Tuesday 27 February 2018

संस्थान के शिक्षा विभाग के विद्यार्थियों ने होली के पावन पर्व पर सुर संगम कार्यक्रम का किया आयोजन


होलिया में उड़े रै गुलाल गानों से छात्राओं ने मोहा मन

लाडनूँ 27 फरवरी 2018। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के शिक्षा विभाग में विद्यार्थियों ने सुर संगम कार्यक्रम का आयोजन किया। कार्यक्रम में बीएड, बीएससी-बीएड एवं बीए-बीएड की छात्राओं ने भजनों, लोक गीतों एवं फिल्मी पैरोडियों को प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का आगाज होली के पारम्परिक गीत ‘होलिया में उड़े रै गुलाल....’ से किया गया। कार्यक्रम में सामुहिक नृत्य, समूह लोकगीत, एकल नृत्य आदि की रंगारंग प्रस्तुतियां दी गई, जिनमें प्रियंका बडियासर, तनुजा सैनी व दिव्या सोनी के गीतों ने सबको मोहा, तो जौहरा फातिमा व अम्बिका शर्मा ने ‘काल्यो कूद पड़्यो मेला में....’, सुरक्षा जैन के ‘पाछी जाबा दै...’ पूजा गौड़, संतोष, सरोज व सरिता ने ‘बाबलु तेरे अंगना में...’ प्रस्तुत किया, जिन्हें सभी ने सराहा। कार्यक्रम में संकाय सदस्यों द्वारा रंग बरसै, बाजै है नौबत बाजा आदि लोकगीतों एवं विविध गीतों की प्रस्तुतियां दी। विभागाध्यक्ष प्रो. बीएल जैन ने सभी को होली की बधाईयां देते हुये बताया कि कार्यक्रम का उद्देश्य जहां लोकपर्व के प्रति जागरूकता पैदा करना है, वहीं इस आयोजन के माध्यम से छात्राध्यापिकाओं में गीत-संगीत, नृत्य, कलात्मकता की प्रवृति उत्पन्न करने के साथ उनका भावात्मक, संवेगात्मक व सृजनात्मक विकास पैदा करना भी है। कार्यक्रम में डाॅ. मनीष भटनागर, डाॅ. बी. प्रधान, डाॅ. विष्णु कुमार, डाॅ. सरोज राॅय, डाॅ. अमिता जैन, डाॅ. आभा सिंह, डाॅ. गिरीराज भोजक, डाॅ. गिरधारी लाल शर्मा, डाॅ. ममता सोनी, देवीलाल कुमावत, मुकुल, मुकेश आदि उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. शकुन्तला शर्मा ने किया।

Saturday 24 February 2018

संस्थान के शिक्षा विभाग के विद्यार्थियों ने श्रमदान करके स्वच्छता अभियान मनाया

छात्राओं ने श्रमदान कर बनाया विश्वद्यिालय परिसर को स्वच्छ


लाडनूँ 23 फरवरी 2018। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में स्वच्छता अभियान के तहत विश्वविद्यालय की छात्राओं नेे शिक्षा विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. बीएल जैन के नेतृत्व में परिसर के विभिन्न क्षेत्रों में श्रमदान करके सफाई कार्य किया। छात्राओं के अलग-अलग दल बनाये जाकर उन्होंने अपने जिम्मे पृथक-पृथक स्थानों की सफाई का जिम्मा लिया और पूरी तन्मयता के साथ सफाई का कार्य पूर्ण किया। विश्वविद्यालय के समस्त संकायों के सदस्यों ने इसमें अपनी सहभागिता दिखाई। श्रमदान में बीएड एवं बीएससी-बीएड की छात्राओं ने हिस्सा लिया।

“बेहतर भविष्य के लिये जैन संस्थाओं से जुड़ाव व लगाव” विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन

आदर्शवादी विचारों और व्यावहारिक जीवन के बीच समन्वय स्थापित हो- प्रो. व्यास

लाडनूँ 23 फरवरी 2018। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के जैन विधा एवं तुलनात्मक धर्म व दर्शन विभाग एवं भगवान महावीर अन्तर्राष्ट्रीय शोध केन्द्र के संयुक्त तत्वावधान में बेहतर भविष्य के लिये जैन संस्थाओं से जुड़ाव व लगाव विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का शुभारम्भ शुक्रवार को यहां सेमिनार हाॅल में किया गया। कार्यशाला में देश भर से आये जैन विधा क्षेत्र में कार्यरत संस्थाओं के प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं। कार्यशाला के उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने की एवं मुख्य अतिथि मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय उदयपुर के प्रो. एसआर व्यास थे। मुख्य अतिथि प्रो. व्यास ने अपने सम्बोधन में कहा कि अनेक संस्थायें एक ही क्षेत्र में काम करती है तो उनके काम में डुप्लीकेसी होना संभव है। इससे बचने और अपनी शक्ति को अधिक बेहतर बनाने के लिये परस्पर समन्वय स्थापित करना आवश्यक है। इन संस्थाओं के मध्य परस्पर कार्यो की जानकारी होने से वे परस्पर सहयोग एवं अधिक मौलिकता से कार्य कर पायेंगे। आज सहकारिता का युग है। परस्पर सहयोग होना आवश्यक है। जैन दर्शन में एक ही विषय पर शोध का काम अलग-अलग संस्थाओं द्वारा करने के बजाये अलग-अलग कामों को आपसी सहयोग से करने से जैन दर्शन का विस्तार संभव होगा। उन्होंने जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. दूगड़ के प्रास को सराहनीय बताते हुये कहा कि इस कार्यशाला से परस्पर समन्वय का मार्ग खुलेगा और योगदान की संभावनायें प्रशस्त होंगी। उन्होंने कहा कि हर कार्य विचार से शुरू होता है और फिर वो आचार में आता है। इसके बाद उसका संचार होना चाहिये और तत्पश्चात उसका प्रचार होना चाहिये। प्रगति के लिये ये चार कार्य आवश्यक है। उन्होंने कार्यशाला में भाग ले रहे विभिन्न संस्थााओं के प्रतिनिधियों से कहा कि किसी भी कार्य को करने से पहले उसका कार्य की जानकारी, उसकी प्रकृति, कर्ता की योग्यता और कर्म का उद्देश्य स्पष्ट होने चाहिये। उन्होंने कहा कि समाज की नब्ज को टटोलें और जानें कि आम आदमी क्या चाहता है। आज आवश्यक है कि आदर्शवादी विचारों और व्यावहारिक सामाजिक जीवन के बीच समन्वय स्थापित किया जा सके। किसी भी काम में अकेलेपन के बजाये आपसी सहयोग रहे और अपने विचारों को साझा करें और जो सकारात्मक नजरिया प्राप्त होगा, वो आपके काम में निखार लायेगा।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुये जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने अपने अध्यक्षीय उदबोधन में कहा कि देश-विदेश में जैन विधा क्षेत्र में कार्य कर रहे विभिन्न लोगों और संस्थाओं की जानकारी देते हुये कहा कि विश्व भर में केलिफोर्निया, फ्लोरिडा, अमेरिका आदि अनेक देशों के विश्वविद्यालयों में जैन चैयर, जैन प्राफेसरशिप, जैन स्टडी सेंटर स्थापित हैं, जिनमें जैन कम्यूनिटी के नागरिकों का महत्वपूर्ण सहयोग रहा है। उन्होंने जैन विश्वभारती संस्थान की एक शिक्षिका फ्लोरिडा युनिर्विसिटी में प्रोफेसर होने की जानकारी दी तथा कहा कि भारतीय संस्थाओं को इनके बारे में पूरी जानकारी तक नहीं है, जबकि भारतीय संस्थायें इन विदेशस्थ नागरिकों से महत्वपूर्ण सहयोग प्राप्त कर सकती हैं। उन्होंने बताया कि भारतीय संस्थाओं के विकास में परस्पर नेटवर्किंग व सहयोग का अवरोध है, जिसे एक चैन स्थापित करके दूर किया जा सकता है। उन्होंने जैन विश्वभारती संस्थान द्वारा जैन विद्या क्षेत्र में किये जा रहे कार्यों रिसर्च सेंटर, समर स्कूल आदि के बारे में जानकारी दी तथा कहा कि उन्होंने विभिन्न पंथ-सम्प्रदायों के जैन आचार्यों से मुलाकात करके जैन शोध सम्बंधी एकता के लिये बातचीत भी की है, लेकिन आवश्यकता इस बात की है कि हम जैन विधाओं पर आचार्यों की परिधि के बिना काम करें और सम्प्रदायों के बजाये सहयोग पर विचार करें। इन संस्थाओं के बीच नेटवर्किंग स्थापित करें और जानें कि वे क्या-क्या काम कर रही हैं। उनके काम में कहीं पुनरावृति नहीं हो और काम में परस्पर जानकारी का सहयोग हो। ऐसे सहयोग के अनेक पहलु हो सकते हैं। हमें सभी संस्थाओं का समन्वित विकास हो, इस पर चिन्तन करना है। सभी आगे बढ पायें और विजित बनें। यह इस कार्यशाला द्वारा प्रयास किया जा रहा है।
कार्यशाला के प्रारम्भ में जैन विधा एवं तुलनात्मक धर्म व दर्शन विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो. समणी ऋ़जुप्रज्ञा ने अपने सम्बोधन में कहा कि जैन दर्शन को समझने के लिये आज युूवा पीढी तत्पर है, लेकिन जरूरत इस बात की है कि जैन दर्शन को उनकी भाषा में पहुंचाया जावे। जैन सिद्धांतों से युगीन समस्याओं के समाधान को प्रस्तुत किया जाना चाहिये। उन्होंने कहा कि जैन धर्म आज भी प्रासंगिक है और यह सबसे वैज्ञानिक धर्म है। नये प्रश्नों और समस्याओं पर चिंतन आवश्यक है, अन्यथा नई पीढी श्रद्धाशील नहीं रह पायेगी। उन्होंने बताया कि इस कार्यशाला में कुलपति प्रो. दूगड़ के विचारों के अनुरूप देश के विभिन्न राज्यों में काम कर रही जैन संस्थाओं से जुड़े विशेषज्ञों को बुलाया गया है, ताकि सभी संस्थाओं के बीच नेटवर्किंग, कनेक्टिंग और परस्पर सहयोग बन सके। कार्यक्रम का प्रारम्भ समणी प्रणव प्रज्ञा के मंगलाचरण से किया गया। डाॅ. गोविन्द सारस्वत ने अंत में आभार ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. योगेश कुमार जैन ने किया।

