आचार के बिना महत्वहीन है ज्ञान- डाॅ. समणी संगीतप्रज्ञा
लाडनूँ, 3 अगस्त 2018। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के प्राकृत एवं संस्कृत विभाग की विभागाध्यक्ष डाॅ. समणी सगीत प्रज्ञा ने कहा है कि ज्ञान तभी सार्थक बन सकता है, जब आचार उन्नत होता है। बिना आचार के ज्ञान महत्वहीन हो जाता है। ज्ञान और आचरण दोनों के समान रूप से उन्नत होने से ही व्यक्तित्व का विकास होता है और जीवन में व्यक्ति सफल बन पाता है। वे यहां अपने विभाग के नवागन्तुक विद्यार्थियों के स्वागत के लिये किये गये आयोजन को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने विद्यार्थियों को संस्कृत वार्तालाप के लिये प्रेरित किया तथा उन्होंने कहा कि जितना अध्ययन करें, वह जागरूकता पूर्वक करे, ताकि उसे अन्य के लिये भी अध्यापन में सहायक बनाया जा सके। वरिष्ठ संस्कृत विद्वान प्रो. दामोदर शास्त्री ने इस अवसर पर कहा कि जब व्यक्ति अपना लक्ष्य निर्धारित कर लेता है तो उसे अपनी पूरी शक्ति को केन्द्रित करके झोंक देना चाहिये। अपनी शक्ति का विकिरण करना विद्यार्थी के लिये हानिकर सिद्ध होता है। इस अवसर पर संस्थान में शिक्षा ग्रहण करने आये विदेशी विद्यार्थियों ने भी अपने विचार व्यक्त करते हुये कहा कि यह संस्थान अपने आप में विलक्षण है, जहां विद्यार्थी शिक्षा के साथ नैतिकता सीखते हैं। कार्यक्रम में सभी नव-प्रवेशित विद्यार्थियों ने अपना परिचय प्रस्तुत किया। उन्हें भी फैकल्टी से परीचित करवाया गया। कार्यक्रम के दौरान विविध गेम्स भी खिलाये गये। कार्यक्रम का प्रारम्भ मुमुक्षु बहिनों के मंगलाचरण से किया गया। अंत में मुमुक्षु दर्शिका ने आभार ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन मुमुक्षु वंदना व करिश्मा ने किया।
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