दूरस्थ शिक्षा निदेशालय में संगोष्ठी का आयोजन
दूरस्थ शिक्षा में गुणवत्ता जरूरी है- प्रो. त्रिपाठी
दूरस्थ शिक्षा भारत जैसे देश में आज वरदान साबित हो रही है। दूरस्थ शिक्षा में एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय और विभिन्न राज्यों के 13 मुक्त विश्वविद्यालय तथा 150 अन्य विश्वविद्यालय एवं संस्थान कार्य कर रहे हैं। जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय एक ऐसा विश्वविद्यालय है जहाँ शिक्षा की द्वैध प्रणाली लागू है। यहाँ नियमित शिक्षा के साथ -साथ दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से कई उपयोगी पाठ्यक्रम संचालित हो रहे हैं। दूरस्थ शिक्षा के कारण यह संस्थान लाडनूं जैसे छोटे से स्थान पर होते हुए भी देश के कोने-कोने के विद्यार्थी यहाँ के उपयोगी पाठ्यक्रमों का लाभ उठा रहे हैं। यहाँ के पाठ्यक्रम जीविकोपयोगी के साथ जीवनोपयोगी भी है। यह विचार जैन विश्वभारती संस्थान के दूरस्थ शिक्षा निदेशालय के निदेशक डाॅ. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने विभाग में आयोजित एक संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किये। प्रो. त्रिपाठी ने आगे यह भी कहा कि सर्व जनसुलभ शिक्षा दूरस्थ शिक्षा अपनी गुणवत्ता के साथ देश में वरदान सिद्ध हो रही है। गुणवत्ता विहीन दूरस्थ शिक्षा का कोई महत्व नहीं है। स्वतः शिक्षा बोधक प्रणाली में पाठ्यसामग्री दूरस्थ शिक्षा के लिए आवश्यक है। इस प्रकार की पाठ्यसामग्री शिक्षक की कमी को पूरा करती है क्योंकि यह पाठ्यसामग्री स्वतः व्याख्यायित, स्वतः निर्देशित, स्वतः प्रेरित, स्वतः पूरित एवं स्वतः मूल्यांकित होती है। फोन, फैक्स, ई-मेल, वेवसाइट, इण्टरनेट, टेलीकान्फ्रेन्सिग, वीडियो कान्फ्रेन्सिग आदि तकनीकी संसाधन दूरस्थ शिक्षा में गुणवत्ता लाते हैं। अतः गुणवत्तापूर्ण दूरस्थ शिक्षा आज के युग की मांग है।
इस अवसर पर सहायक निदेशक नुपूर जैन ने दूरस्थ शिक्षा में सूचना तकनीकी की उपयोगिता पर प्रकाश डाला। जे.पी. सिंह ने एम.ए. शिक्षा पाठ्यक्रम की महत्ता को प्रतिपादित किया। इस अवसर पर पंकज भटनागर, अजय पारीक, मंयक जैन, ओम प्रकाश सारण, हिमांशु खिड़िया एवं अंजू जैन ने भी अपने-अपने वक्तव्यों में दूरस्थ शिक्षा की उपादेयता पर प्रकाश डाला।
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