परस्पर-निर्भरता से ही संभव है विकास व विजय- प्रो. दूगड़

लाडनूँ। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने कहा है कि आत्मनिर्भरता को कभी अच्छा माना जाता था, लेकिन आज यह अच्छी बात नहीं है। आत्मनिर्भरता से संघर्ष होते हैं और शांति नहीं रहती। आज परस्पर-निर्भरता आवश्यक है। इससे सबका विकास और विजय निश्चित होती है। वे यहां विश्वविद्यालय के जैन विधा एवं तुलनात्मक धर्म व दर्शन विभाग एवं भगवान महावीर अन्तर्राष्ट्रीय शोध केन्द्र के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित बेहतर भविष्य के लिये जैन संस्थाओं से जुड़ाव व लगाव विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला के समापन सत्र की अध्यक्षता कर रहे थे। उन्होंने कहा कि जहां विश्वविद्यालयों में जैन चैयर स्थापित हैं, लेकिन वे रिक्त व काम नहीं होता हैं, वहां उन्हें वापस शुरू करवाये जाने के लिये एवं विश्वविद्यालयों पर दबाव बनाकर काम किया जाना सुनिश्चित होना चाहिये। उन्होंने जैन विधा क्षेत्र में काम करने वाली संस्थाओं को वर्ष में न्यूनतम एक बार मिलने का कार्यक्रम तय करना चाहिये, ताकि परस्पर गतिविधियों का आदान-प्रदान किया जा सके एवं अगले वर्ष की योजना बनाई जा सके। इसके लिये उन्होंने सुझाव दिया कि भगवान महावीर अन्तर्राष्ट्रीय शोध केन्द्र के अन्तर्गत एक चैयर की स्थापना हो, जो इन सबके बीच में नेटवर्किंग का कार्य करे। इसके अलावा सभी ऐसी संस्थाओं का डाटा-बेस तैयार किया जाकर उन्हें एक अलग वेब-साईट बनाकर उस पर अपलोड किया जावे। इस वेब साईट पर सभी संस्थाओं और उनकी गतिविधियों की पूरी जानकारी अपडेट रहेगी और इस जानकारी के लिये संस्थाओं के बीच निरन्तर सम्पर्क भी बना रहेगा। उन्होंने ऐसे डाटाबेस की एक बुकलेट प्रकाशित किये जाने, एक अलग एकेडेमिक कैलेंडर तैयार किये जाने और टीचिंग व रिसर्च के क्षेत्र में काम करने वाली संस्थाओं में परस्पर प्रोजेक्ट पर कार्य, प्लानिंग, लेक्चर आदि का कार्य किया जा सके। प्रो. दूगड़ ने संस्थाओं के बीच एक एमओयू हस्ताक्षर करने की आवश्यकता भी बताई। उन्होंने आचार्य तुलसी के अहिंसा समवाय की तरह जैन धर्म व दर्शन के क्षेत्र में काम करने वाली संस्थाओं का एक साझा मंच बने और वे उसके लिये निरन्तर कार्य करे। उन्होंने कहा कि यह दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला मील का पत्थर सिद्ध होगी, लेकिन जरूरी है कि इसका फाॅलोअप भी किया जाता रहे, तभी जैन विधाओं के प्रसार के लिये सार्थक सिद्ध होगी।
उदयपुर विश्वविद्यालय के प्रो. एस आर व्यास ने इस कार्य को जैन महाकुम्भ बताते हुये परम्परागत व स्थिर दर्शन को छोड़ कर नवीनता अपनाने का आहृवान किया तथा कहा कि हमे वैश्विक स्तर पर हो रहे नये चिंतन की पूरी जानकारी होनी जरूरी है। जागरूक रह कर नई दृष्टि को समझेंगे तो जैनिज्म में नये प्राण फूंके जा सकते हैं। बौद्धिक जागरूकता व ताजगी आनी ही चाहिये, इसी से समाज में नवीनता आयेगी। हम खुद इस नवीनता को हासिल करें और उसे आगे तक पहुंचायें। प्रो. एसपी पांडे ने जैन संस्थानों की बीच सामंजस्य के विषय को प्रासंगिक और महत्वपूर्ण बताया तथा कहा कि देश भर में अनेक संस्थायें जैन धर्म व दर्शन के लिये अपने स्तर पर प्रसार का कार्य कर रही है, लेकिन शोध, साहित्य, समपादन व प्रकाशन के लिये परस्पर सभी संस्थायें जुड़ कर काम करें, तो अच्छा कार्य संभव है। उन्होंने जैन विश्वभारती संस्थान पूरे देश में एक ऐसा संस्थान है जिसने जैन धर्म व दर्शन को आगे बढाया हैं। यहां की शोध व साहित्य श्रेष्ठ है।
सम्भगी प्रो. वीर सागर जयपुर ने इस राष्ट्रीय कार्यशाला को अपने तरह का पहला उपक्रम बताया तथा कहा कि इसके सार्थक परिणाम प्राप्त होंगे। कार्यशाला निदेशक प्रो. समणी ऋजुप्रज्ञा ने दो दिवसीय कार्यशाला के प्रस्तावों व निर्णयों के बारे मे संक्षिप्त रूप में विवरण प्रस्तुत किया तथा कहा कि आचार्य महाप्रज्ञ कहते थे कि चिंतन, निर्णय व क्रियान्विति के बीच दूरी नहीं होनी चाहिये, इसलिये यहां लिये गये निर्णयों को भी सभी मिलकर क्रियान्वित करें। कार्यशाला में डाॅ. सुषमा कोल्हापुर, डाॅ. नेमिनाथ शास्त्री, प्रो. एसके पांडे, प्रो. शीतल चंद जयपुर, डाॅ. डीसी जैन, प्रो. अशोक सिंघी, प्रो. दामोदर शास्त्री, डाॅ. गोविन्द सारस्वत, समणी अमलप्रज्ञा, प्रो. बीएल जैन, आरके जैन, प्रो. एपी त्रिपाठी, डाॅ. जुगल किशोर दाधीच, डाॅ. बी. प्रधान, डाॅ. सत्यनारायण भारद्वाज, डाॅ. विकास शर्मा, डाॅ. रविन्द्र सिंह राठौड़ आदि उपस्थित रहे। कार्यशाला के समापन सत्र का संचालन डाॅ. योगेश कुमार जैन ने किया।

