व्यक्ति की गरिमा व समानता का अधिकार रक्षित होना आवश्यक- प्रो. धर
लाडनूँ 10 दिसम्बर 2018। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के अहिंसा एवं शांति विभाग के तत्वावधान में मानवाधिकार दिवस पर कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में शोध निदेशक प्रो. अनिल धर ने व्यक्ति के मौलिक अधिकारों के बारे में बताते हुये राज्य व राष्ट्रीय स्तर के मानवाधिकार आयोगों के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा कर रखी है। संयुक्त राष्ट्र के चार्टर में कहा गया है कि कुछ ऐसे मानवाधिकार हैं, जो कभी छीने नहीं जा सकते, जिनमें मानव की गरिमा है और स्त्री-पुरुष के समान अधिकार हैं। इस घोषणा के परिणामस्वरूप संयुक्त राष्ट्र संघ ने 10 दिसम्बर 1948 को मानव अधिकार की सार्वभौम घोषणा अंगीकार की। संयुक्त राष्ट्र संघ की समान्य सभा ने मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा को स्वीकृत और घोषित किया। इस घोषणा से राष्ट्रों को प्रेरणा और मार्गदर्शन प्राप्त हुआ और वे इन अधिकारों को अपने संविधान या अधिनियमों के द्वारा मान्यता देने और क्रियान्वित करने के लिए अग्रसर हुए। प्रो. धर ने बताया कि किसी भी इंसान की जिंदगी, आजादी, बराबरी और सम्मान का अधिकार ही मानवाधिकार है। भारतीय संविधान इस अधिकार की न सिर्फ गारंटी देता है, बल्कि इसे तोड़ने वाले के लिये सजा का प्रावधान भी है। भारत में 28 सितंबर 1993 से मानव अधिकार कानून अमल में आया और 12 अक्टूबर, 1993 में सरकार ने राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का गठन किया। डाॅ. रविन्द्र सिंह राठौड़ ने इस अवसर पर अपने सम्बोधन में अधिकारों के साथ-साथ कर्तव्यों को भी पूरी जिम्मेदारी से निभाने की सलाह दी तथा कहा कि अगर हर व्यक्ति अपने दायित्वों को समझ ले तो अधिकारों की रक्षा स्वतः ही हो जाती है और कानून का उपयोग ही नहीं करना पड़ता है। कार्यक्रम में हरफूल ठोलिया, राजेश माली, उषा जैन, रजनी प्रजापत, वंदना प्रजापत, आसिफ खान, शीतल प्रजापत, हंसराज कंवर, प्रतिभा कंवर, किरण बानो, सरिता लोहिया, सपना जांगिड़, हीरालाल भाकर, गजानन्द चारण, मेहरून, तमन्ना आदि उपस्थित रहे।
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