अनुंसधान को पुस्तकालय़ की शोभा के बजाये जनोपयोगी बनाया जावे
लाडनूँ, 25 जून 2020। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के शिक्षा विभाग में कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ की प्रेरणा से आयोजित दो दिवसीय ऑनलाईन राष्ट्रीय कार्यशाला में जगद्गुरू रामानन्दाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय जयपुर के विभागाध्यक्ष प्रो. गोपीनाथ शर्मा ने मुख्य वक्ता के रूप में कहा कि अनुसंधान कार्य में शोध की गुणवता, मौलिकता, नवीनता एवं ईमानदारी की ओर ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है। उन्होंने शोध की दार्शनिक क्रियाविधि पर प्रकाश डालते हुये तत्व मीमांसा, ज्ञान मीमांसा व मूल्य मीमांसा के बारे में बताया। शिक्षा व मूल्यों के अन्तर्सम्बंध के बारे में उन्होंने कहा कि ये मानवीय गुणों का संवर्द्धन करने वाले तत्व हैं, इन्हें अलग-अलग नहीं किया जाकर एक ही मानना चाहिये। उन्होंने पुस्तकालय में रखे जाने वाले अनुसंधान नहीं बल्कि स्थानीय स्तर से लेकर विश्व स्तर तक उपयोग अनुसंधानों की आवश्यकता बताई। राजस्थान विश्वविद्यालय के डीन प्रो. एम पारीक ने अपने सम्बोधन में अनुसंधान की सर्वेक्षण विविध की व्याख्या प्रस्तुत की और समस्या का चयन, उद्देश्य, परिकल्पना, उपकरण निर्माण, चर, न्यादर्श, सांख्यिकी आदि के बारे में बताते हुये सर्वेक्षण विधि में गुणवता और ईमानदारी आवश्यक बताये। दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय गोरखपुर के प्रा. उदयसिंह ने गुणात्मक और परिणामात्मक दो प्रकार शोध के बताये और शोध की प्रकृति के अनुसार शोध की विधि अपनाने की आवश्यकता बताई। उन्होंने कहा कि हमें शोध को पुस्ताकलयों की शोभा से बाहर लाकर जनोपयोगी व जन समस्या निवारक बनाना चाहिये। ऐश्वर्य काॅलेज आफ एकेडमिक जोधपुर के डीन प्रो. एके मलिक ने अनुसंधान की वैज्ञानिक क्रियाविधि के विभिन्न चरणों को सटीक और सोदाहरण बताया। कार्यक्रम के संयोजक शिक्षा विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. बीएल जैन ने कहा कि तार्किक विश्लेषण विधि द्वारा ही शोध में अच्छे परिणाम लाये जा सकते हैं। लेकिन तर्क का स्थान बहस को नहीं लेना चाहिये, क्योंकि तर्क से ज्ञान का विकास होता है, लेकिन बहस से विवाद और विघटन पैदा होता है। अंत में डाॅ. मनीष भटनागर ने आभार ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन व तकनीकी सहयोग मोहन सियोल ने किया।
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