Friday 23 February 2018

आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय में अन्तरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर भाषण एवं निबंध प्रतियेागिता का आयेाजन

मातृभाषा से होता है मानसिक विकास- प्रो. त्रिपाठी

विश्व मातृभाषा दिवस मनाया

लाडनूँ 21 फरवरी 2018। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय में अन्तरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर आयोजित कार्यक्रम मेें प्राचार्य प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने कहा कि मातृभाषा जीवन की पहली सीढी होती है और इसके माध्यम से जो ज्ञान सीखा जाता है, वह विद्यार्थी सहजता से हृदयंगम कर सकता है, वहीं उसका अपनी भाषा द्वारा मानसिक विकास भी संभव हो पाता है, साथ ही सीखी हुई बातों को लम्बे समय तक उसे स्मृति में भी बनाया रखा जा सकता है। मातृभाषा द्वारा अन्य संस्कृतियों को समझने में एवं उनके साथ समन्वय स्थापित करने में भी सहायता मिलती है। उन्होंने बताया कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने 19 साल पहले मातृभाषा दिवस घोषित किया था, ताकि इसके महत्व को समझा जा सके। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में मानव संसाधन मंत्रालय ने मातृभाषा को महत्व देते हुये देश भर में मातृभाषा को अंगीकार करने के लिये अभियान चलाया है। कार्यक्रम में हेमलता शर्मा, मेहनाज बानो, सुमन प्रजापत, करिश्मा खान, नन्दिनी पारीक, दक्षता कोठारी, नीलोफर बानो आदि ने मातृभाषा पर अपने विचार प्रकट किये और इसमें अपनत्व की भावना को महत्वपूर्ण बताया। कार्यक्रम का संचालन हिन्दी व्याख्याता अभिषेक चारण ने किया। कार्यक्रम में सभी संकाय सदस्य एवं छात्रायें उपस्थित रही।
जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के शिक्षा विभाग के तत्वावधान में भी मातृभाषा दिवस के अवसर पर भाषण एवं निबंध प्रतियेागिता का आयेाजन किया गया। प्रतियोगिता में कुल 80 विद्यार्थियों ने भाग लिया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुये विभागाध्यक्ष प्रो. बीएल जैन ने कहा कि मातृभाषा हमारी संवेदनाओं की वाहक होती है। अपनी मातृभाषा में अधिकतर बात करना अच्छा होता है, क्योंकि यह हमारा मूल आधार है और यह हमें अपनत्व का बोध करवाती है। कार्यक्रम में डाॅ. विष्णु कुमार, डाॅ. बी. प्रधान, डाॅ. मनीष भटनागर, डाॅ. अमिता जैन, डाॅ. गिरधारी लाल मुकुल सारस्वत, देवीलाल आदि उपस्थित रहे।

Sunday 18 February 2018

जैन विश्वभारती संस्थान के सेमिनार हाॅल में गीता की मानव जीवन में प्रासंगिता विषय पर व्याख्यान का आयोजन

इस युग में सामाजिक नियम-विधान ही ईश्वर-तुल्य हैं


लाडनूँ 17 फरवरी 2018। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के सेमिनार हाॅल में शनिवार को गीता की मानव जीवन में प्रासंगिता विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया गया। प्रो. दामोदर शास्त्री ने अपने व्याख्यान में गीता को दिव्य ध्वनि बताते हुये कहा कि हर गीत में ईश्वरीय अंश होता है, चाहे वह किसी भी भाषा का गीत क्यों न हो। उन्होंने जैन, बौद्ध व उपनिषद के वर्णन के अनुसार शब्दब्रह्म व बौद्ध संगति के बारे में बताया और ईश्वर के स्वरूप को रस-स्वरूप बताया तथा कहा कि ईश्वर की वाचिक अभिव्यक्ति सर्वप्रथम हुई थी, इसलिये ईश्वर को गीत कहा गया है। प्रो. शास्त्री ने गीता की अवधारणा में परमेश्वर के वैशिष्ट्य के बारे में बताया कि समस्त मनुष्य मिट्टी के ऐसे खिलौनों सदृश हैं, जिन्हें ईश्वर भीतर बैठा-बैठा रिमोट यानि माया से संचालित करता है। उन्होंने गीता के वर्णाश्रम के बारे में बताया कि ज्ञान का कभी भी पूर्ण उपयोग व्यवहार में संभव नहीं है। वैदिक धर्म में वर्ण व आश्रम द्वारा इन धर्मों का व्यवहारिक रूप से विभाजन किया गया है। इनमें ज्ञान व आचार दोनों मिल जाते हैं तथा ज्ञान के आलोक में आचारण तय होता है।
प्रो. शास्त्री ने गीता में कृष्ण भगवान के विराट् स्वरूप के दर्शन के सम्बंध में बताते हुये कहा कि हर दर्शन में परमेश्वर का स्वरूप अलग-अलग वर्णित है। जैन धर्म का परमात्मा संसार से विरक्त है, लेकिन गीता का परमात्मा सबको देख रहा है और वहीं सबको चलाता भी है। लेकिन जैन दर्शन में भी कृष्ण के विराट् स्वरूप को लिया गया है। धर्मध्यान एवं लोकानुप्रेक्षा यही विराट स्वरूप ही है। उन्होंने अपने व्याख्यान में बताया कि गीता में मुख्य रूप से कर्म, ज्ञान, भक्ति ये तीन मार्ग है, लेकिन तीनों में कर्म करना आवश्यक बताया गया है, क्योंकि कर्म किये बिना कोई नहीं रह सकता। उन्होंने गीता का मुख्य संदेश बताया कि जो भी आपके उपर सार्वजनिक नियम लागू किये हुये हैं, उन्हें मानें। आज के युग में सामाजिक नियम-विधान ही ईश्वर-तुल्य हैं। इन नियमों के अनुसार ही कार्य करें। कर्ता भाव रखने के बजाये नियमों को सर्वोपरि मानें और तटस्थ भाव रखें। कार्यक्रम में विभिन्न शिक्षकों ने गीता और उसके व्यावहारिक दर्शन के सम्बंध में अनेक सवाल पूछे, जिनका समाधान प्रो. शास्त्री ने किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुये कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने कहा कि गीता किसी न किसी रूप में जीवन से जुड़ी हुई है, इसीलिये इसकी हर बात रूचिकर लगती है। गीता में स्पष्ट संदेश है कि कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है जो पूर्णतया दोषमुक्त हो और ऐसा भी कोई नहीं है जो पूर्ण रूप से दोषयुक्त हो। कृष्ण और अर्जुन अद्वेत हैं यहां कम्र और कर्ता अद्वेत हो जाते हैं। गीता में कृष्ण का स्पष्ट संदेश है कि स्वधर्म में मोह का समावेश नहीं होना चाहिये। कृष्ण ने अर्जुन को मोह का त्याग करके स्वधर्म की ओर प्रेरित किया था। गीता के उपदेश स्वधर्म पर रहते हुये आगे बढें तो उसमें पुरूषार्थ हो। हम स्वधर्म में प्रतिष्ठित रहते हुये उसी के विकास में लगें और मोह नहीं रखें, तो वह कल्याणकारी होता है। हमें इन ग्रंथों को जीवन से जोड़कर देखना चाहिये। कार्यक्रम में प्रो. आनन्द प्राकश त्रिपाठी, प्रो. अनिल धर, प्रो. रेखा तिवाड़ी, डाॅ. प्रद्युम्न सिंग शेखावत, डाॅ. बिजेन्द्र प्रधान, डाॅ. जुगलकिशोर दाधीच, डाॅ. गिरीराज भोजक, डाॅ. विवेक माहेश्वरी, डाॅ. योगेश जैन, सोनिका जैन आदि उपस्थित रहे। व्याख्यान के समन्वयक डाॅ. सत्यनारायण भारद्वाज ने कार्यक्रम का संचालन किया।

