सभी क्रियाओं को सम्यक् बनाना ही जीवन जीने की कला है
लाडनूँ, 19 अगस्त 2021। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के शिक्षा विभाग में आयोजित आतंरिक व्याख्यानमाला के अंतर्गत डॉ. गिरधारी लाल शर्मा ने युवाचार्य महाश्रमण रचित पुस्तक ‘आओ हम जीना सीखें’ की समीक्षा प्रस्तुत करते हुए कहा कि इस पुस्तक में बताए गए सूत्रों से जीवन सुखद, सरल व संकट मुक्त बन सकता है। पुस्तक में आचार्य महाश्रमण ने आत्मा और शरीर दोनों की युति का नाम जीवन बताया है तथा जीवन जीने से अधिक महत्वपूर्ण ‘कलात्मक जीवन जीने’ को कहा है। समीक्ष्य पुस्तक में जीने की कला को सीखने का अर्थ ‘जीवन की सभी क्रियाओं को सम्यक बनाने’ को कहा है। इसमें बताया गया है कि चलने, उठने, खाने, सोने, बोलने, देखने, सहने और चिंतन में सम्यक दृष्टिकोण अपनाकर जीवन को सफल एवं सुखी बनाया जा सकता है। महाश्रमण के अनुसार व्यक्ति को वाणी तथा आहार संयम पर विशेष ध्यान देना चाहिए। आहार तथा चिंतन के सम्बन्ध में- मित, हित तथा ऋत की त्रिपदी को आचरण में लाना चाहिए तथा भाषा विवेक हेतु मितभाषिता, मधुर भाषिता, सत्य भाषिता एवं समीक्ष्य भाषिता के सूत्रों को जीवन में धारण करना चाहिए। वृद्धावस्था जीवन का वह काल होता है, जिसे काफी मुश्किल माना जाता है, किन्तु आचार्य महाश्रमण ने इस पुस्तक में कुछ ऐसे सूत्र दिए हैं, जिनको अपनाकर बुढ़ापे को वरदान बनाया जा सकता है। ये सूत्र हैं- खाद्य संयम, आवेश शमन, भाषा विवेक, प्रेक्षाध्यान, सक्रियता एवं बच्चों में सुसंस्कार वपन। डॉ. शर्मा ने बताया कि यह पुस्तक कलात्मक जीवन जीना सिखाने की महत्वपूर्ण कृति है, जिसका अध्ययन सभी को करना चाहिए। व्याख्यान के अंत में विभाग अध्यक्ष प्रो. बी.एल. जैन ने पुस्तक को अनमोल बताते हुए आभार ज्ञापित किया। कार्यक्रम में डॉ. मनीष भटनागर, डॉ. भाबाग्रही प्रधान , डॉ. विष्णु कुमार, डॉ. अमिता जैन, डॉ. गिरिराज भोजक, डॉ. ललित गौड़ आदि सभी संकाय सदस्य उपस्थित रहे।
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