्रारम्भ अतिथियों द्वारा सरस्वती पूजन, छात्राओं द्वार मंगलाचरण, सरस्वती वंदना एवं स्वागत गीत प्रस्तुत करके किया गया।

आधुनकि तकनीक व परम्पराओं के बीच सामंजस्य होना चाहिये- प्रो. त्रिपाठी

12 फरवरी 2018। इस तीन दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का समापन समारोह महाप्रज्ञ-महाश्रमण आॅडिटोरियम में दूरस्थ शिक्षा निदेशालय के निदेशक प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी की अध्यक्षता में आयोजित किया गया। प्रो. त्रिपाठी ने अपने सम्बोधन में कहा कि कहा कि ग्लोबाईजेशन के युग में हम आईसीटी के बिना आगे नहीं बढ सकते। तकनीक के कारण समस्त दूरियां सिमट गई हैं, लेकिन इसके कारण गुरू व शिष्य के बीच के सम्बंधों पर असर नहीं पड़ना चाहिये। आईसीटी से हम ज्ञान वृद्धि कर सकते हैं, लेकिन संस्कार केवल गुरू के सान्निध्य में ही मिल सकते हैं। पुरातन सरम्परा एवं नई तकनीक के बीच सामन्जस्य होना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि आईसीटी पर इस कार्यशाला का आयोजन श्रेष्ठ रहा है। लेकिन यह शुरूआत आगे भी जारी रहनी चाहिये, तथा इस प्रकार की कार्यशालायें निरन्तर आयोजित होनी चाहिये। कार्यक्रम की मुख्य अतिथि एनसीईआरटी की डाॅ. ऐरम खान ने कार्यशाला में हिस्सा लेने वाले सभी सम्भागियों को राष्ट्रीय विकास का हिस्सा बनननाचाहिये और शिक्षा के क्षेत्र में देश को आगे बढाने के लिये अपनी भूमिका निभानी चाहिये। उन्होंने जैन विश्वभारती में मुमुक्षु बहिनों के बारे में कहा कि साध्वी बनने की प्रक्रिया में उनकी जीवन शैली बहुत ही अच्छी है, उनका समय प्रबंधन और विद्धता भी कम नहीं है। उन्होंने कहा कि वे यहां पहली बार आई है और जैन विश्वभारती में उन्हें पवित्रता का अहसास हुआ है। अब वे चाहती हैं कि वे बार-बार यहां आयें। एनसीईआरटी की डाॅ. अर्चना ने कहा कि कार्यशाला के सम्भागियों को यहां सीखे हुये ज्ञान को कभी भुलाना नहीं चाहिये। ये जीवन भर उपयोगी रहेगी। कार्यशाला के प्रतिभागी रविन्द्र कुमार मारू कोटा, तन्मय जैन व मुमुक्षु आरती ने अपने अनुभव साझा किये। शिक्षा विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. बीएल जैन ने अंत में आभार ज्ञापित किया।
इस तीन दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला में डिजीटल डेकोरेशन, ई-पाठशाला, स्वयं पोर्टल, एडिटिंग साॅफ्टवेयर, ओपन रिसोर्स, ई-रिसोर्स का प्रयेाग करने, वीडियो रिसोर्स, स्क्रिप्ट लेखन, कैमरे के समाने पेश करने, लाईसेंस, वीडियो एडिटिंग, शाॅट्स लेने के तरीकेएनिमेशन, आॅडोसिटी, सिनोरियम, आईपीआर ई-कंटेंट, फ्लिप्ड क्लासरूम, क्रियेटिव काॅमन साईट, ओईआर आदि के बारे में एनसीईआरटी के विषय विशेषज्ञों डाॅ. मो. मामूर अली, डाॅ. सुधीर सक्सेना, डाॅ.. यशपाल, डाॅ. यशवन्त शर्मा, डाॅ. अर्चना, डाॅ. ऐरम खान आदि ने सैद्धांतिक एवं प्रयोगिक प्रशिक्षण प्रदान किया। कार्यशाला केे दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किये गये, जिसमें मुसकान, प्रमलता, विजयश्री, यतिश्री, प्रियंका, निशा, सरिता चैधरी, प्रीति जांगिड़, एकता, मीनाक्षी, अमृता, फिरोजा, भारती एवं विशाखा ने विभिन्न क्षेत्रीय नृत्यों की प्रस्ुतति दीय कार्यक्रम का संचालन डा. आभा सिंह ने किया।

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