Friday 16 February 2018

समाज कार्य विभाग के तत्वावधान में स्वच्छता एवं स्वास्थ्य जागरूकता सम्बंधी रैली व कार्यक्रम का आयोजन


लाडनूँ, 16 फरवरी 2018। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के समाज कार्य विभाग के तत्वावधान में स्वच्छता एवं स्वास्थ्य जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया। विभाग के प्रशिक्षणार्थियों ने अपने जोरावरपुरा बस्ती कार्यक्षेत्र में स्थानीय कनक-श्याम माध्यमिक विद्या मंदिर के सहयोग से एक रैली का आयेाजन किया गया। रैली को प्रधानाचार्य नारायण स्वामी ने हरी झंडी दिखाई। रैली में विद्यार्थी स्वच्छता सम्बंधी विभिन्न नारे लगाते हुये बस्ती के प्रमुख मार्गों से होते हुये विद्यालय पहुंची, जहां जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुये नारायण स्वामी ने स्वच्छता का महत्व समझाया तथा सफाई के प्रति सदैव जागरूक रह कर अपने गली-मौहल्ले और शहर को स्वच्छ बनाने के लिये प्रेरित किया। मुख्यअतिथि सनीता वर्मा ने सफाई को आत्मप्रेरित बनाने पर बल दिया तथा कहा कि जब तक हर व्यक्ति स्वयं सफाई के प्रति जागरूक नहीं बनता, तब तक स्वच्छता के लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता। कार्यक्रम में सोनू व रितु ने भी सफाई व स्वास्थ्य के सम्बंध में अपने विचार व्यक्त किये। अंत में गरिमा काला ने प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। आभार ज्ञापन मुकेश ने किया। इस आयेाजन का खर्च कैरियर मंत्र संस्थान ने उठाया।

Wednesday 14 February 2018

रिसर्च मेथोडोलोजी पर व्याख्यान आयोजित

रिसर्च मेथोडोलोजी पर व्याख्यान आयोजित

प्राच्य विद्याओं के संरक्षण के लिये आवश्यक है शोध- प्रो. यादव

लाडनूँ, 14 फरवरी 2018। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के प्राकृत एवं संस्कृत विभाग तथा अहिंसा एवं शांति विभाग के संयुक्त तत्वावधान में बुधवार को सेमिनार हाॅल में रिसर्च मेथोडोलोजी (शोध-क्रियाविधि) विषय पर व्याख्यान आयोजित किया गया। इस में मुख्य वक्ता कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय के गांधी अध्ययन केन्द्र के निदेशक प्रो. आरएस यादव ने कहा कि संस्कृत व प्राकृत भाषाओं एवं प्राच्य विद्याओं की धरोहर के विकास के लिये उन पर शोध कार्य किया जाना आवश्यक है। इससे उनका संरक्षण होता है और उन्हें समझने में भी नई पीढी को आसानी रहती है। रिसर्च हमारी शैक्षणिक प्रतिभा को उभरने का सुन्दर अवसर भी है। उन्होंने कहा कि आज वैश्विक परिदृश्य में भौतिक संसाधनों एवं प्रायोगिक विषयों पर अधिक बल दिया जा रहा है, लेकिन प्राच्य विधाओं का संरक्षण केवल  रिसर्च के बल पर ही संभव है। शोध से धरोहर का संरक्षण हो पाता है। यादव ने रिसर्च करने की प्रक्रिया के बारे में विस्तार से जानकारी दी तथा द प्राॅब्लम, रिव्यू आफ द सोर्सेज, फुटनोट्स आदि बिन्दुओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने इस अवसर पर शोध-विद्यार्थियों की जिज्ञासाओं का समाधान भी किया व उन्हें उचित तरीके से शोध करने के लिये प्रेरित किया। प्रारम्भ में संस्कृत व प्राकृत भाषा विभाग की विभागाध्यक्ष डाॅ. समणी संगीतप्रज्ञा ने स्वागत भाषण दिया तथा कार्यक्रम का परिचय देते हुये कहा कि मेथोडोलोजी आज प्रत्येक विद्यार्थी के लिये आवश्यक है। अंत में अहिंसा एवं शांति विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ जुगल किशोर दाधीच ने आभार ज्ञापित किया। कार्यक्रम में डाॅ. रविन्द्र सिंह राठौड़, डाॅ. सतयनारायण भारद्वाज, डाॅ. विकास शर्मा, समणीवृंद एवं मुमुक्षु बहिनों के अलावा शोध-छात्र उपस्थित थे।


Sunday 11 February 2018

तीन दिवसीय आईसीटी इंटीग्रेशन इन एजयुकेशन एंड लर्निंग पर राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन

सबको शिक्षा अच्छी शिक्षा की चुनौतियो का मुकाबला आईसीटी से- मयूर अली

लाडनूँ 10 फरवरी 2018। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में आईसीटी इंटीग्रेशन इन एज्यूकेशन एंड लर्निंग विषय पर आयोजित एनसीईआरटी नई दिल्ली एवं जैन विश्वभारती संस्थान के शिक्षा विभाग के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला के शुभारम्भ सत्र में मुख्य वक्ता एनसीईआरटी नई दिल्ली के ई-लर्निंग काॅर्डीनेटर मो. मयूर अली ने कहा है कि दो सबसे बड़ी चुनौतियां शिक्षा के क्षेत्र में हैं, सबको शिक्षा और अच्छी शिक्षा। इन चुनौतियांे का मुकाबला हम आईसीटी के माध्यम से कर सकते हैं। देश भर में 26 करोड़ विद्यार्थी स्कूली शिक्षा में हैं। उन सबको क्वालिटी एज्युकेशन देने के लिये तकनीक का सहारा आवश्यक है। मूक्स ओनलाईन कोर्सेज के माध्यम से हम बड़ी तादाद में लोगों को शिक्षित बना सकते हैं। इसमें सीटों का सामित होना, स्थान कम होना या दूर होना आदि की समस्या नहीं आती। इसी प्रकार टीवी चैनलों के माध्यम से ग्रामीण सुदूर क्षेत्र तक शिक्षा की पहंच बनी है। शिक्षा को दूर-दूर तक फैलाने में तकनीक से पूरी मदम मिलती है। अनेक अच्छे अध्यापकों का एक क्षेत्र विशेष तक सीमित रहने की समस्या का हल भी इस आईसीटी तकनीक के माध्यम से किया जा सकता है और उनके अध्यापन को दूसरों तक आसानी से पहुंचाया जा सकता है। इंटरनेट संसाधनों को आधारभूत ढांचे में शामिल करना होगा
कार्यशाला की अध्यक्षता करते हुये कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय के गांधी एकेडेमिक सेंटर के निदेशक प्रो. आरएस यादव ने कहा कि आईसीटी द्वारा हम इस भूमंडलीकरण के युग में ज्ञान के क्षेत्र में पूरे जगत से जुड़ सकते हैं। दुनिया भर की शोध का लाभ हम यहां उठा सकते हैं और यहां लाडनूं में होने वाली शोध को पूरे विश्व में फैलाया जा सकता है। पहले ज्ञान के स्रोत कम थे, लेकिन आज तो आईसीटी के माध्यम से उच्च श्रेणी की शिक्षा का विस्तार किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि इसमें भौगोलिक स्थितियां, छात्रों की संख्या, संसाधनों का अभाव, पहुच का अभाव आदि चुनौतियों का हल हमें खोजना होगा। आज मोबाईल एप्स, डिजीटल लाईब्रेरी आदि विभिन्न साधन तो हैं, लेकिन इंटरनेट कनेक्टिविटी, संसाधन आदि का इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित किया जाना आवश्यक है। भारत ऐसा देश है, जो अकेला कई देशों की आवश्यकता के बराबर है। यादव ने कहा कि तकनीक को शिक्षा का अभिन्न अंग के रूप में स्वीकार करना होगा। अंग्रजी व हिन्दी भाषा के अलावा क्षेत्रीय भाषाओं में भी सामग्री के अनुवाद की व्यवस्था होनी चाहिये। तेजी से बदलती तकनीक के दौर में यह भी जरूरी है कि समस्त व्यवस्थायें, साॅफ्टवेयर आदि का निरन्तर अपग्रेडेशन किया जाता रहे, वे कहीं भी आउटडेटेड नहीं होने पायें। नये-पुराने जितने भी अध्यापक हैं, उनकी भी शत-प्रतिशत ट्रेनिंग होकर उन्हें नई तकनीक में सहायक बनाना होगा और स्मार्ट कक्षाओं में उनका उपयोग लेना होगा। इंटरनेट पर आने वाली बच्चों के विकास में बाधक सामग्री को रोकना होगा।
जैन विश्वभारती संस्थान के कुलसचिव विनोद कुमार कक्कड़ ने अपने सम्बोधन में कहा कि कम्युनिकेशन का दौर एक क्रांति है। हमें आईसीटी को एडोप्ट करना चाहिये। यह भविष्य के लिये मददगार है। लेकिन इस बात का हमेशा ध्यान रखना चाहिये कि हर चीज के साईड इफेक्ट भी होते हैं, इसलिये इन्फोरमेशन टेक्नोलोजी को साधन ही बनाये रखें, इसे साध्य के रूप में परिवर्तित नहीं होने दें। जो परिवर्तन आता है, उसका उपयोग समाज की बेहतरी के लिये होना चाहिये। उन्होंने कार्यालयों में आधुनिक तकनीक युक्त संसाधनों को बढाने की तरफ ध्यान देने को आवश्यक बताया तथा कहा कि मैन पावर से बझाने से अधिक इक्वीपमेंट्स बढाने पर ध्यान देना चाहिये। महात्मा गांधी सेंट्रल यूनिवर्सिटी बिहार के प्रो. आशुतोष प्रधान ने कहा कि चाहे आज मूक्स का युग हो, लेकिन कक्षाओं में उपस्थिति का अपना महत्व है। तकनीक का प्रयोग केवल शिक्षा को अधिक गुणवता पूर्ण बनाने के लिये होना चाहिये। उन्होंने तकनीक को शिक्षा के एडिशनल रूप में स्वीकार करने की जरूरत बताते हुये कहा कि इससे भविष्य उज्ज्वल बन पायेगा। उन्होंने कहा कि इस तीन दिवसीय कार्यशाला का शिक्षकों को अच्छा व काबिल बनाने में योगदान रहना चाहिये, ताकि एक श्रेष्ठ राष्ट्र के निर्माण में उनका अमूल्य योगदान शामिल हो सके। प्रारम्भ में डाॅ. बी. प्रधान ने कार्यशाला के उद्देश्य पर प्रकाश डाला। शिक्षा विभाग के विभागध्यक्ष प्रो. बीएल जैन ने अतिथियों का परिचय देते हुये उनका स्वागत किया। उप. कुलसचिव डाॅ. प्रद्युम्न सिंह शेखावत, प्रो. रेखा तिवाड़ी, डाॅ. गोव्निद सारस्वत, डाॅ. गिरीराज भोजक आदि ने अतिथियों को शाॅल, पुस्तकें व स्मृति चिह्न प्रदान करके सम्मानित किया। कार्यक्रम का प्रारम्भ अतिथियों द्वारा सरस्वती पूजन, छात्राओं द्वार मंगलाचरण, सरस्वती वंदना एवं स्वागत गीत प्रस्तुत करके किया गया।

आधुनकि तकनीक व परम्पराओं के बीच सामंजस्य होना चाहिये- प्रो. त्रिपाठी

12 फरवरी 2018। इस तीन दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का समापन समारोह महाप्रज्ञ-महाश्रमण आॅडिटोरियम में दूरस्थ शिक्षा निदेशालय के निदेशक प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी की अध्यक्षता में आयोजित किया गया। प्रो. त्रिपाठी ने अपने सम्बोधन में कहा कि कहा कि ग्लोबाईजेशन के युग में हम आईसीटी के बिना आगे नहीं बढ सकते। तकनीक के कारण समस्त दूरियां सिमट गई हैं, लेकिन इसके कारण गुरू व शिष्य के बीच के सम्बंधों पर असर नहीं पड़ना चाहिये। आईसीटी से हम ज्ञान वृद्धि कर सकते हैं, लेकिन संस्कार केवल गुरू के सान्निध्य में ही मिल सकते हैं। पुरातन सरम्परा एवं नई तकनीक के बीच सामन्जस्य होना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि आईसीटी पर इस कार्यशाला का आयोजन श्रेष्ठ रहा है। लेकिन यह शुरूआत आगे भी जारी रहनी चाहिये, तथा इस प्रकार की कार्यशालायें निरन्तर आयोजित होनी चाहिये। कार्यक्रम की मुख्य अतिथि एनसीईआरटी की डाॅ. ऐरम खान ने कार्यशाला में हिस्सा लेने वाले सभी सम्भागियों को राष्ट्रीय विकास का हिस्सा बनननाचाहिये और शिक्षा के क्षेत्र में देश को आगे बढाने के लिये अपनी भूमिका निभानी चाहिये। उन्होंने जैन विश्वभारती में मुमुक्षु बहिनों के बारे में कहा कि साध्वी बनने की प्रक्रिया में उनकी जीवन शैली बहुत ही अच्छी है, उनका समय प्रबंधन और विद्धता भी कम नहीं है। उन्होंने कहा कि वे यहां पहली बार आई है और जैन विश्वभारती में उन्हें पवित्रता का अहसास हुआ है। अब वे चाहती हैं कि वे बार-बार यहां आयें। एनसीईआरटी की डाॅ. अर्चना ने कहा कि कार्यशाला के सम्भागियों को यहां सीखे हुये ज्ञान को कभी भुलाना नहीं चाहिये। ये जीवन भर उपयोगी रहेगी। कार्यशाला के प्रतिभागी रविन्द्र कुमार मारू कोटा, तन्मय जैन व मुमुक्षु आरती ने अपने अनुभव साझा किये। शिक्षा विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. बीएल जैन ने अंत में आभार ज्ञापित किया।
इस तीन दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला में डिजीटल डेकोरेशन, ई-पाठशाला, स्वयं पोर्टल, एडिटिंग साॅफ्टवेयर, ओपन रिसोर्स, ई-रिसोर्स का प्रयेाग करने, वीडियो रिसोर्स, स्क्रिप्ट लेखन, कैमरे के समाने पेश करने, लाईसेंस, वीडियो एडिटिंग, शाॅट्स लेने के तरीकेएनिमेशन, आॅडोसिटी, सिनोरियम, आईपीआर ई-कंटेंट, फ्लिप्ड क्लासरूम, क्रियेटिव काॅमन साईट, ओईआर आदि के बारे में एनसीईआरटी के विषय विशेषज्ञों डाॅ. मो. मामूर अली, डाॅ. सुधीर सक्सेना, डाॅ.. यशपाल, डाॅ. यशवन्त शर्मा, डाॅ. अर्चना, डाॅ. ऐरम खान आदि ने सैद्धांतिक एवं प्रयोगिक प्रशिक्षण प्रदान किया। कार्यशाला केे दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किये गये, जिसमें मुसकान, प्रमलता, विजयश्री, यतिश्री, प्रियंका, निशा, सरिता चैधरी, प्रीति जांगिड़, एकता, मीनाक्षी, अमृता, फिरोजा, भारती एवं विशाखा ने विभिन्न क्षेत्रीय नृत्यों की प्रस्ुतति दीय कार्यक्रम का संचालन डा. आभा सिंह ने किया।

Monday 5 February 2018

राष्ट्रीय सेवा योजना के सात दिवसीय शिविर सम्पन्न


राष्ट्रीय सेवा योजना के सात दिवसीय शिविर सम्पन्न
लाडनूँ,2 फरवरी 2018।जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में राष्ट्रीय सेवा योजना की दो ईकाइयों आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय तथा जैन विश्वभारती संस्थान के सयुक्ंत सात दिवसीय शिविर का समापन शुक्रवार को समारोह पूर्वक किया गया। इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम के प्रथम चरण में आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय के अगे्रंजी के सहायक आचार्य सोमवीर सांगवान द्वारा फाॅनेटिक्स पर एक कार्यशाला आयोजित की गई, जिसमें स्वयं सेवकों ने उत्साह पूर्वक भाग लिया। द्वितीय सत्र में सभी स्वयं सेवकों ने विश्वविद्यालय परिसर में स्वच्छता एवं स्वास्थय जागरूकता सम्बन्धित नारे लगाकर स्वच्छ एवं स्वस्थ रहने का सदेंश दिया। तृतीय चरण में समापन समारोह का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में शिविर के दौरान आयोजित की गई पोस्टर प्रतियोगिता का परिणाम घोषित किया गया, जिसमें नेहा प्रजापत प्रथम, योगिता शर्मा द्वितीय तथा अंकिता बेगांनी तृतीय रही। कार्यक्रम ज्योति नागपुरीयां, सुरैया बानो, तन्मय जैन, एवं आनन्दपाल सिंह ने अपने शिविर अनुभव साझा किये। कार्यक्रम की शुरूवात कंचन स्वामी द्वारा स्वागत गीत के माध्यम से की गई। सरिता शर्मा ने राष्ट्रीय सेवा योजना का गीत प्रस्तुत किया। कार्यक्रम में राष्ट्रीय सेवा योजना की कार्यक्रम अधिकारी डाॅ. प्रगति भटनागर, एवं आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय के सहायक आचार्य कमल कुमार मोदी, मधुकर दाधीच, डाॅ. बलवीर सिंह, सोमवीर सांगवान, सोनिका जैन, रत्ना चैधरी, योगेश टाक आदि उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन हेमलता शर्मा ने किया। इस सात दिवसीय शिविर का सफल आयोजन कार्यक्रम समन्वयक डाॅ. जुगल किशोर दाधीच एवं डाॅ. प्रगति भटनागर के निर्देशन मे किया गया।

भारतीय साहित्य में अहिंसा एवं सामाजिक समरसता विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन

प्राचीन साहित्य की आधुनिक शब्दों में व्याख्या की जावे- राठौड़

भारतीय साहित्य में अहिंसा एवं सामाजिक समरसता विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन
लाडनूँ, 1 फरवरी 2018। जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय के अहिंसा एवं शांति विभाग एवं योग एवं जीवन विज्ञान विभाग के तत्वावधान में राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर के प्रायोजन में भारतीय साहित्य में अहिंसा एवं सामाजिक समरसता विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन अकादमी के अध्यक्ष डाॅ. इन्दुशेखर तत्पुरूष की अध्यक्षता में समारोह पूवर्क किया गया। समारोह के मुख्य अतिथि प्रख्यात चिंतक व लेखक हनुमान सिंह राठौड़ ने भारतीय संस्कृति व समरसता के साहित्य पर आक्रमणों पर चिंता जताते हुये कहा कि हमें पहले इन आक्रमणों को समझना होगा, फिर उसके जवाब में अपने प्राचीन साहित्य को आधुनिक शब्दावली में युवाओं के लिये व्याख्यात्मक रूप में लिखना होगा, तभी परिवर्तन संभव हो पायेगा। उन्होंने टीवी चैनलों द्वारा पारिवारिक विभेदों को बढावा देने वाले धारावाहिक दिखाये जाने, विज्ञापनों के रूप में अपनी वस्तुओं को बेचनेे के लिये उपभोक्तावादी संस्कृति को जन्म देने, इच्छायें एवं ईष्र्या पैदा करने, मोबाईल के कारण घरों में संवादहीनता के पैदा होने, आधुनिकता के नाम पर पश्चिम का अंधनुकरण करने और मजहब व सम्प्रदाय के नाम पर मनुष्यों को दो भागों में विभाजित करके समरसता को समाप्त करने को चिंताजनक बताया। दलित साहित्य के नाम से विभेद पैदा करने को भी उन्होंने आड़े हाथों लिया। उन्होंने कहा कि प्रवचनों से जीवन को नहीं बदला जा सकता, क्योंकि 24 घंटे प्रवचनों वाले चैनल कोई परिवर्तन नहीं कर पाये हैं; इसके लिये कर्म को महत्व देना होगा।
समारोह केे मुख्य वक्ता जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय जोधपुर के नेहरू अध्ययन केन्द्र के निदेशक प्रो. प्रताप सिंह भाटी ने बौद्ध साहित्य को अहिंसा की दिशा में महत्वपूर्ण बताते हुये कहा कि महान सम्राट अशोक जैसे क्रूर विजेता का हृदय परिवर्तन बुद्ध की शिक्षाओं से हुआ था और उसने अहिंसा को अपना लिया था। उन्होंने भगवान महावीर और उनके पश्चातवर्ती आचार्यों, अनुयायियों के उपदेशों का प्रकाशन अहिंसा का अद्भुत साहित्य है। महात्मा गांधी ने भी स्वतंत्रता आंदोलन को अहिंसा के माध्यम से संचालित किया था। उनके लेखन, कर्म और वचन भी अहिंसा के लिये महत्वपूर्ण साहित्य के अंग है। सामाजिक समरसता के बारे में बोलते हुये उन्होंने कहा कि असमानता की उत्पति केवल वर्ग और जातीय भेद से नहीं है, बल्कि इसके अन्य कारण हैं, जिन पर विचार करना चाहिये। उन्होंने कहा कि वैदिक साहित्य कहीं भी जातिय भेद प्रकट नहीं करता, बल्कि उसमें कर्म पर आधारित विभाजन है, लेकिन बाद में उनसे ही जातियां बन गई, जिसे लोगों ने अपनी सुविधा के लिये निर्मित किया था। उन्होंने परम्परागत असमानता को समाप्त करने की आवश्यकता सामाजिक समरसता के लिये आवश्यक बताई।
समारोह की अध्यक्षता करते हुये राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर के अध्यक्ष डाॅ. इंदुशेखर तत्पुरूष ने अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में कहा कि आज के समय में सर्वाधिक जरूरत है अहिंसा व सामाजिक समरसता की, जो केवल व्याख्यानों से संभव नहीं है, इसके लियेे कर्म और साहित्य की जरूरत है। उन्होंने कहा कि सदा प्रासंगिक रहने वाले अहिंसा व सामाजिक समरसता के विषय पर अकादमी ने अपने इस कार्यक्रम को बाहर करने का निर्णय लेते हुये जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय में करना तय किया, जो एक महान स्थली है। इस संगोष्ठी से नये आयाम खुलेंगे तथा गोष्ठी सार्थक सिद्ध होगी। वर्द्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय कोटा के क्षेत्रीय अध्ययन केन्द्र के निदेशक डाॅ. अन्नाराम शर्मा ने कहा कि आज वर्गों के बीच खाई बढती जा रही है, उत्पीड़न बढता जा रहा है। ऐसे में समस्या के मूल कारण को एवं साहित्य के दायित्व को समझना आवश्यक है। व्यक्ति की इच्छा व घोर उपभोग की प्रवृति ही अहिंसा व असमानता का कारण है। अहंकार व गहराता हुआ व्यक्तिवाद के कारण हिंसा है। साहित्यकार मन का व आत्मा का परिष्कार करता है तथा अहं का तिरस्कार करता है। त्याग भारतीय साहित्य की पहचान है।
जैविभा विश्वविद्यालय के दूरस्थ शिक्षा निदेशक प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने कहा कि सामाजिक समरसता हमारे व्यवहार में होनी चाहिये, केवल व्याख्यान मंे नहीं। सामाजिक समरसता का आधार प्रेम है, इसे जीवन में उतारें। उन्होंने आचार्य महाश्रमण द्वारा की जा रही अहिंसा यात्रा एवं ईमानदारी, नैतिकता व नशामुक्ति के संदेश के बारे में जानकारी दी तथा कहा कि देश में सामाजिक समरसता का बहुत बड़ा कार्य यह हो रहा है। उन्होंने अणुव्रत आंदोलन की जानकारी भी दी। योग एवं जीवन विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ. प्रद्युम्न सिंह शेखावत ने प्रारम्भ में संगोष्ठी का प्रतिवेदन प्रस्तुत करते हुये बताया कि दो दिनों की इस संगोष्ठी में विभिन्न सम्बंधित उप-विषयों पर 4 तकनीकी सत्र आयोजित किये गये। संगोष्ठी में कुल 12 प्रतिभागियों ने पंजीयन करवाया तथा कुल 62 शोध-पत्र प्रस्तुत किये गये, जिनमें से 31 पत्रों का वाचन किया गया। कार्यक्रम का शुभारम्भ समणी मंजुल प्रज्ञा के मंगल संगान के साथ किया गया। कार्यक्रम में राजस्थान साहित्य अकादमी के के सचिव डाॅ. विनीत गोधल का सम्मान भी किया गया। अतिथियों का सम्मान प्रो. अनिल धर, डाॅ. विवेक माहेश्वरी, डाॅ. विकास शर्मा, डाॅ. युवराज सिंह खंगारोत, डाॅ. हेमलता जोशी आदि ने किया। अंत में डाॅ. रविन्द्र सिंह राठौड़ ने आभार ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. जुगल किशोर दाघीच ने किया।
जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में राष्ट्रीय सेवा योजना की दोनों इकाईयों आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय एवं जैन विश्वभारती संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में सात दिवसीय राष्ट्रीय सेवा योजना शिविर के छठे दिन प्रागंण में ट्रेक रंगाई का कार्य स्वयंसेवकों द्वारा किया गया। कार्य का शुभारम्भ संस्थान के कुलसचिव विनोद कुमार कक्कड़ एवं महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी द्वारा संस्थान के प्रतीक चिन्ह के चारों ओर बने ट्रेक पर रंगाई करते हुये किया गया। बाद में एनएसएस की छात्राओं ने विधिवत रूप से सम्पूर्ण ट्रेक की रंगाई का कार्य किया। इसके साथ ही छात्र-छात्राओं द्वारा सम्पूर्ण परिसर में स्थित पेड़ों पर भी रंगाई का कार्य किया गया। यह शिविर दोनों इकाईयों के समन्वयक क्रमशः डाॅ. जुगल किशोर दाधीच एवं डाॅ. प्रगति भटनागर के निर्देशन में आयोजित किया जा रहा है। आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय की सहायक आचार्या सोनिका जैन ने स्वयं सेवको को जीवन में सदैव खुशनुमा रहने के गुर सिखाये। शुक्रवार को शिविर का समापन लाडनूं शहर के सभी प्रमुख मार्गों से स्वच्छता एवं स्वास्थ्य जागरूकता रैली निकाल कर किया जायेगा।

युवाशक्ति का राष्ट्र हित में सही उपयोग आवश्यक

युवाशक्ति का राष्ट्र हित में सही उपयोग आवश्यक
लाडनूँ, 31 जनवरी, 2018। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय में राष्ट्रीय सेवा योजना के सात दिवसीय शिविर के पांचवें दिन एक प्रेरणा सत्र का आयोजन किया गया। इस सत्र में क्षेत्र के उर्दू व हिन्दी के प्रसिद्ध शायर राजेश विद्रोही ने अपने सम्बोधन में कहा कि हर व्यक्ति में अलग-अलग विशेषतायें व क्षमतायें होती है, इसलिये जब तक व्यक्ति की क्षमता को पहचान कर उसके अनुरूप कार्य उसके सुपुर्द किया जाता है तो उस कार्य की सफलता निश्चित हो जाती है। उन्होंने कहा कि युवाओं में ऊर्जा व क्षमता होती हैं युवाओं को जाति, धर्म और वर्ग से उपर उठ कर व्यापक सोच के साथ गतिशील होना चाहिये। राष्ट्र के उत्थान के लिये युवाशक्ति का सही उपयोग आवश्यक है। प्रारम्भ में आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने विद्रोही का परिचय प्रस्तुत किया तथा कहा कि राष्ट्रीय सेवा योजना युवा वर्ग की शक्ति को रचनात्मक दिशा में ले जाने का उपक्रम है। कार्यक्रम का संचालन छात्रा हेमलता ने किया।

भारतीय साहित्य में अहिंसा एवं सामाजिक समरसता विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारम्भ

भारतीय साहित्य में अहिंसा एवं सामाजिक समरसता विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारम्भ

भारतीय साहित्य में आदिकाल से ही समरसता का भाव रहा- डाॅ. तत्पुरूष

लाडनूँ, 31 जनवरी, 2018। राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर के अध्यक्ष डाॅ. इन्दुशेखर तत्पुरूष ने कहा है कि भारतीय साहित्य में आदिकाल से लेकर सदैव सामाजिक समरसता का भाव रहा है। आज सब जगह सूक्ष्म हिंसा एवं परोक्ष हिंसा बढ गई है, ऐसे में अहिंसा की आवश्यकता भी बढ गई है। उन्होंने अहिंसा के भेदों का वर्णन करते हुये कहा कि अधिक कपड़े पहनना एवं उपभोग वृति का होना भी हिंसा का ही एक रूप है। इससे सामाजिक समरसता नहीं पनप सकती है, यह विद्वेष एवं विरोध की जननी होती है। वे यहां जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय के अहिंसा एवं शांति विभाग एवं योग एवं जीवन विज्ञान विभाग के तत्वावधान में राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर के प्रायोजन में भारतीय साहित्य में अहिंसा एवं सामाजिक समरसता विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुये सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने बताया कि विश्व का पहला महाकाव्य वाल्मीकि कृत रामायण है। इसमें भेदभाव को महत्व नहीं देकर सामाजिक समरसता को महत्व दिया गया है। वाल्मीकि रामायण के पहले ही अध्याय में बताया गया है कि यह सब वर्णों के पठन के लिये उपयोगी है।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि महाराज गंगासिंह विश्वविद्यालय बीकानेर के कुलपति प्रो. भागीरथ सिंह बिजारणियां ने कहा कि भारतीय साहित्य में अहिंसा परमोधर्मः एवं वसुधैव कुटुम्बकम से अहिंसा एवं सामाजिक समरसता की बातें स्पष्ट होती है। भारतीय संस्कृति में नैतिक मूल्य व जीवन मूल्य समाहित हैं। हमारी संस्कृति का आधार ही त्याग, ममता तथा जीवो और जीने दो की भावनायें हैं। सद्भाव, सहनशीलता व त्याग समरसता के आधार है। हमारी संस्कृति प्रकृति, पेड़ों आदि की रक्षा करती है। प्रकृति पर विजय के प्रयास से भी हिंसा फैलती है। आज विश्व भर में अहिंसा का प्रदूषण फैला हुआ है, इसके लिये समाज में परिवर्तन की आवश्यकता है, जो कानून से या राजनीतिक परिवर्तन से नहीं हो सकता, बल्कि खुद को बदलने से ही सामाजिक समरसता आ सकती है। उन्होंने कहा कि जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय देश में अहिंसा का सबसे बड़ा केन्द्र है। यहां अहिंसा का पाठ पढाया जाता है। उन्होंने कहा कि इस राष्ट्रीय संगोष्ठी का अहिंसा एवं सामाजिक समरसता पर एक लाडनूं घोषणा पत्र जारी होना चाहिये और यहां समागत समस्त सहभागियों को एक संकल्प लेना चाहिये कि वे जातिभेद, लिंगभेद, वर्गभेद नहीं करेंगे तथा प्रकृति के साथ छेड़छाड़ नहीं करेंगे, हिंसा का प्रयास नहीं करेंगे एवं वायु प्रदूषण नहीं करेंगे।
संगोष्ठी के मुख्य वक्ता वर्द्धमान महावीर विश्वविद्यालय कोटा के पूर्व कुलपति प्रो. नरेश दाधीच ने अपने सम्बोधन में कहा कि साहित्य में अभी तक अहिंसा विमर्श शुरू नहीं हुआ है। भारतीय संदर्भ में अहिंसा का सिद्धांत जैन व बौद्ध धर्म का माना जाता है, लेकिन भारतीय साहित्य के हर ग्रंथ में अहिंसा का उल्लेख किसी न किसी रूप में मिलेगा। उन्होंने कहा कि अहिंसा का अर्थ प्रेम, सतय, अचैर्य आदि है, लेकिन प्रेम की भावना से अधिक तेज प्रतिशोध की भावना होती है, जो युद्ध का कारण बनती है। प्रतिशोध को मिटाने के लिये हमें प्रेम भावना को बढावा देने वाला साहित्य पढना चाहिये तथा आदर्श पुरूषों के जीवन के अनुरूप अपना व्यवहार ढालना चाहिये।
कार्यक्रम के सारस्वत अतिथि प्रख्यात चिंतक व लेखक हनुमान सिंह राठौड़ ने अहिंसा व सामाजिक समरसता को अलग-अलग नहीं बताकर उनके मूल में एक ही भावना बंधुता को बताया तथा कहा कि बंधुता आने पर समता आयेगी और समता से समरसता आयेगी। उन्होंने डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत को गलत बताते हुये कहा कि समाज की स्थापना में यह सिद्धांत अनुचित है, अगर डार्विन के अनुसार होता तो हम कभी जंगल से बाहर नहीं निकल सकते थे। बंधुता से कमजोर के उत्थान की भावना आती है और हिंसा का अभाव हो जाता है। डार्विन का सिद्धांत हिंसा का है। परिवार भाव समाप्त होने पर हिंसा की प्रवृति बनती है। उन्होंने दलित साहित्य कसा जिक्र करते हुय कहा कि दलित साहित्य के नाम पर वैमनस्यता फैलाई जा रही है, यह समरसता में बाधक है। इसमें ऐसा साहित्य रचा गया है जो सामाजिक वर्ग संघर्ष पैदा करता है।
साहित्य की दृष्टि कल्याण की रही है इससे पूर्व जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय के शोध निदेशक प्रो. अनिल धर ने संगोष्ठी का परिचय प्रस्तुत करते हुये कहा कि साहित्य सृजन केवल मानसिक विलासिता नहीं है। इसमें दृष्टि आत्म कल्याण एवं पर कल्याण की रहती है। उन्होेंने भारत की संस्कृति को सर्वश्रेष्ठ बताते हुये कहा कि यहां कल्याण मार्ग दिखलाने वाले श्रेष्ठ साहित्य की रचना की गई। वेदों से लेकर आधुनिक साहित्य तक में यहां मानवीय मूल्यों की स्थापना की गई है। यहां कहीं भी घृणा, द्वेष, युद्ध को बढाने वाले साहित्य का सृजन नहीं किया गया। यहां साहित्य रचना की दृष्टि स्वार्थपरक व वस्तुपरक नहीं रही है, केवल आत्म-कल्याण व परोपकार की रही है। प्रारम्भ में अहिंसा एवं शांति विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ. जुगल किशोर दाधीच ने स्वागत वक्तव्य प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का प्रारम्भ समणी मृदुप्रज्ञा के मंगल-संगान से किया गया। अंत में योग व जीवन विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ. प्रद्युम्न सिंह शेखावत ने आभार ज्ञापित किया। कार्यक्रम में दूरस्थ शिक्षा निदेशक प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी, समाज कार्य विभाग के निदेशक डाॅ. बी. प्रधान, डाॅ. हरि राम परिहार, डाॅ. सुमन मौर्य, प्रो. समणी ऋजुप्रज्ञा, डाॅ. सुरेन्द्र सोनी चूरू, डाॅ. गजादान चारण, सूरज सोनी, डाॅ. रेखा तिवाड़ी, डाॅ. रूचि मिश्रा, बबिता आदि उपस्थित थे।